नैतिकता अर्थहीन और विजय महत्वपूर्ण होती है पितामह… !

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मध्यप्रदेश में “पंचायत का महाभारत” खत्म हो गया है। अंतिम दिन जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा का दबदबा सिद्ध हो गया है। 90 फीसदी जिलों में भाजपा के जिला पंचायत अध्यक्ष काबिज हो गए हैं। शुक्रवार 29 जुलाई का दिन इतिहास में दर्ज हो गया है। सर्वाधिक चर्चा में भोपाल जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव रहा है। कांग्रेस ने घोर आपत्ति भी दर्ज कराई है। जीतने के बाद दीनदयाल परिसर में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को भाजपा की सदस्यता दिलाई गई। यह दृश्य ठीक उसी तरह था, जैसा 2013 विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा था। तब तत्कालीन कांग्रेस विधायक चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने विधानसभा में खड़े होकर तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह पर ही आरोप चस्पा कर अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।
चतुर्वेदी वहां से सीधे दीनदयाल परिसर पहुंचे थे और उन्हें भाजपा की सदस्यता दिलाई गई थी। उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा की भूमिका को सराहा गया था। तो जिला पंचायत चुनाव में सफलता को महाविजय और विकास का महासंकल्प जैसे शब्दों से सुशोभित करते हुए शिवराज ने विजय के लिए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा, नगरीय प्रशासन विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह, भोपाल के लिए खास तौर पर चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग को बधाई दी। हालांकि कांग्रेस किसी भी सूरत में भाजपा की विजय को स्वीकार नहीं कर रही है। और नाथ ने एक बार फिर चौदह माह बाद कांग्रेस की वापसी का दावा किया है। पर “पंचायत का महाभारत” खत्म हुआ और विजयी पक्ष उत्साहित है तो पराजित पक्ष आक्रोशित है। और बात फिर छल और नैतिकता की हो रही है।
तो महाभारत का यह दृष्टांत शायद बहुत सारे संशय दूर करने के लिए दिशा देता है। महाभारत का युद्ध खत्म हो चुका है। पांडव विजेता बन चुके हैं। कौरव पक्ष महापराजय के साथ दुनिया से ओझल है। भीष्म पितामह की इस धरा पर अंतिम रात है। कृष्ण खुद पितामह के पास पहुंचे हैं। तो पितामह अपने मन के संशयों को कृष्ण की वाणी से सुलझाने का सफल प्रयास करते हैं। कृष्ण को सामने देख भीष्म चुप रहे। कुछ क्षण बाद बोले,” पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव ? उनका ध्यान रखना, परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है।”
कृष्ण चुप रहे। भीष्म ने पुनः कहा,  “कुछ पूछूँ केशव? बड़े अच्छे समय से आये हो। सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाएं “।
कृष्ण बोले – कहिये न पितामह। एक बात बताओ प्रभु। तुम तो ईश्वर हो न ?कृष्ण ने बीच में ही टोका ,”नहीं पितामह, मैं ईश्वर नहीं …  मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह … ईश्वर नहीं। भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठहाका मार के हँस पड़े। बोले , ” अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे।”

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कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले…कहिये पितामह। भीष्म बोले, “एक बात बताओ कन्हैया !  इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या?
कृष्ण ने पूछा “किसकी ओर से पितामह? पांडवों की ओर से? “कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया, पितामह बोले। पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था ? आचार्य द्रोण का वध, दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार, दुःशासन की छाती का चीरा जाना, जयद्रथ और द्रोणाचार्य के साथ हुआ छल,निहत्थे कर्ण का वध, सब ठीक था क्या ? यह सब उचित था क्या ?
कृष्ण बोले, इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह?इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया।उत्तर दें दुर्योधन, दुःशासन का वध करने वाले भीम, उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन। मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह।
“अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण ?अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है। मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण।”
तब कृष्ण बोले कि “तो सुनिए पितामह।कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ। वही हुआ जो होना चाहिए।”
पितामह ने आश्चर्य जताया कि “यह तुम कह रहे हो केशव ? मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है। यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे हो गया? “
कृष्ण बोले “इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह , पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है। हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है। राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया था।हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह।”

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पितामह बोले “नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो !” कृष्ण ने साफ किया कि “राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह।राम के युग में खलनायक भी ‘रावण’ जैसा शिवभक्त होता था। तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण, मंदोदरी, माल्यावान जैसे सन्त हुआ करते थे। तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे। उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था। इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया। किंतु मेरे युग के भाग में कंस,जरासन्ध, दुर्योधन, दुःशासन, शकुनि, जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं। उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है। पितामह, पाप का अंत आवश्यक है पितामह, वह चाहे जिस विधि से हो।
पितामह बोले “तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव? क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा ? और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा?”
कृष्ण बोले “भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह। कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा। वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा। नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा। जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ  सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती हैं पितामह। तब महत्वपूर्ण होती है धर्म की विजय, केवल धर्म की विजय। भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह।”
पितामह ने सवाल किया कि “क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव ? और यदि धर्म का नाश होना ही है , तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है?”
कृष्ण बोले “सब कुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह। ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता।केवल मार्ग दर्शन करता है।सब मनुष्य को ही स्वयं करना पड़ता है। आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न। तो बताइए न पितामह, मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या? सब पांडवों को ही करना पड़ा न? यही प्रकृति का संविधान है।युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से। यही परम सत्य है।”
कृष्ण-पितामह का यह संवाद दिमाग के बहुत सारे जाले साफ करता है। कलियुग की वर्तमान स्थिति की तरफ कटाक्ष भी करता है। तो “छल और नैतिकता” जैसे शब्दों का युग के अनुरूप अर्थ और महत्ता खोने पर भी खुलकर प्रकाश डालता है। मध्यप्रदेश में “पंचायत का महाभारत” भी अगर संवादों और आरोप-प्रत्यारोप के नजरिए से देखा जाए, तो बीसवीं सदी के अंत और इक्कीसवीं सदी के पहले तीन साल मध्यप्रदेश की राजनीति अधिकतर कांग्रेस के इर्द-गिर्द नजर आती थी और भाजपा के दिग्गजों ने पीड़ा का वह दौर देखा है। अब इक्कीसवीं सदी में भाजपा का राज है और प्रदेश की राजनीति अधिकतर भाजपा के इर्द-गिर्द घूम रही है। ऐसे में कांग्रेस के दिग्गज पीड़ा का दौर देखकर आक्रोशित हैं। पर पीड़ा के यह दौर आते-जाते रहेंगे, नायक के चेहरे बदलते रहेंगे, पक्ष और विपक्ष की भूमिकाओं में कोई भी रहे, पर महाविजय की ध्वनि अपना अहसास कराने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।