MP By Elections: उपचुनावों में अपनों को सहेज कर रखना चुनौतीपूर्ण

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मध्यप्रदेश में हो रहे एक लोकसभा और तीन विधानसभा उपचुनावों में भाजपा और कांग्रेस नेतृत्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने असंतुष्टों को सहेजने व उन्हें मनाकर पूरी तरह से चुनाव प्रचार में सक्रिय करने की है। दोनों ही दलों में कहीं कम तो कहीं ज्यादा असंतोष की चिन्गारियां फूट रही हैं। फिलहाल तो नामजदगी पर्चे वापस लेने के अंतिम दिन तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान तथा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सांसद विष्णुदत्त शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ तथा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को पहले उन उम्मीदवारों को चुनाव मैदान से हटाने के लिए मशक्कत करना होगी जिन्होंने उम्मीदवारी का पर्चा बतौर निर्दलीय दाखिल कर दिया है। इन चुनावों में जीत-हार का दारोमदार तो बहुत कुछ उम्मीदवारों के चेहरों पर होगा लेकिन फिर भी असली प्रतिष्ठा शिवराज और कमलनाथ की दांव पर लगी है, क्योंकि दोनों का ही प्रयास एक-दूसरे पर बढ़त लेने का है ताकि 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस की चुनावी राह कुछ आसान बनाई जा सके। चुनावी मुकाबला यदि बराबरी का होता है और दो-दो सीटों पर दोनों ही दल जीत जाते हैं तो फिर यथास्थिति रहेगी क्योंकि जहां उपचुनाव हो रहे हैं वहां पिछले चुनाव में बराबरी का मुकाबला था। शिवराज की तुलना में कमलनाथ के लिए यह अधिक जरुरी है कि वह ना केवल कांग्रेस की सीटें बचाकर रखें बल्कि किसी एक और सीट पर चुनाव जीत कर कांग्रेसी नेताओं व कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा रख सकें। इन चुनाव नतीजों का शिवराज सरकार पर तो कोई असर पड़ने वाला नहीं है लेकिन कांग्रेस की दिशा और दुर्ददशा रोकने के लिए उसका अच्छा प्रदर्शन करना लाजिमी होगा। जैसी कि पिछले कुछ सालों से भाजपा की रणनीति चुनाव के ऐन पहले दलबदल का तड़का लगाकर कांग्रेस का मनोबल डाॅंवाडोल करने की रही है वैसा ही उसने इस बार भी किया है। लेकिन उसके कार्यकर्ताओं में जो चुनाव लड़ने की उम्मीद संजोये हुए थे उनमें असंतोष देखा जा रहा है।

जहां तक लोकसभा उपचुनाव का सवाल है इस क्षेत्र में भाजपा के स्व. नंदकुमार सिंह चैहान की पकड़ काफी मजबूत रही है उन्होंने एक चुनाव को छोड़कर 1999 से लेकर अभी तक जितने भी चुनाव हुए उनमें अपनी जीत दर्ज कराई। जोबट विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की पकड़ कुछ अधिक मजबूत रही लेकिन भाजपा ने भी यहां जीत दर्ज कराई है। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा झटका यह लगा है कि उसकी विधायक रहीं तथा दिग्विजय सिंह सरकार में राज्यमंत्री रहीं सुलोचना रावत अपने बेटे के साथ ना केवल भाजपा में शामिल हुईं बल्कि वे कांग्रेस के महेश पटेल को चुनौती भी देने जा रही हैं, लेकिन यहां पर रावत का भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध किया जा रहा है तो वहीं कांग्रेस में भी खुली बगावत हो गयी है। 2018 में विधायक चुनी गयीं कांग्रेस की कलावती भूरिया के भतीजे दीपक भूरिया ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार अपना पर्चा दाखिल कर दिया है। कांग्रेस के सामने फिलहाल यह चुनौती है कि वह दीपक भूरिया को चुनाव मैदान से हटने के लिए तैयार करे और जयेस का समर्थन भी हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाये। कांग्रेस में डेमेज कंट्रोल करने में कमलनाथ की तुलना में दिग्विजय सिंह की भूमिका अधिक प्रभावी हो सकती है क्योंकि कार्यकर्ताओं व नेताओं पर उनकी ही मजबूत पकड़ है। यहां सुलोचना रावत का विरोध होने पर राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय अलीराजपुर पहुंचे और टिकट के दावेदार रहे नागर सिंह और माधवसिंह को चुनाव प्रबंधन तथा संचालन की जवाबदारी सौंप दी। भाजपा के प्रदेश महामंत्री भगवानदास सबनानी के अनुसार जोबट सीट पर पूर्व विधायक माधवसिंह डाबर को चुनाव संचालक और नागर सिंह चैहान को चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक बनाया गया है। पृथ्वीपुर में कांग्रेस की मजबूत पकड़ रही है तो दूसरी ओर समाजवादी पार्टी से भाजपा में आये शिशुपाल यादव की उम्मीदवारी से भाजपा कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। रैगांव में बागड़ी परिवार के लोगों ने ही नामजदगी पर्चा दाखिल कर दिया है। पुष्पराज बागड़ी तो मान गये हैं लेकिन बहू ने अपना पर्चा दाखिल कर दिया है इससे भाजपा की प्रतिमा बागड़ी की मुश्किल थोड़ी बढ़ गयी है।

