मुंडा, मोटे अनाज, मूंग और मध्यप्रदेश…
आज यानि 9 जून 2023 को मुंडा जनजाति के लोकनायक बिरसा मुण्डा की 123वीं पुण्य तिथि है। 24 वर्ष 6 माह और 25 दिन की अल्पायु में मुंडा शहीद हो गए। पर आदिवासी हितों के लिए अंग्रेजी हुकूमत का सशक्त और सशस्त्र विरोध करने वाले बिरसा मुंडा के कामों से वह आदिवासी समाज में भगवान की तरह पूजे जाते हैं। बिरसा मुंडा का जन्म मुंडा जनजाति के गरीब परिवार में पिता सुगना मुंडा और माता करमी मुंडा के सुपुत्र रूप में 15 नवम्बर 1875 को झारखण्ड के खुटी जिले के उलीहातु गाँव में हुआ था। बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें राँची कारागार में लीं। खौफ के चलते अंग्रेजों द्वारा उन्हें जहर देकर मारा गया। बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।बिरसा मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी है। मध्यप्रदेश में सर्वाधिक जनजातीय जनसंख्या होने के चलते मुंडा का यहां विशेष सम्मान है। मध्यप्रदेश में ही उनके जन्मदिन को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने के पहले आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिरकत की थी। 1 अक्टूबर 1894 को बिरसा मुंडा ने सभी मुंडाओं को एकत्र कर अंग्रेजों से लगान (कर) माफी के लिये आन्दोलन किया, जिसे ‘मुंडा विद्रोह’ या ‘उलगुलान’ कहा जाता है।
1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और जिससे उन्होंने अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग “धरती आबा”के नाम से पुकारा और पूजा करते थे। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी। 1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।
जनवरी 1900 डोम्बरी पहाड़ पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत सी औरतें व बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों द्वारा गिरफ़्तार कर लिए गए। 10 नवंबर 2021 को भारत सरकार ने 15 नवंबर यानी बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। तो बिरसा मुंडा (15 नवम्बर 1875 – 9 जून 1900) एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए। भारत के आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं और ‘धरती आबा’ के नाम से भी जाना जाता है। और मध्यप्रदेश में आदिवासी समाज मुंडा जयंती और पुण्यतिथि को पूरी आस्था से मनाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में मोटे अनाज के प्रयोग के लिए जन-जन को प्रेरित किया है, तो मोटे अनाज का समर्थन मूल्य भी केंद्र सरकार लगातार बढ़ा रही है ताकि मोटे अनाज उत्पादक सम्मान की भावना से उत्पादन के लिए प्रोत्साहित हो सकें। मोदी की कवायद असर दिखा रही है। अब मोटा अनाज स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुए करोड़ों लोगों के दिलों पर राज कर रहा है। केंद्रीय कैबिनेट ने हाल ही में उड़द, तुअर समेत खरीफ फसलों की एमएसपी बढ़ाने को कैबिनेट की मंजूरी दी है। 2183 रुपया क्विंटल धान की एमएसपी की गई है। ए ग्रेड का धान 2203 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है। ज्वार की एमएसपी 3180 रुपये प्रति क्विंटल की गई है। इसी तरह बाजरा, मक्का, रागी सहित मोटे अनाज के न्यूनतम समर्थन मूल्य में खासी बढ़ोतरी हुई है।
सरकार ने मूंग दाल का समर्थन मूल्य सबसे ज्यादा 10 प्रतिशत बढ़ाया है।न्यूनतम समर्थन मूल्य में सबसे अधिक 10.4 प्रतिशत की वृद्धि मूंग में की गई है। मूंग का एमएसपी अब 8,558 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। पिछले साल यह 7,755 रुपये प्रति क्विंटल था। और अच्छी बात यह है कि ग्रीष्मकालीन मूंग फसल के उत्पादन में मध्यप्रदेश ने बाजी मारी है। देश का 40% उत्पादन मध्यप्रदेश में हो रहा है।12 जून से समर्थन मूल्य पर खरीदी शुरू होगी। मध्य प्रदेश के 31 जिलों में इस वर्ष ग्रीष्मकालीन मूंग की बंपर पैदावार हुई है। पिछले वर्ष की तुलना में इस बार किसानों की पंजीयन संख्या भी बढ़ी है तो दूसरी ओर मूंग बोने का हेक्टेयर रकवा भी बढ़ा है। कृषि मंत्री एवं किसान नेता कमल पटेल उत्साहित हैं। उनके प्रयासों से ग्रीष्मकालीन मूंग के समर्थन मूल्य की शुरुआत हुई और अब 8858 रुपए प्रति क्विंटल किसानों के लिए लाभदायक साबित होगा। प्रदेश में 31 जिलों के अंदर इस वर्ष लगभग 2 लाख 75 हजार 664 किसानों ने 7 लाख 58 हजार 605 हेक्टेयर में मूंग की फसल का पंजीयन कराया है। पिछले वर्ष की तुलना में 26% अधिक रकवे में मूंग की फसल किसानों ने बोई है। कमल पटेल खुश हैं। उन्होंने बताया कि किसान एक हेक्टेयर में एक लाख की फसल ले रहा है। जिससे किसानों की आय कई गुना बढ़ी है, किसान संपन्न हो रहा है। कृषि मंत्री कमल पटेल ने इसके लिए अपनी और किसानों की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का आभार जताया है।
तो स्वतंत्रता संग्राम के नायक आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा अमर रहें और हर भारतवासी के दिल में बसे रहें। मोटा अनाज हर भारतीय के दिल पर राज कर स्वस्थ और समृद्ध समाज का पोषक बना रहे। मूंग और मोटा अनाज की बंपर पैदावार कर मध्यप्रदेश के किसान संपन्नता का कीर्तिमान रचें…।