मुरैना का चुनाव हुआ दिलचस्प, भाजपा, कांग्रेस के साथ बसपा को भी जीत की उम्मीद

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मुरैना का चुनाव हुआ दिलचस्प, भाजपा, कांग्रेस के साथ बसपा को भी जीत की उम्मीद

दिनेश निगम ‘त्यागी’ की ग्राउंड रिपोर्ट 

तीसरे चरण में 7 मई को मप्र के जिन 9 लोकसभा क्षेत्रों के लिए चुनाव होना है, उनमें मुरैना मेंं सबसे दिलचस्व मुकाबला देखने को मिल रहा है। यहां तीन प्रमुख दलों भाजपा, कांग्रेस और बसपा को उम्मीद की किरण दिखने लगी है। इसीलिए यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सभा कर चुके हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती पहुंच चुकीं और अब 2 मई को कांग्रेस की प्रियंका गांधी का कार्यक्रम है। मुरैना में भाजपा के शिवमंगल सिंह तोमर, कांग्रेस के सत्यपाल सिंह सिकरवार और बसपा के रमेश गर्ग के बीच कड़ा मुकाबला है। भाजपा मजबूत दिखती है क्योंकि पार्टी के पक्ष में देश भर में माहौल है और शिवमंगल सिंह तोमर के लिए क्षेत्र के दिग्गज नेता विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। कांग्रेस को उम्मीद है क्योंकि प्रत्याशी सत्यपाल अपेक्षाकृत युवा हैं ओर उनकी इमेज अच्छी है। वे क्षेत्र के दिग्गज भाजपा नेता गजराज सिंह सिकरवार के बेटे हैं। सत्यपाल के भाई सतीश सिकरवार ग्वालियर से विधायक हैं और उनकी पत्नी ग्वालियर से महापौर। बसपा के रमेश गर्ग क्षेत्र के बड़े व्यवसायी हैं। उन्हें वैश्यों के साथ ब्राह्मण और दलित वर्ग के बड़े हिस्से का समर्थन मिलता दिख रहा है।

*0 बसपा के मैदान में उतरते ही बदल गए समीकरण* 

– चुनाव की घोषणा के बाद सबसे पहले भाजपा ने शिवमंगल सिंह को प्रत्याशी घोषित किया था, इसके बाद कांग्रेस ने सत्यपाल सिकरवार को। जब तक बसपा ने अपना प्रत्याशी नहीं घोषित किया, तब तक इन दोनों के बीच कांटे की टक्कर दिख रही थी लेकिन बाद में बसपा ने जैसे ही रमेश गर्ग को प्रत्याशी घोषित किया, तत्काल त्रिकोणीय मुकाबले के हालात बन गए। पहले उम्मीद थी कि शिवमंगल सिंह तोमर को पसंद न करने वाले ब्राह्मण, वैश्य और दलित समाज के मतदाता कांग्रेस के सत्यपाल सिकरवार के साथ चले जाएंगे लेकिन बसपा से रमेश गर्ग के मैदान में आते ही समीकरण बदल गए। रमेश क्षेत्र के बड़े व्यवसाई हैं। इसलिए यह समाज तो उनके साथ एकजुट होता दिख ही रहा है, ब्राह्मणों का एक तबका भी उनके साथ जा सकता है। बसपा की वजह से दलित वर्ग का बड़ा हिस्सा भी रमेश गर्ग का समर्थन कर सकता है। इससे अपने आप हालात त्रिकोणीय मुकाबले के बन गए। तीनाें दलों को जीत की उम्मीद दिखाई पड़ने लगी। इसीलिए सभी शीर्ष नेता मुरैना पहुंच रहे हैं।

*0 कांग्रेस ने ली राहत की सांस, मान गए राम निवास* 

– 2008 में परिसीमन के बाद मुरैना लोकसभा सीट सामान्य हुई थी, इसके बाद से यह सीट भाजपा के पास है। लेकिन मुकाबला हर बार कड़ा होता रहा है। इस बार भाजपा के शिवमंगल सिंह पर कांग्रेस के सत्यपाल भारी बताए जा रहे थे लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक राम निवास रावत की नाराजगी की खबर ने पार्टी की नींद उड़ा दी। राम निवास ने कहा था कि प्रत्याशी के चयन में उनकी राय नहीं ली गई इसलिए वे कांग्रेस का काम नहीं करेंगे। बाद में उनके भाजपा में जाने की खबर चल पड़ी, लेकिन नेतृत्व ने उन्हें मना लिया और वे भाजपा में नहीं गए। इतना ही नहीं राम निवास ने कांग्रेस के पक्ष में प्रचार भी शुरू कर दिया है। इससे कांग्रेस प्रत्याशी सत्यपाल सहित पार्टी के अन्य नेताओं ने राहत की सांस ली है। राम निवास की नाराजगी से कांग्रेस को श्योपुर जिले में खासा नुकसान हो सकता था लेकिन अब डैमेज कंट्रोल होता दिख रहा है।

