Moon in Scriptures : वैज्ञानिकों की एकाग्र साधना और सुपर तकनीकी की सफलता!
Bangalore : धरती से चंद्रमा तक कि 384000 की दूरी तय करने के बाद लेंडर ‘विक्रम’ और रोवर ‘प्रज्ञान’ ने एक महान इतिहास रच दिया। चंद्रमा हमारी अर्वाचीन खगोल शास्त्र और ज्योतिष का एक अहम नक्षत्र है। चंद्रमा के बारे अब तक जो वर्णन है, वह तात्कालिक विज्ञान की पौराणिक भाषा रही थी। जैसे कि आज ‘लेंडर’ और ‘रोवर’ जैसे शब्द है। कुछ सालों बाद ये शब्द भी पौराणिक लगने लगेंगे।
भारतीय धर्म शास्त्रों में चंद्रमा के विषय में जितना अधिक वर्णन मिलता है, उतना अन्यत्र किसी भी ज्ञानकोष में नहीं। चंद्रमा के जिस दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-2 को उतरना था, हमारे शास्त्रों ने उसे पितरों की भूमि माना है। चंद्रमा के उस छोर पर जो हमें दिखाई नहीं देता, यानी दक्षिणी ध्रुव। वहां 15 दिन अंधेरा, 15 दिन उजाला होता है। हमारा ज्योतिष विज्ञान कितना उन्नत है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आधुनिक विज्ञान आज भी चंद्रमा पर पानी और बर्फ की खोज कर रहा है। लेकिन, हमारे ज्योतिष विज्ञान में चंद्रमा को जलतत्व का कारक ग्रह कहा गया है।
महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन के ज्योतिर्विज्ञान के असिस्टेंट प्रो उपेंद्र भार्गव के मुताबिक चंद्रमा को ध्यान में रखकर हमारे धर्म शास्त्रीय विधान, जप, तप, व्रत, उपवास, दान, यात्रा, विवाह एवं उत्सव आदि का निर्णय किया जाता रहा है। चन्द्रमा हमारे सनातन धर्म में वर्णित प्रत्यक्ष देवताओं में प्रधान देवता है। प्राचीन वैदिक काल से ही प्रकृति एवं परमात्मा के प्रतीक के रूप में जिन देवताओं की पूजा की जाती है उनमें सूर्य, अग्नि, वरुण, वायु, पृथ्वी, इन्द्र एवं चन्द्रमा प्रमुख हैं।
वायु पुराण में कहा गया है कि नक्षत्र, चन्द्रमा एवं ग्रह आदि सभी की उत्पत्ति सूर्य से हुई है। ‘अग्नीषोमात्मकं जगत’ के अनुसार संसार अग्नि और सोम रूप है। अग्नि ही सूर्य रूप में व्याप्त होता है और सोम चन्द्रमा के रूप में। सृष्टि में दोनों की अनिवार्य आवश्यकता है।
वैदिक साहित्य में चन्द्रमा की गति का भी उल्लेख मिलता है। ‘चन्द्रमा वा अमावास्यायाम् आदित्यमनुप्रविशति, आदित्याद्वै चन्द्रमा जायते’ अर्थात् चन्द्रमा अमावस्या में सूर्य में प्रवेश करता है और पुनः सूर्य से ही प्रकट होता है। चन्द्रमा में स्वयं का प्रकाश नहीं होता। इस विषय का ज्ञान भी वैदिक काल में किया जा चुका कि वह सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है। इस कारण तैतिरीय संहिता में चन्द्रमा को ‘सूर्य-रश्मि चन्द्रमा’ कहकर संबोधित किया गया।
शुक्लयजुर्वेद के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मन से चन्द्रमा की उत्पत्ति हुई, अतः चन्द्रमा को मन का कारक कहा गया। ऋग्वेद के अनुसार चन्द्रमा की किरणें अमृत बिन्दु के समान हैं तथा वह समस्त औषधियों का स्वामी है।
त्वमिमा ओषधी: सोम विश्वास्त्वमपो अजनयंस्त्वं गा!
त्वमा ततन्योर्वन्तरिक्षं त्वं ज्योतिषा वि तमो ववर्थ॥
वराहमिहिर ने बृहत्संहिता में चन्द्रमा की कलात्मक ह्रास वृद्धि की स्थिति का उल्लेख करते हुए लिखा है कि जिस तरह धूप में स्थित घड़े का सूर्य की तरफ का आधा भाग रोशनी वाला और विरुद्ध दिशा में स्थित दूसरा आधा भाग अपनी छाया से ही काला दिखाई देता है। उसी तरह सदा सूर्य के अधोभाग में स्थित चन्द्रमा का सूर्य की तरफ का आधा भाग शुक्ल और उसके विपरीत का अर्धभाग अपनी ही छाया से कृष्ण दिखाई देता है।
ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा को जलीय ग्रह कहा जाता है, चन्द्रमा पर होने वाले उल्कापातों के विषय में भी भारतीय ज्योतिषियों को ज्ञान हो चुका था। उन्होंने ग्रहण काल में चन्द्रमा पर होने वाले उल्कापातों के फल का भी विवेचन किया। भारतीय गणितज्ञों ने चन्द्रमा की परिधि का मान सूर्यसिद्धान्त के अनुसार 480 योजन तथा कक्षामान 3,24,000 योजन तथा आर्यभट्ट के अनुसार चन्द्रपरिधि 315 योजन तथा कक्षामान 2,16,000 योजन के बराबर बताया है जो कि लगभग आधुनिक मान के तुल्य ही है।
आधुनिक मान में लगभग 12 किलोमीटर का एक योजन माना गया है। तदनुसार उक्त गणना का आंकलन किया जा सकता है। भारतीय मनीषियों के निरंतर चिंतन एवम ब्रह्मांड के चप्पे-चप्पे के वृहद ज्ञान के क्रम में आज हमारे महान वैज्ञानिक एक महान कार्य को सफल बनाने जा रहे है। इस महान यज्ञ में हम भारतवासी सभी देवताओं का आह्वान करते हुए इस अद्भुत मिशन को सफल बनाने की कामना करते है।