MP News: BJP- सत्ता और संगठन के जबरदस्त तालमेल ने रचा इतिहास,Congress -आपसी मनमुटाव से लगा हार का शर्मनाक कलंक!
भोपाल:मध्य प्रदेश में भाजपा की ऐतिहासिक जीत और कांग्रेस की शर्मनाक हार ने दोनों ही दलों के नेताओं के कामकाज की स्थिति को साफ कर दिया है। प्रदेश में कांग्रेस का लोकसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया। मध्य प्रदेश बनने के बाद यह पहला अवसर है जब यहां से लोकसभा से कांग्रेस की ओर से कोई भी नेता प्रतिनिधित्व नहीं करेगा।
कांग्रेस की इस हार में जितना उसके नेताओं का दोष माना जा रहा है, वहीं भाजपा के सत्ता और संगठन में बैठे नेताओं के बीच का जबरदस्त तालमेल और रणनीति को माना जा रहा है।
भाजपा के नेताओं ने प्रदेश की सभी 29 सीटों पर जीत के लिए अलग-अलग रणनीति बनाई और पूरी ताकत के साथ संगठन और सत्ता में बैठे मंत्री जुटे।
प्रदेश भाजपा के नेताओं ने चुनाव से पहले ही यह ठान लिया था कि उन्हें इस बार 29 की 29 लोकसभा सीटें जीतना है। इस लक्ष्य के साथ ही उसने एक-एक सीट पर रणनीति बनाना शुरू किया। इसी रणनीति के तहत उम्मीदवारों का चयन किया गया। साथ ही यह भी तय किया किया गया कि उम्मीदवार के साथ पूरा संगठन ताकत लगाएगा। इसके कई तरह की योजनाएं बनाई गई।
यह पूरी रणनीति केंद्रीय नेतृत्व को भरोस में लेकर बनी। इसी रणनीति के तहत केंद्रीय नेतृत्व ने क्लस्टर प्रभारी बनाए। जिसमें दोनों उपमुख्यमंत्री के साथ ही प्रदेश सरकार के कद्दावर मंत्रियों को शामिल किया गया। वहीं देश भर में सिर्फ मध्य प्रदेश में न्यू ज्वाइनिंग टोली का गठन हुआ। इनके साथ ही हर सीट पर प्रभारी, संयोजक से लेकर अर्द्ध पन्ना प्रभारी तक को काम में जुटाया गया।
*जनवरी में ही बना दिए थे क्लस्टर प्रभारी*
विधानसभा चुनाव पूरे होते ही जनवरी में ही भाजपा यहां पर लोकसभा चुनाव में जुट गई थी। केंद्रीय संगठन ने जनवरी में ही प्रदेश की 29 सीटों के सात क्लस्टर में बांट कर प्रदेश के कद्दावर नेताओं को यह जिम्मेदारी सौंपी। जिसमें उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल, जगदीश देवड़ा, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, विश्वास सारंग, पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा और भूपेंद्र सिंह को जिम्मेदारी दी गई। इन सभी ने क्लस्टर प्रभारी बनने के बाद अपने-अपने क्षेत्रों में जाकर बैठक ली। उसके बाद इनके प्रभार बदले गए, जिसमें ग्वालियर का प्रभार भूपेंद्र सिंह, इंदौर के जगदीश देवड़ा भोपाल के राजेंद्र शुक्ला, रीवा के प्रहलाद पटेल, महाकौशल के कैलाश विजयवर्गीय, बुंदेलखंड नरोत्तम मिश्रा, विश्वास सारंग को निमाड़ का क्लस्टर प्रभारी बनाया गया। इसके साथ ही इन सभी नेताओं ने अपने क्लस्टर वाले क्षेत्र में दिन रात एक कर दिया और पार्टी की जीत के लिए जुनूनी अंदाज में लग गए।
जिला अध्यक्ष से लेकर अर्द्ध पन्ना प्रभारियों तक से सीधी बातचीत करना, क्षेत्र के नेताओं के बीच मन मुटाव को दूर कर एकजुट करने से लेकर बूथ प्रभारी तक को एकजुट करने और पार्टी की जीत में जुटाए रखने का काम इस टीम ने किया। इन सब की भोपाल में लगातार बैठक होती रही। इन बैठकों में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को हर अपडेट ये नेता देते रहे।
*न्यू ज्वाइनिंग टोली ने दिखाया कमाल*
