BJP’s Mission-2023: कितनी तोमर की चलेगी, कितना संगठन सक्रिय होगा ?

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BJP’s Mission-2023: कितनी तोमर की चलेगी, कितना संगठन सक्रिय होगा ?

चुनाव में सारा खेल जनता की किसी दल या उसके नेता के प्रति बनाई गई धारणा का रहता है। जबकि विधानसभा चुनाव के करीब 4 माह पहले मध्यप्रदेश की जनता ने खासकर भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देने का पक्का मन बना लिया हो,ऐसा तो नजर नहीं आ रहा। ये बात भाजपा के ही वे खांटी नेता-कार्यकर्ता कर रहे हैं, जो जनसंघ के समय इस खेल के महारथी रहे हैं। उन्हें हल्की सी रोशनी नरेंद्र सिंह तोमर के चुनाव संयोजक बनाने पर नजर आ रही है,बशर्ते, वे पुराने कार्यकर्ता को उसी तरह से साध लें, जैसे अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में वे किया करते थे।

BJP's Mission-2023: कितनी तोमर की चलेगी, कितना संगठन सक्रिय होगा ?

यह सही है कि भाजपा के बुजुर्ग,अनुभवी,कर्मठ,निस्वार्थ भाव से काम करने वाले नेता-कार्यकर्ताओं के बीच तोमर की आमद का सकारात्मक संदेश गया है। उनमें उम्मीद जागी है कि जिन पारंपरिक और सांगठनिक मजबूती से जनसंघ के समय से चुनाव लड़े जाते रहे हैं, नरेंद्र सिंह तोमर उन तौर-तरीकों को फिर से आजमायेंगे। यदि वैसा किया गया तो न केवल आम कार्यकर्ता का उत्साह लौट आयेगा, बल्कि जनता को फिर से भाजपा की तरफ आकर्षित किया जा सकेगा। यूं वे यह भी मानते हैं कि इस तरह के सांगठनिक कार्य चुनाव से करीब 6 महीने पहले प्रारंभ हो जाने चाहिये, लेकिन तोमर ने पुराना मान-सम्मान बहाल कर दिया और उन्हें काम पर लगा दिया तो ठाकरे-जोशी-प्यारेलाल पद्धति के चुनाव की संरचना जीवंत हो उठेगी, जो अंतत: मप्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार एक बार फिर से बनने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

मप्र में अनेक चुनावों का संचालन कर चुके और ठाकरे काल में अनेक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने वाले एक नेता ने कहा कि अभी-भी यदि एक-एक पल और एक-एक कार्यकर्ता का समुचित और संपूर्ण उपयोग कर लिया गया तो वे नतीजे पलटने में सहायक हो सकते हैं। हालांकि वे यह चिंता भी जताते हैं कि प्रदेश में सरकार और संगठन में बैठे लोग यदि आत्म मुग्घता का रवैया बनाये रहे तो तोमर भी कुछ खास नहीं कर पायेंगे। संगठन कमजोर भी इसी वजह से हुआ है।

भाजपा सरकार और संगठन में अब बदलाव यानि भटकाव...

इन पुराने नेताओं की प्रमुख चिंता तो यही है कि जनता ने अभी तक भाजपा के पक्ष में ऐसा मन ही नहीं बनाया कि उसे हर हाल में भाजपा को ही वोट देना है। जैसी स्थिति 1977 में जनता पार्टी के लिये,1984 में कांग्रेस के लिये, 2014 और 2019 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के लिये बनी थी,उसके दूर-दूर तक पते नहीं हैं। मप्र भाजपा का ये प्रौढ़ और बुजुर्ग तबका इससे कतई प्रभावित नहीं कि शिवराज सरकार जनता के अलग-अलग वर्ग के लिये ढेरों घोषणायें करती जा रही हैं।

लाड़ली बहना,संविदा कर्मचारियों को स्थायी वेतनमान के लाभ, कर्मचारियों को डीए की घोषणा,जिला पंचायत अध्यक्ष से लेकर तो पंच के वेतनमान में तीन गुना तक वृद्धि आदि कदमों से वो असर नहीं होने वाला जो जीत की गारंटी मान लिया जाये। इसके लिये वैसा कुछ करना होगा, जैसा 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने किया था, जब उसने किसान के 2 लाख रुपये तक के कर्ज को माफ करने की घोषणा कर बाजी पलट दी और सत्ता में आ गई थी। इन पुराने नेताओं का मानना है कि हाल-फिलहाल की घोषणायें व्यापक प्रभाव नहीं छोड़ने वाली।

BJP's Mission-2023: कितनी तोमर की चलेगी, कितना संगठन सक्रिय होगा ?

