MP News: मजदूरों ने मनरेगा मजदूरी बढाने खून से लिखा प्रधानमंत्री को तीन सूत्री मांग पत्र

मशीनों से हो रहा मनरेगा कार्य, मजदूर पलायन को मजबूर- अमित भटनागर

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छतरपुर से राजेश चौरसिया की रिपोर्ट

छतरपुर: छतरपुर में 1 मई मजदूर दिवस के उपलक्ष्य में मजदूरों द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर के नेतृत्व व जन विकास संगठन के बैनर तले अपने खून से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीन सूत्री मांग पत्र सौंपा।                                              IMG 20220501 205147

प्रधानमंत्री के नाम का यह पत्र छतरपुर SLR सियाराम शरण रावत को सौंपते हुए मजदूरों की मांग थी कि मनरेगा मजदूरों की मजदूरी 204 रूपये है, जो कि बहुत कम है, उसको बढाकर 400 रुपये की जाय। मजदूरी भुगतान प्रक्रिया में सुधार व मशीनों से हो रहे मनरेगा कार्य को तत्काल बंद करा मजदूरों से कराया जाय।

सामाजिक कार्यकर्ता व जन विकास संगठन के अमित भटनागर का कहना था कि छतरपुर जिले में मनरेगा के काम मशीनों से कराये जा रहे है, जिसे तत्काल रुकवाया जाना चाहिए। अमित का कहना था कि वे पहले भी इस सम्बन्ध में कई ज्ञापन दे चुके है पर उनकी मांग को गंभीरता से नही लिया गया जिस कारण बड़ी मात्रा में मजदूर महानगरों की ओर पलायन करने को मजबूर है। मजदूरों के बड़ी संख्या में पलायन से गांव का समग्र विकास भी नहीं हो पाता है व सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग के बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है।

मनरेगा मजदूर बहादुर आदिवासी, पुन्ना आदिवासी और लखन यादव का कहना था कि पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस से लेकर हर चीज की कीमत आसमान छू रही है। महंगाई को देखते हुए सरकार ने अपने कर्मचारियों की वेतन को बढ़ाया है। वैसे भी निजी कर्मचारियों की तुलना में सरकारी कर्मचारियों की वेतन कहीं ज्यादा है, लेकिन निजी कार्य करने वाले मजदूरों की अपेक्षा मनरेगा के तहत सरकारी कार्य करने वाले मजदूरों की मजदूरी 204 रुपए हैं जो कि बहुत कम है।

मजदूरी का समय से भुगतान भी नहीं होता, हम लोगों का कैसे गुजारा होता है हम ही जानते है। मजदूरों का कहना था कि मकान, सड़क, पुल, विद्यालय, अस्पताल, सरकारी कार्यालय आदि देश को बनाने का महत्वपूर्ण कार्य करने वाले मजदूर के साथ सरकार ही इस तरह का शोषणकारी व्यवहार करेगी तो सबका साथ सबका विकास कैसे संभव होगा।

मांग पत्र सौपते समय सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर, बहादुर आदिवासी कुपिया, प्राकृतिक चिकित्सक राकेश असाटी, बबलू कुशवाहा भैरा, बृजेश शर्मा, वेदप्रकाश पाठक कदवा, हिसाबी राजपूत मातगाँव, लखन यादव, मुन्ना आदिवासी जटियारी, किशन आदिवासी हथनाई आदि मजदूर और सामाजिक कार्यकर्ता सहभागी रहे।