मध्य प्रदेश में भाजपा नेताओं ने तय किया कि प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता पार्टी से खासे नाराज हैं और भाजपा का दामन थामना चाहते हैं, ऐसे लोगों को पार्टी में लाने का जिम्मा पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने उठाया। उन्हें न्यू ज्वाइनिंग टोली का प्रदेश संयोजक बनाया गया। उन्होंने ऐसे नेताओं से संपर्क किया और उन्हें भाजपा में शामिल करवाया। कांग्रेस के नेता ही नहीं बल्कि समाज के अन्य वर्ग के नेताओं को भी मिश्रा ने भाजपा से जोड़ा। प्रदेश में चार लाख से ज्यादा लोगों को मिश्रा की न्यू ज्वाइनिंग टोली के जरिए भाजपा में शामिल करवाया। जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, जबलपुर महापौर जगत बहादुर अन्नू, विधायक कमलेश शाह, पूर्व विधायक शशांक भार्गव, संजय शुक्ला, विशाल पटेल जैसे कई बड़े नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए। न्यू ज्वाइनिंग टोली के इस कमाल ने कांग्रेस को सबसे ज्यादा कमजोर किया।
*मुख्यमंत्री और वीडी शर्मा ने बांधा समां*
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और वीडी शर्मा ने अपनी सभाओं और कार्यकर्ता सम्मेलन के लिए जमकर समां बांधा। डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश भर में 197 सभाएं की। वे प्रदेश के 230 विधानसभा क्षेत्रों में से 185 विधानसभा क्षेत्रों में पहुंचे। उन्होंने 56 रोड शो भी किए। वे 22 लोकसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार का नामांकन भरवाने की गए। वहीं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा 72 सभाएं की, 18 रोड शो किए। इसके साथ ही उन्होंने 16 रोड शो किए और कार्यकर्ताओं के 65 सम्मेलन किए। इन सभी ने भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ ही जनता के बीच में जबरदस्त प्रभाव छोड़ा और भाजपा के पक्ष में एक तरफा माहौल बना।
*दिग्गज नहीं कर पाए पटवारी का नेतृत्व स्वीकार*
इधर भाजपा में जहां पूरी ताकत से सभी नेता लोकसभा चुनाव में जुटे हुए थे। वहीं कांग्रेस अपने मनमुटाव में ही उलझी रही। कांग्रेस के बड़े नेता यह स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि उन्हें जीतू पटवारी के नेतृत्व में काम करना पड़ेगा। वहीं कार्यकर्ताओं में भी जीतू पटवारी की पैठ नहीं होने से कार्यकर्ता भी जोश में नहीं आ सके। कांग्रेस को जहां अच्छेu उम्मीदवार तलाशने में पसीना बहाना पड़ रहा है, वहीं विभिन्न गुटों में बंटे पार्टी कार्यकर्ता भी एकजुट नहीं हो पा रहे थे। पार्टी से नाराज नेताओं को मनाने वाला कोई नहीं था,देखते ही देखते कई नेता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए।
*नहीं निकले दिग्गज नेता अपने क्षेत्र से बाहर*
इस चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता भी अपने क्षेत्र से बाहर नहीं निकले। कमलनाथ अपने बेटे नकुल नाथ के चुनाव में ही सक्रिय रहे। इसके बाद उन्होंने बैतूल और होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र में ही सभा की। इसके अलावा वे मध्य प्रदेश की किसी सीट पर प्रचार करने के लिए नहीं गए। वहीं दिग्विजय सिंह भी राजगढ़ में अपने चुनाव से बाहर नहीं निकल सके। हालांकि उनका यहां मतदान होने के बाद वे मालवा क्षेत्र के कुछ लोकसभा क्षेत्रों में गए थे, लेकिन उनकी सभाओं का प्रभाव जनता पर नहीं पड़ सका।