किस बूथ पर किस समाज के अधिक वोटर, एक-एक सीट पर जीत के समीकरण पर बीजेपी का मंथन

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किस बूथ पर किस समाज के अधिक वोटर, एक-एक सीट पर जीत के समीकरण पर बीजेपी का मंथन

भोपाल:मध्यप्रदेश भाजपा आगामी चुनाव के पहले अब नए सिरे से माइक्रो मैनेजमेंट में जुट गई है। इसके लिए पार्टी ने विधायकों की जीत-हार का एक दौर का सर्वे कराने के साथ जिला अध्यक्षों से इस बात की जानकारी मांगी है कि किस बूथ पर किस समाज के सबसे अधिक वोटर हैं। इसके साथ ही इस समाज के लोगों का जुड़ाव किस दल के साथ सर्वाधिक है। इसकी भी जानकारी एकत्र कराई गई है। इस रिपोर्ट के आधार पर सात अक्टूबर से होने वाले तीन दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग में जिले के नेताओं को नई जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।

पार्टी ने प्रदेश के उन विधायकों की रिपोर्ट भी तैयार कर ली है जो डेंजर जोन में हैं और अगल छह माह में क्षेत्र में उनकी स्थिति में सुधार न हुआ तो उम्र का क्राइटेरिया लागू न होने के बाद भी उनकी टिकट काटी जा सके।

यह रिपोर्ट जिला अध्यक्षों के अलावा अनुषांगिक संगठनों के माध्यम से भी बुलाई गई है ताकि क्षेत्र में गड़बड़ी उजागर करने वाले किसी जनप्रतिनिधि के फैक्ट छिपाए न जा सकें। यह भी पता किया जा रहा है कि किस विधानसभा में किस नेता की लोकप्रियता है और वह किस स्थिति तक है? इन सभी तथ्यों की रिपोर्ट पार्टी ने जिलों से मंगाई है और इस पर मंथन कर मांंडू में होने वाले प्रशिक्षण वर्ग में सौंपे जाने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा तय करने का काम भी किया जा रहा है।

बूथ में नम्बर एक पर कौन सी पार्टी, यह भी पूछा पार्टी का सबसे अधिक फोकस बूथ पर है। बूथ स्तर पर माइक्रो मैनेजमेंट की कड़ी में बूथ समिति, पन्ना समिति और पन्ना प्रभारी बनाए जाने व इस सिस्टम को डिजिटल करने के साथ पार्टी ने यह जानकारी भी ली है कि किस बूथ में किस समाज का वर्चस्व है? भाजपा या अन्य राजनीतिक दल में से कौन से दल को संबंधित बूथ में बहुतायत आबादी वाले लोग पसंद करते हैं?

अगर भाजपा को पहले नम्बर पर पसंद नहीं करते तो उसकी वजह क्या है? बूथ स्तर पर ऐसे लोगों से बूथ समिति और पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं के संवाद की स्थिति क्या है? पार्टी के लिए कमजोर साबित होने वाले बूथों में लोगों का पिछले सालों में जुड़ाव किस हद तक हुआ है?

एक दूसरे की रिपोर्ट दे रहे संगठन

बीजेपी चुनाव प्रबंधन को लेकर इस हद तक गंभीर है कि पार्टी नेताओं से माइक्रो मैनेजमेंट में शामिल बिन्दुओं पर रिपोर्ट लेने के साथ-साथ उसे क्रास चेक करने के लिए आरएसएस के अनुषांगिक संगठनों की भी मदद ले रही है। इसके पीछे मुख्य वजह यही है कि चुनाव के समय संगठन के पास एक-एक तथ्य साफ रहें और जब टिकट वितरण और प्रचार की स्थिति आए तो संगठन को व्यवहारिक दिक्कतों का सामना न करना पड़े।