*0 अब भी असमंजस में क्षेत्र का ब्राह्मण मतदाता* 

– विधानसभा के 4 माह पहले हुए चुनाव के दौरान जो घटनाएं घटीं, उससे भाजपा के प्रति क्षेत्र के ब्राह्मणों में नाराजगी है। यह शिवमंगल के प्रति ज्यादा बताई जा रही है। सजातीय मतदाता सत्यपाल के साथ है लेकिन ब्राह्मण मतदाताओं का रुख अभी साफ नहीं हुआ है। भाजपा से नाराज ब्राह्मण समाज का एक वर्ग बसपा के रमेश गर्ग के साथ जाना चाहता है जबकि समाज का एक वर्ग दलितों के साथ वोट नहीं करना चाहता। ऐसी सोच रखने वाले ब्राह्मणों का झुकाव कांग्रेस के सत्यपाल के पक्ष में दिखाई पड़ता है। खबर है कि यह समाज मतदान से पहले बैठक कर सामूहिक निर्णय लेगा कि उसे किसके साथ जाना चाहिए। इसके बाद काफी हद तक चुनाव का रुख साफ हो सकता है। इससे ही हार-जीत तय होगी क्योंकि क्षेत्र में यह समाज बड़ी तादाद में है। लोगों का कहना है कि यदि बसपा ने किसी ब्राह्मण को प्रत्याशी बनाया होता तो उसे ज्यादा लाभ होता। हालांकि पार्टी मुकाबले में दिखने लगी है।

 *0 विधानसभा में बसपा को नहीं मिली एक भी सीट* 

– प्रदेश में भाजपा की बंपर जीत के बावजूद मुरैना ऐसा लोकसभा क्षेत्र जहां विधानसभा चुनाव मेंं कांग्रेस ने बढ़त हासिल की है। भाजपा के मुकाबले कांग्रेस ने विधानसभा की 8 में से 5 सीटें जीती हैं जबकि भाजपा को सिर्फ 3 सीटों से संतोष करना पड़ा है। लोकसभा चुनाव में बसपा भले मुकाबले में हैं लेकिन विधानसभा में उसे एक भी सीट नहीं मिली। कांग्रेस द्वारा जीती गई सीटें श्योपुर, विजयपुर, जौरा, मुरैना और अंंबाह हैं। भाजपा ने तीन सीटें सबलगढ़, सुमावली और दिमनी जीती हैं। मुरैना सीट पर 1996 से लगातार भाजपा का कब्जा है। 1991 में कांग्रेस के बारेलाल जाटव ने अंतिम बार भाजपा के छविलाल अर्गल को 16 हजार 745 वोटों के अंतर से हराकर चुनाव जीता था।

*0 जातीय समीकरणों ने उलझाया चुनावी गणित* 

– चंबल- ग्वालियर अंचल की अन्य सीटों की तरह मुरैना लोकसभा क्षेत्र में भी जातीय आधार पर वोट पड़ते हैं। यहां हर जाति, समाज के मतदाता हैं लेकिन निर्णायक भूमिका में दलित, तोमर, ब्राह्मण और वैश्य बताए जाते हैं। दलित मतदाताओं की तादाद ज्यादा होने के कारण ही 2008 से पहले तक यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थी। आमतौर पर तोमर और ब्राह्मण मतदाता एकतरफा पड़ता है। इसी बदौलत यहां से नरेंद्र सिंह तोमर और अनूप मिश्रा सांसद बने। लेकिन इस बार हालात बदले हैं। ब्राह्मण मतदाता अब तक तय नहीं कर पाए कि उन्हें कहां जाना है। तोमर समाज का भाजपा के साथ जाना तय है और सिकरवार सहित अन्य क्षत्रिय और पिछड़े वर्ग के मतदाता कांग्रेस के साथ नजर आते हैं। वैश्य और दलित बसपा के रमेश गर्ग के साथ नजर आ रहे हैं। जातीय समीकरणों के कारण ही इस बार यहां का चुनाव फंसा दिखता है। तीनों दलों को अपनी अपनी जीत की उम्मीद है।

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