मेरा पहला प्यार, मेरी माँ

कौन है, कहाँ है, मेरा पहला प्यार, पला जिसके गर्भ में, गर्भ के अंदर से ही जिसे प्यार करता था मैं वो है मेरी माँ

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एक विशिष्ट और अबूझ बंधन होता है माँ और उसके बच्चों के बीच जो कि स्वाभाविक रूप से प्रकृतिक होकर कभी ना समाप्त होने वाला होता है । माँ की ममता की तुलना संसार की किसी और भावना से की ही नही जा सकती क्योंकि एक माँ अपने बच्चे को उसके जन्म से पहले से ही प्यार करने लगती है, जो अन्य किसी रिश्ते में संभव ही नही। माँ अपने हर बच्चे को उसके गुण अवगुण से परे जाकर एक समान रूप से प्यार करती है। माँ के लिए कहा गया है कि भगवान हर किसी के साथ नहीं रह सकते थे इसलिए उन्होंने माँ को बनाया यानि इस पृथ्वी पर ईश्वर का जागृत स्वरूप है माँ।

एक बच्चे की सम्पूर्ण दुनिया अपनी माँ के आसपास घूमती है, माँ प्रकृति के समान होती है जो बिना किसी अपेक्षा के सिर्फ देना जानती है। आसान नही होता माँ बनने का सफर लेकिन उस सफर पर प्यार, सकारात्मकता, ज्ञान, दृढ़ विश्वास और उत्साह से चलते चलते एक जीवित प्रेरणा बन जाती है माँ और वो केवल एक शब्द भर नही रह जाती बल्कि अपने बच्चे के लिए वो एक संपूर्ण ब्रह्मांड बन जाती है, एक बच्चे की नजर में उसकी माँ का स्वरूप उतना ही विराट होता है जितना महाभारत में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिखाया था।

 

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हरदम हमारे स्वास्थ्य की चिंता रखने वाली माँ, जब कभी हम बीमार पड़ते हैं तो सारी रात जागकर पल पल हमारी देखरेख करने वाली माँ, हम अपनी शिक्षा की पहली सीढ़ी माँ के कदमो से ही शुरू करते है, वह हर पल हमारे चरित्र को परिभाषित करती है। वह हमेशा हमें जीवन में सही काम करने और सही दिशा चुनने के लिए मार्गदर्शन करती है। वह हमें हर समय सहज महसूस कराने के लिए हर संभव कोशिश करती है। हम अपने सारे राज़ उससे साझा कर सकते हैं, जब कभी हम विपरीत परिस्थिती या संकट में होते हैं, तो हम जानते हैं कि इस विपदा से पार पाने का कोई न कोई उपाय ज़रूर बताएगी माँ।

ईश्वर ने एक माँ को असीम शक्तिया प्रदान की है, उसके पास घर परिवार का प्रबंधन करने के लिए अथक सहनशक्ति है। उसके पास घर की रोज़मर्रा की चुनौतियों और बाधाओं को पार करने के लिए तीव्र भावनात्मक और शारीरिक शक्ति है। कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि एक कमजोर काया वाली, भोलीभाली सी यह स्त्री एक ही समय में इतना सब कुछ कैसे मैनेज कर लेती है। आजकल प्रचलित मल्टीटास्किंग की विशेषज्ञ है माँ।

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एक स्त्री अपने जीवन में पत्नी, बहन, बेटी, भाभी, मौसी, चाची, बहू जैसे ना जाने कितने रिश्ते निभाती है, लेकिन माँ के रूप का सम्मान सबसे अधिक है । मातृत्व वह बंधन है जिसकी व्याख्या संसार की समस्त भाषाओ के सारे शब्द मिलकर भी नही कर सकते। एक माँ अपनी संतान के रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी विपत्तियों के सामने तन कर खड़ी होकर उसका सामना करने का साहस रखती है। एक माँ स्वयं चाहे जितने भी कष्ट सह ले लेकिन अपने बच्चों पर किसी तरह की आंच नही आने देती है।

इस संसार में पहली सांस लेने के पहले से ही माँ हमारे जीवन में सबसे ज्यादा प्रभाव डालती है, बड़े होने के बाद हम अपने जीवन में कितने ही शिक्षित या उपाधि धारक क्यों ना हो जाये लेकिन अपने शैशव काल में जिन संस्कार के बीज माँ ने हमारे मन में बोये थे वो हमसे कभी दूर नही होते और संसार की कोई भी शिक्षा उन्हे बदल नही सकती। जीवन जीने की रीत माँ ही हमको सिखाती है।

जो हमारे मन की बात को कहने से पहले जान ले, जो एक नजर में हमारी हर भावना दर्द हो या खुशी को पहचान ले, हमारी हर हरकत को दूर से ही देखकर जान ले, माँ हमारे बारे में सबकुछ जानती हैं, हमको हमसे ज्यादा जानती है हमारी माँ। हमारे जीवन के हर पहलू पर एक दोस्त, एक मार्गदर्शक, एक शिक्षक के रूप में माँ की अमिट छाप होती है। हर किसी का पहला प्यार होती है उसकी माँ।