ऐसे में नरेंद्र सिंह तोमर के लिये यह देखना-जानना-सुनना जरूरी और दिलचस्प होगा कि कैसे और इतने कम समय में क्या किया जा सकता है। इसके लिये सबसे पहले तो तोमरजी को ही पूरा ध्यान मप्र पर लगाना होगा। फिर पुराने कार्यकर्ताओं के जोश पर पड़ी धूल को हटाना होगा। उसके बाद जब वे काम पर लगेंगे तो उसकी गति क्या होगी और किस तरह वे जनमानस बनाने-बदलने में सफल हो पायेंगे? यह कठिन और बेहद परिश्रम साध्य साबित होगा। वैसे भाजपा संगठन की यह खूबी तो है कि उसका कार्यकर्ता यदि मैदान पकड़ लेता है तो दिन-रात का फर्क भुलाकर वह जी तोड़ मेहनत कर लेता है। कांग्रेस इस मामले में अभी सदियों पीछे है। बहरहाल।

इस समय प्रदेश भाजपा का कार्यकर्ता नये-नये प्रभारियों,संगठन के नेताओं की हर दो-चार दिन की गैर जरूरी बैठकों और उसमें दिये जा रहे भाषणों से ऊब गया है। वह इसे समय की बरबादी मान रहा है, लेकिन नेतागण बाज नहीं आ रहे। उसे मैदान की ओर भेजने का सिलसिला तो शुरू ही नहीं हो सका है। लगभग सभी जिला मुख्यालयों से खबरें आ रही हैं कि इन दिनों बूथ स्तर की भी बैठकें हो रही हैं,उनमें उन तपेतपाये नेताओं को तो बुलाया तक नहीं जा रहा , जो जीत के गणित जानते हैं और जिताने की गारंटी माने जाते हैं। इस बड़े गड्‌ढे को तेजी से भरना तोमरजी के लिये बड़ी जिम्मेदारी होगी। वे गुटबाजी से ऊपर उठकर काम करने के लिये जाने जाते हैं। फिर भी पूरे प्रदेश का प्रवास कर रूठों को मनाने,काम पर लगाने जितना समय तो उनके पास भी नहीं है।संभव है कि इसके लिये वे भोपाल में एक बड़ी बैठक आहूत करें और संभागीय मुख्यालयों पर जाकर वहां चर्चा करें।

कुल मिलाकर नरेंद्र सिंह तोमर के सामने मुद्द‌ा केवल यह नहीं है कि वे कार्यकर्ताओं को सक्रिय करें, बल्कि यह भी रहेगा कि पूरे प्रदेश से सबसे पहले उन्हें जो आत्म सम्मान आहत होने की शिकायतों का अंबार मिलेगा,उसकी छंटनी वे कैसे और कब कर पायेंगे? दूसरा, इस मंथन से जो विचार-सुझाव निकलकर आयेंगे, उन्हें वे प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व तक पहुंचाकर उनसे सहमत कैसे करवा भी पायेंगे? यदि इस दरम्यान अहम का टकराव हुआ और प्रदेश या देश के स्तर पर उनके आकलन की बजाय ऊपर से मिले दिशा-निर्देशों के पालन का ही दबाव रहा तो कितने परिणाम दे पायेंगे?

यूं अभी तक तो नरेंद्र सिंह तोमर के खाते में एक भी पराजय नहीं है तो वे भी चाहेंगे कि इस बार भी वे अनुकूल परिणामों के साथ बरकरार रहें, किंतु इस बार केवल उनके इतना सोचने भर से होने वाला नहीं है। यदि तोमरजी अपने हिसाब से चुनाव संरचना से लेकर तो किस व्यक्ति का कहां,कैसे उपयोग किया जाये जैये मुद्द‌े तय नहीं कर पाये तो उनके खाते से सफलता फिसल भी सकती है।

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रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।