रतलाम की श्रीमती सीमा प्रभु ने नोकरी से मिला सेवानिवृत्ति का फंड अवधेशानन्द गिरि जी की कथा आयोजकों को किया समर्पित!

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रतलाम की श्रीमती सीमा प्रभु ने नोकरी से मिला सेवानिवृत्ति का फंड अवधेशानन्द गिरि जी की कथा आयोजकों को किया समर्पित!

Churu : राम-नाम ही जीवन का सबसे बड़ा सहारा हैं, यह नाम संसार के सभी दुखों को हरता हैं और भक्त को परम शांति प्रदान करता हैं राम जी के त्याग ने धैर्य, मर्यादा और परिवार के प्रति समर्पण की छाप छोड़ी है जिसका इतिहास गवाह है। यह उपदेश अवधेशानन्द गिरि जी महाराज ने राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र के चूरू जिले के सालासर बालाजी में 19 दिसम्बर से 25 दिसम्बर तक आयोजित हुई आयोजन की मुख्य यजमान श्रीमती सीमा प्रभु (रतलाम) थी आयोजित हुई श्रीराम कथा में दिए। इस धर्ममय आयोजन के सैकड़ों की श्रद्धालु साक्षी बने।

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आयोजित श्री राम कथा बहुत दिव्य और भक्तिमय रही। यह कथा रामायण की प्रमुख लीलाओं पर केंद्रित थी, जिसमें महाराज जी ने अपनी ओजस्वी वाणी से भक्तों को राम भक्ति का अमृत पान कराया। उन्होंने रामजी का वनवास, सीता हरण और रावणवध जैसे प्रसंगों से जीवन में संकटों का सामना कैसे करें, यह सिखाया। कथा में सालासर बालाजी के कारण हनुमान जी की राम भक्ति पर गहन चर्चा हुई। हनुमान जी को राम का सबसे बड़ा भक्त बताते हुए उन्होंने कहा कि सच्ची भक्ति में अहंकार का त्याग और पूर्ण समर्पण होता है। इसके साथ-साथ उन्होंने भरत जी के चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि भरत जी का माता और राम के प्रति प्रेम अपने आप में मिसाल थी जो आदर्श भाईचारे का प्रतीक बन गया। उन्होंने निषादराज केवट और शबरी जैसे साधारण भक्तों की राम के प्रति निश्छल भक्ति से सीख दी कि भगवान जाति-धर्म नहीं, केवल श्रद्धा देखते हैं। सीता जी का पतिव्रत धर्म सीता माता के त्याग और पवित्रता पर प्रकाश डाला जो महिलाओं के लिए एक आदर्श है। महाराज जी ने श्रद्धालुओं को जोर देकर कहा कि राम कथा सुनना जीवन को दिव्य बनाता है, मन को शुद्ध करता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।

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इस कथा में देश-भर से श्रद्धालुओं ने धर्मलाभ लिया जिनमें रतलाम की श्रीमती सीमा प्रभु मुख्य यजमान थी जो भगवान की लीलाओं से इतनी प्रसन्न हुई और उन्होंने अपना सेवानिवृत्ति का सारा फंड आयोजित कथा में दे दिया। यह कथा लाखों भक्तों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत की साक्षी बनी, आपको बता दें कि श्रीमती सीमा प्रभु ने स्वामी जी को मोबाइल लगाया और अपनी मन की बात कही तब स्वामी जी ने बहुत बड़ी बात कही कि मैं रुपयों को क्या करु यदि तुम देना ही चाहती हों तो कथा आयोजकों को दीजिए और स्वामीजी की आज्ञा का पालन करते हुए अपने जीवन की सेवानिवृत्ति की राशि कथा आयोजकों को समर्पित कर अपना, रतलाम तथा समाज का नाम रोशन कर दिया!