MP Election: शिवराज पहले मुख्यमंत्री,फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष,बशर्ते…..

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MP Election: शिवराज पहले मुख्यमंत्री,फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष,बशर्ते…..

 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि वे उस फिनिक्स पक्षी की तरह है, जो अपनी ही राख से फिर पैदा हो जाता है। फिनिक्स पक्षी का जिक्र पौराणिक कथाओं में होता है, जिसके अस्तित्व के बारे में कहीं प्रामाणिक जानकारी तो नहीं मिलती, लेकिन सब कुछ खो जाने के बाद फिर से सब कुछ पा लेने के माद्दे को फिनिक्स के पुनर्जीवन से जोड़कर जरूर बताया जाता है। तो शिवराज की यह बात उन चर्चाओं के परिप्रेक्ष्य में थी, जिनमें यह प्रचारित किया जा रहा है कि ये विधानसभा चुनाव उनके राजनीतिक जीवन का पटाक्षेप साबित होंगे। जबकि हालिया घटनाक्रम बता रहे हैं कि ये बातें दुष्प्रचार ज्यादा हैं। यह भी कहा जा सकता है कि शिवराज सिंह चौहान जहां पहुंच गये हैं, वहां से उन्हें खाली हाथ लौटाना संभव नहीं । ऐसे में आने वाला समय मप्र भाजपा और प्रदेश की राजनीति के लिये बेहद खास,रोमांचक और ऐतिहासिक होगा।

 

बीते एक साल में ऐसा कोई महीना नहीं रहा, जब इस आशय की अफवाहें न उड़ी हों कि शिवराज अब गये, तब गये। उनके काम करने के तरीके,प्रदेश में बढ़ती उनकी स्वीकार्यता व लोकप्रियता और मतदाताओं को लुभाने के लिये उनके द्वारा की जा रही घोषणाओं की कड़ियों को एक सूत्र में गूंथने पर जो माला बन रही थी, वे यह संकेत तो दे रहे थे कि वे कहीं न कहीं राष्ट्रीय नेतृत्व की मंशा या भाजपा की रीति-नीतियों से परे जाकर भी फैसले ले रहे हैं, जो उनकी बिदाई का सामान बन सकता है। फिर भी वैसा कुछ नहीं हुआ और विधानसभा चुनाव आ गये।

 

इसलिये जब पहली सूची घोषित हुई तो एक बार फिर उन चर्चाओं ने जोर मारा कि चुनाव के बाद तो शिवराज की चलाचली तय है। यह भी कि उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया जा रहा। इसके कुछ अंतराल के बाद ही दूसरी,तीसरी,चौथी सूची का आना,शिवराज को भी बुदनी से प्रत्याशी बनाना,शिवराज का फिनिक्स से खुद की तुलना करना,उनके चहेते नये-पुराने चेहरों को टिकट देने से शिवराज के अस्तित्व पर मंडरा रही धुंध छंटती दिखी और आसमान तब पूरी तरह से साफ हो गया, जब भाजपा के सबसे ताकतवर नेता अमित शाह ने हाल ही के मप्र दौरे में शिवराज सिंह चौहान तो पर्याप्त तवज्जो दी । ये संकेत काफी था राष्ट्रीय और प्रादेशिक नेतृत्व के बीच तालमेल का, परस्पर भरोसे का।

अब शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक दोस्तों और विरोधियों को भी इस बात में गहरी दिलचस्पी है कि उनका राजनीतिक भविष्य क्या करवट लेगा? जैसा कि आहिस्ता-आहिस्ता चुनाव की तस्वीर साफ हो रही है,भाजपा फिर से सत्ता में लौटती दखाई दे रही है और वह भी भारी अंतर के साथ । ऐसे में यह संभव ही नहीं कि शिवराज की उपेक्षा कर कोई फैसला ले लिया जाये । तब भाजपा की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह कौन बनेगा करोड़पति खेल के सात करोड़ वाले सवाल जितना महत्वपूर्ण सवाल उठ रहा है। शिवराज सिंहं चौहान,नरेंद्र सिंह तोमर,कैलाश विजयवर्गीय,प्रहलाद पटेल,वी डी शर्मा, नरोत्तम मिश्रा,गोपाल भार्गव-ये वे सात नाम हैं, ,जो मुख्यमंत्री पदे के दावेदार माने जाते हैं। वी डी शर्मा के अलावा सभी विधानसभा चुनाव लड़ भी रहे हैं। तब देखना दिलचस्प होगा कि अनुकूल परिणामों के बाद श्यामला हिल्स का बंगला किसका निवास बनता है।

 

जो अभी तक के आसार हैं, उनके अनुसार नरेंद्र सिंह तोमर की सीट सबसे मुश्किल में दिख रही है। बदली परिस्थितियों में वे यदि सीट निकाल लेते हैं और सरकार बनती है तो पहले क्रम पर वे ही होंगे। हार जाने पर शिवराज सिंह चौहान की ताजपोशी के आसार सबसे ज्यादा हैं। उसकी वजह भी है । मई 2024 में लोकसभा चुनाव हैं । मप्र में शिवराज के मजबूत जनाधार को कोई खारिज नहीं कर सकता। ऐसे में यदि उन्हें हटा दिया गया तो लाड़ली बहनों-भांजियों का एकतरफा लाड़ भाजपा को मिलना संदिग्ध होगा। तो सवाल यह है कि क्या कैलाश विजयवर्गीय,प्रहलाद पटेल जैसे राष्ट्रीय नेता शिवराज के मंत्री बनना पसंद करेंगे? कतई नहीं । वे ससम्मान विधायकी छोड़कर फिर से केंद्र में चल देंगे, जहां निश्चित अहम जिम्मेदारी भी मिलेगी ही। तब संभव है कि कैलाश विजयवर्गीय अपनी सीट छोड़कर फिर से बेटे आकाश को उप चुनाव लड़वायें। इसी तरह से प्रहलाद पटेल अपने छोटे भाई जालम सिंह के लिये सीट छोड़कर चल दें।

 

इसका मतलब यह भी नहीं कि शिवराज सिंह फिर से पांच साल के लिये मप्र के मुख्यमंत्री बन जा्येंगे। संभव है कि लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में सरकार आने पर शिवराज को वहां कोई जवाबदारी दे दी जाये। एक अन्य संभावना भी आकार ले रही है कि जे पी नड्‌डा की जगह शिवराज सिंह चौहान को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया जाये। इस पद के लायक तमाम योग्यतायें शिवराज में मौजूद हैं। वे कुशल वक्ता हैं। मोहिनी छवि हैं। महिलाओं के बीच लोकप्रिय हैं। कमोबेश हिंदी प्रांतो में तो उन्हें पहचान का संकट नहीं है।संगठन की भी उन्हें गहरी समझ है। ऐसा इसलिये किया जा सकता है कि भाजपा मप्र में भविष्य का नेतृत्व तैयार करना चाहेगी, जो शिवराज के लगातार बने रहने से संभव नहीं है। न ही शिवराज को दरकिनार किया जा सकता है। आखि्रकार, वे चार बार मप्र के मुख्यमंत्री रहे हैं और कांग्रेस की अच्छी भली सरकार को धूल चटाने में उनका योगदान भी कम नहीं । उन्हें सम्मानजनक विकल्प देना भाजपा की नैतिक जिम्मेदारी रहेगी।

 

कुल मिलाकर मप्र और भाजपा की राजनीति में नवंबर-दिसंबर क्रांतिकारी,दिलचस्प और बेहद परिवर्तनशील साबित होंगे।