MP Human Rights Commission : स्वसंज्ञान लेकर सरकार से पूछा ‘गरीबों के इलाज की क्या व्यवस्था!’

विदिशा जिले आदिवासी बालिका के पेट में छिद्र के इलाज पर प्रतिवेदन माँगा

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Bhopal : मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति नरेन्द्र कुमार जैन ने दो मामलों में स्वसंज्ञान (Self Cognition) लेकर संबंधितों से समय-सीमा में जवाब मांगा है।

पहला मामला विदिशा जिले की एक गरीब आदिवासी बालिका को सही उपचार नहीं (Poor Tribal Girl not Getting Proper Treatment) मिल पाने का है। आयोग ने मुख्य सचिव व स्वास्थ्य सचिव से पूछा है कि ऐसे गरीब व्यक्तियों के इलाज की क्या व्यवस्था है!

विदिशा जिले के गंजबासौदा में बीते मंगलवार को ग्राम चैरावर टपरा निवासी मंगल आदिवासी ने अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें उन्होनें अपनी पुत्री लक्ष्मी आदिवासी के पेट में जन्मजात छिद्र (Congenital Perforation in Abdomen) होने के कारण उसके इलाज की व्यवस्था कराए जाने की मांग की।

ज्ञापन में कहा गया है कि वह ग्राम चैरावर का स्थाई निवासी होकर आदिवासी जनजाति का व्यक्ति होकर मेहनत-मजदूरी करके अपने परिवार का पालन-पोषण कर पाता है। उसके पास न तो गरीबी रेखा का राशन कार्ड है, न आयुष्मान कार्ड है। उसकी पुत्री के जन्म के समय डाॅक्टर ने कहा था कि जब पुत्री दो-ढाई साल की हो जाएगी, तब इसका ऑपरेशन संभव हो सकेगा। इसे आप दो-ढाई साल की उम्र हो जाने पर ही लाना। उसकी पुत्री अब दो-ढाई साल की हो गई है, इसलिए अब उसकी पुत्री को ऑपरेशन की आवश्यकता है। परन्तु वह इतना सक्षम नहीं है कि अपनी पुत्री का ऑपरेशन करा सके।

इस मामले में संज्ञान लेकर मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने मुख्य सचिव, मप्र शासन, सचिव मप्र शासन, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, भोपाल सहित कलेक्टर एवं मुख्य चिकित्सा व स्वास्थ्य अधिकारी, विदिशा से एक माह में तथ्यात्मक प्रतिवेदन मांगा है। आयोग ने मुख्य सचिव तथा स्वास्थ्य सचिव से यह भी पूछा है कि ऐसे गरीब व्यक्तियों के इलाज की क्या व्यवस्था है!