माँ
इस शब्द से ज्यादा प्रिय क्या एक शिशु के लिए, क्या नवजात शिशु, क्या जीवन की संध्या बेला पहुँच चुके शिशु के लिए.
आदरणीय स्वाति जी से मालवा की पवित्र भूमि पर मिलना मेरे लिए अत्यंत सुखद रहा. मैं पल पल माँ की छवि देखती उनमें जब जब वे मिलती हैं. वह मेरी गुरु माँ सदृश मेरे मन बसी, सखी तो है ही.
और जब उनकी माँ से मिलना हुआ मन हृदय सुवासित सुरभित हो गया. उनका स्नेह प्यार दुलार आशीष सब कुछ उनके आँचल में समेट मेरे सर माथे आ गया और उनका स्नेहिल स्पर्श सखी सा मन हृदय समा गया और वह मेरी सखी माँ हो गयी.
उनका धरती से ईश्वर के पास जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति है.
जीवन के अनेक झंझावातों का उन्होंने अत्यंत दृढ़ता से सामना किया और अपने जीवन की थाती अपने शिशुओं को सबलता, सरलता, कोमलता, दृढ़ता का पाठ पढ़ाया. अपने समस्त परिवार जनों स्नेहीजनों को प्रेम रस धार से सदैव सिंचित किया.
कोमलता सरलता की प्रतिमूर्ति बन सबके हृदय में अपना विशेष स्थान रखती, ऐसा हर व्यक्ति अनुभव करता जो भी उनकी छत्र छाया में आया.
हम सखियों का भोर समूह उनके मन को सदैव आल्हादित व प्रमुदित करता. स्वाति जी से सदैव आग्रह करती हम कब रखें भोर?
और जब भोर होता तो उनका उल्लास देखते बनता.
उनके स्वागत गीत से शुरुआत होती और उनके मधुर गीतों से भोर झूम झूम जाता. गेम्स में पूरी ऊर्जा के साथ आनंद के पल व्यतीत करती.
और किसी के यहाँ भोर में भी यही उल्लास बरक़रार रहता.
वह हम सबकी आंटी माँ थीं.
शनैः शनैः स्वस्थ्य की गति कम हो रही थी पर वह अपनी प्यारी बेटियों के साथ शांत रूप से जीवन के इन पलों में जीवंत थीं.
मेरी अंतिम मुलाक़ात के समय उनकी वाणी विश्राम करने लगी थी पर मुस्कान स्पर्श सारी बतकही कह रहे थे.
स्वाति जी उनके सब भावों को संप्रेषित कर रही थीं. महू में दीदी व स्वाति जी ने उनके हाथ से मेरा हल्दी कुमकुम किया.
मैं अपनी सखी माँ को अब कैसे कहाँ पाऊँ?
वह भोर में निश्चित रूप से हरदम रहेंगी. हर सखी के मन हृदय में और उनकी आवाज़ गूँजेगी_भोर की सब बेटियाँ मेरी बेटियाँ हैं. और हाँ स्वाति, हम लोग भोर कब कर रहे हैं?
और मेरा मन
सदैव उनके स्नेह आँचल में.
सादर सस्नेह नमन सखी माँ…
मेरी सखी माँ…….
वन्दिता श्रीवास्तव
भोर की सभी सखियों की ओर से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि.