माँ की गृहस्थी के बर्तन

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    माँ की गृहस्थी के बर्तन

माँ ने चुन-चुनकर बसाए थे
गृहस्थी के बर्तन
कलई लगी पीतल की
दर्जनों कटोरियाँ
लंबे नक्काशीदार गिलास,
किनारे वाली बड़ी-बड़ी थालियाँ परात
सँकरे मुँह वाली देगची
PITAL KA LOTA पीतल का लोटा strong heavy material pure brass long durable 4 inch diameter : Amazon.in: Home & Kitchen
छोटी-सी बाल्टी
मजबूत कटोरदान
पुराने जमाने का पंप वाला
पीतल का स्टोव
और सबसे खास
जगन्नाथपुरी से खरीदा हुआ
पीतल का बड़ा -सा लोटा,
जिसमें वह हर रात
पानी भरकर रखती थी
Brass Pital Tope / Patila Hammered (5 Piece Set) with kalai -KB006
खाट के नीचे
पूरी ज़िंदगी माँ ने राख से बर्तन घिसे
या हथेलियों की लकीरें घिसीं
यह कहना ज़रा मुश्किल है
देगची में दाल के साथ खदबदाते
माँ के सपने
पिरस जाते थे
बच्चों और पिता की थालियों में
वार-त्यौहार
नींबू अमचूर और नमक से रगड़-रगड़ कर
माँ सिर्फ बर्तनों की
कालिख नहीं छुड़ाती थी
पीतल के बर्तन | Pital Ke Bartan – P-TAL
वह छुड़ाती थी
अपनी आत्मा पर
सदियों से जमी हुई कालिख
जो गाहे-बगाहे जमती रहती
उपेक्षा के धुँए से
खाने के साथ पक-पककर
माँ के प्यार के साथ चला आता
धातु का स्वाद भी
उस धातु का भी महत्वपूर्ण योगदान था
बच्चों के शरीर को
लम्बाई-चौड़ाई और मोटाई देने में
वक्त बीतते
स्टील के बर्तन
पीतल के बर्तनों को धकियाकर
कुछ यूँ पसर गये रसोईघर में
जैसे पसरी थी राख हथेलियों में
जैसे पसरे थे सपने थालियों में
जैसे पसरी थी कालिख आत्मा पर
स्टील की जगमग चमक में
काले पड़ते-पड़ते
छुप गये पीतल के बर्तन
स्टोर रूम और टांड पर अटालो में
होली-दीवाली उनके दिन फिरते
और फिर मुँह बिसूरते वे पड़े रहते
साल भर टांड पर
माँ के लिए पीतल के बर्तन
महज बर्तन तो थे नहीं
जिन्हें वह बेच देती
वे धातु थे
जो हुए थे उजले और काले
माँ के चेहरे की चमक
बढ़ने-घटने के साथ -साथ
माँ की बेटी सहेज कर ले गयी
पीतल-एल्युमिनियम का भंगार
अपने साथ शहर में
मूर्तियां बनाने वाले कारीगरों के पास
देखते ही देखते
कटोरी थालियाँ तश्तरियाँ गिलास स्टोव
सब एक-दूसरे में घुलकर
लेने लगे आकार
कंधे पर मटका उठाए
पतली कमर वाली पनिहारिन का
आँख कान मुँह वाले सूरज देवता का
तोता घोड़ा और मोर का
बेटी ने बरसों देखा था माँ को
सुबह उठते ही बड़े-से लोटे से पानी पीते हुए
वह अचानक उठी और
दौड़कर छीन लाई
कारीगर के हाथों से
जगन्नाथपुरी का बड़ा-सा लोटा
तरल होने से पहले ही
माँ ने जीते जी बाँट दी मूर्तियाँ अपने बच्चों में
दरअसल माँ ने बच्चों को मूर्तियां नहीं बाँटी
माँ ने दी उन्हें उनके हिस्से की धातु
जिसके स्वाद में घुलकर वे बड़े हुए थे
अब माँ
पनिहारिन के मटके की प्यास है
सूरज की आंखों का तेज है,
मोर का सपनीला पंख है
और सबसे अधिक
जगन्नाथजी के बड़े-से लोटे का
गंगाजल है।
– मालिनी गौतम

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