खंडवा सीट छीनने की जुगत में कांग्रेस

खंडवा लोकसभा उपचुनाव में इस बार दोनों ही दलों की टिकट पर नये चेहरे मैदान में हैं। वैसे कांग्रेस के राजनारायण सिंह का चेहरा तो पुराना है, वे विधायक भी रहे हैं लेकिन लोकसभा का चुनाव पहली बार लड़ रहे हैं। राजनारायण सिंह कांग्रेसी राजनीति में दिग्विजय सिंह खेमे के माने जाते हैं। पिछड़े वर्ग के बड़े नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री और 2009 के चुनाव में स्व. नंदकुमार सिंह चैहान को पराजित करने वाले अरुण यादव ने अंततः पारिवारिक मजबूरियों के चलते चुनाव न लड़ने का ऐलान किया, लेकिन वह पूरी तरह से कांग्रेस को जिताने के लिए चुनाव क्षेत्र में सक्रिय हैं। कांग्रेस उम्मीदवार राजपूत समाज का है तो भाजपा ने पिछड़े वर्ग का दाॅंव चलते हुए ज्ञानेश्वर पाटिल को अपना उम्मीदवार बनाया है।

भाजपा इस बात को उभार रही है कि गुटबंदी के चलते अरुण यादव को टिकट न देकर कांग्रेस ने ओबीसी मतदाताओं का अपमान किया है। इस क्षेत्र में लगभग 26 प्रतिशत ओबीसी आबादी है। यह किसी से छिपा नही है कि अरुण यादव ने अच्छी तरह भांप लिया था कि कुछ कांग्रेस विधायकों और नेताओं का एक मजबूत गुट वहां तैयार हो गया है जो उन्हें चुनाव हरा सकता था। अंदर ही अंदर उनका विरोध करने वाले नेताओं को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का समर्थक माना जाता है। दिग्विजय सिंह अरुण यादव का समर्थन कर रहे थे लेकिन यादव स्वयं ही चुनाव मैदान से हट गए। भाजपा में भी टिकट की दावेदार रहीं पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस, स्व.चैहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह और कृष्णमुरारी मोघे की खींचतान का फायदा ज्ञानेश्वर पाटिल को मिला जो खुद पूर्व सांसद चैहान के नजदीकी हैं। अभी टिकट न मिलने से हर्षवर्धन सिंह नाराज हैं और उन्हें मनाने का पार्टी प्रयास कर रही है।

1999 का लोकसभा चुनाव स्व. नंदकुमार सिंह चैहान उर्फ नंदू भैया ने कांग्रेस के उम्मीदवार पूर्व मंत्री तनवंत सिंह कीर को 1 लाख 26 हजार मतों के अंतर से पराजित कर जीता था। 2004 में उन्होंने ही पूर्व मुख्यमंत्री रहे भगवंतराव मंडलोई परिवार के अमिताभ मंडलोई को 1 लाख 2 हजार 7 सौ मतों के अंतर से पराजित किया था। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में स्व. चैहान को हार का मुंह देखना पड़ा और वे कांग्रेस के अरुण यादव से लगभग 49 हजार से मतों से पराजित हो गये। 2014 के लोकसभा चुनाव में स्व. चैहान ने अरुण यादव को लगभग 2 लाख 59 हजार मतों से पराजित कर दिया। 2019 का लोकसभा चुनाव स्व. चैहान ने कांग्रेस के अरुण यादव को लगभग 2 लाख 73 हजार मतों से पराजित कर जीता था।

और यह भी

खंडवा लोकसभा उपचुनाव जीतना भाजपा के लिए इस मायनें में अत्याधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके चुनाव परिणाम से जो संदेश निकलेगा वह देशव्यापी होगा और इसकी अनुगूंज राष्ट्रीय फलक पर सुनाई देगी। यही कारण है कि कांग्रेस यहां पर पूरा जोर लगाने वाली है और चुनाव जीतने के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखेगी। राजनारायण सिंह द्वारा नामजदगी पर्चा दाखिल करते समय पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव तथा टिकट के अन्य दावेदार निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा जो अपनी पत्नी के लिए टिकट मांग रहे थे वह भी अन्य विधायकों के साथ मौजूद थे।

कांग्रेस ने यह दिखाने की कोशिश की है कि हमारे यहां सभी एकजुट हैं। वहीं दूसरी ओर ज्ञानेश्वर पाटिल ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान और प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा की मौजूदगी में पर्चा दाखिल किया, उस समय स्व. नंदकुमार सिंह चैहान के पुत्र हर्षवर्धन सिंह मौजूद नहीं थे। उनको मनाने के लिए भाजपा को अभी मशक्कत करना शेष है। फिलहाल तो एक सप्ताह का समय अपने-अपने रुठों को मनाने में भाजपा व कांग्रेस का जाने वाला है।