लखनऊ से रामेन्द्र सिन्हा की विशेष रिपोर्ट
तो, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने न केवल नोएडा के कथित अपशकुन की हवा निकाल दी, वरन् पांच इतिहास भी रच दिय़े।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण पर भारतीय जनता पार्टी का एमवाई (मोदी-योगी) डबल इंजन भारी पड़ा, सपा का जयंत चौधरी के साथ वाला एमजे (मुस्लिम-जाट) फैक्टर भी हिजाब में उड़ गया।
भाजपा गठबंधन ढाई सौ से उपर सीटें जीत कर एक बार फिर बहुमत की सरकार बनाने की ओर अग्रसर है, जबकि सपा गठबंधन 150 के नीचे अटकता हुआ नजर आ रहा।
पिछले हफ्ते ही मैंने ‘झूठ बोले कौआ काटे’ कॉलम में स्पष्ट लिखा था कि चुनाव में जातिगत और मजहबी किलेबंदी दोनों ओर से है, महंगाई और रोजगार है तो सबका साथ-सबका विकास के साथ लाभार्थियों का आधार और बाहुबलियों का बंटाधार भी है।
ऐसे में योगी-मोदी की छवि और पीठ पीछे सक्रिय ‘संघ’ की संगठित धार से पार पाना सपा और विपक्ष के लिए इतना आसान भी नहीं।
विकासपरक अनेकों काम डबल इंजन सरकार की अपनी खेती है, जिस फसल को जातिगत समीकरणों के बावजूद फिर भाजपा ही काटेगी, कोई संशय नहीं। और हुआ भी यही।
यह भी सही है कि सपा को जो सीटें मिली हैं, एमवाई के चलते ही।
मैंने अपने कॉलम में काफी पहले ये भी लिखा था कि मोदी-योगी की साफ-सुथरी छवि को अब तक कोई ठोस चुनौती नहीं मिली है तो, योगी की बुलडोजर कार्यशैली ने उन्हें युवाओं और महिलाओं के बीच रॉबिनहुड बनाया है। केंद्र सरकार की उज्जवला, शौचालय जैसी योजनाओं और तीन तलाक कानून ने खासकर महिलाओं को काफी प्रभावित किया है।
उत्तर प्रदेश के चुनावों में महिला वोटर किसी भी दल की दशा और दिशा बदलने में सक्षम हैं। प्रदेश के 7 चरणों में से तीन चरण में महिलाओं ने पुरुष मतदाताओं की तुलना में अधिक वोट डाले। इस दौरान पुरुष मतदाताओं ने जहां 51.03 फीसदी वोट डाले, वहीं महिला वोटरों ने 62.62 प्रतिशत वोटिंग की।
पश्चिम उप्र के पहले दो चरण की वोटिंग में ध्रुवीकरण दिख रहा है। दलित वोटर्स बहुजन समाज पार्टी की जगह एक बार फिर भाजपा की तरफ गए हैं।
समाजवादी पार्टी ने चुनाव से ठीक पहले भाजपा से स्वामी प्रसाद मौर्य समेत कई बड़े नेताओं के पार्टी में शामिल कर बड़ा दांव चला था।
पर, नतीजे बताते हैं कि गैर यादव ओबीसी वोटर्स ने अखिलेश यादव की जगह भाजपा को चुना। मैंने अपने कॉलम में ही फलौदी सट्टा बाजार के अनुमानों का भी जिक्र किया था। सारी बातें सही सिद्ध हुई।
दूसरी ओर, सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस जीत के साथ उत्तर प्रदेश की सियासी राजनीति में पांच इतिहास रच दिए।
नंबर एक, योगी बीते 15 वर्षों में एमएलए का चुनाव जीतने वाले उप्र के पहले सीएम बन गए। उनके अतिरिक्त अखिलेश और मायावती भी अपने पिछले कार्यकाल में एमएलसी ही रहे थे और दोनों ने सीएम रहते हुए विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था।
नंबर दो, उत्तर प्रदेश में 1985 के विधानसभा चुनाव के बाद कोई भी सीएम चुनाव जीतकर दोबारा सत्ता में नहीं लौटा था। 37 साल पहले यह कामयाबी अविभाजित यूपी में कांग्रेस के दिग्गज नेता नारायण दत्त तिवारी को मिली थी। योगी गोरखपुर से चुनाव भी जीते और भाजपा की सत्ता में वापसी भी हो रही।
नंबर तीन, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ से पहले भाजपा के तीन नेताओं को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला है।
कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह। इनमें से किसी भी सीएम के नाम पार्टी को चुनाव में जिताकर दोबारा सत्ता में लाने का सेहरा नहीं बंधा है।
नंबर चार, वर्ष 1971 में त्रिभुवन नारायण सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए गोरखपुर की मानीराम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन वे चुनाव हार गए।
हालांकि, वीर बहादुर सिंह गोरखपुर से चुनाव जीतकर सीएम बनने वाले रहे। उन्होंने पनियरा (अब महाराज गंज में) से विधानसभा चुनाव जीता था।
यह अलग बात है कि उन्होंने सीएम रहते यह चुनाव नहीं लड़ा था, बल्कि यहां से जीतने के बाद सीएम बने थे। तो, योगी सीएम रहते गोरखपुर से चुनाव जीतने वाले पहला चेहरा हैं।
नंबर पांच, सीएम योगी आदित्यनाथ से पहले के मुख्यमंत्री नोएडा आने से कतराते थे। उनके मन में एक ऐसी धारणा बैठ गई थी कि जो भी सीएम नोएडा जाता है उसकी कुर्सी खतरे में पड़ जाती है या फिर उसका दोबारा सत्ता में लौटना असंभव हो जाता है।
पूर्व सीएम वीर बहादुर सिंह जून 1988 में यहां आए और कुछ दिन बाद ही उनकी कुर्सी चली गई। इसी डर से मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव ने भी मुख्यमंत्री रहते हुए नोएडा आने से परहेज किया।
अक्टूबर 2011 में मुख्यमंत्री रहते मायावती दलित स्मारक स्थल का उद्घाटन करने नोएडा आई थीं, लेकिन 2012 के निर्वाचन में उन्हें सत्ता से हाथ धो देना पड़ा।
पूर्व सीएम अखिलेश यादव तो सार्वजनिक तौर पर अपना यह डर स्वीकार भी कर चुके हैं। लेकिन, सीएम योगी ने न सिर्फ इन दकियानूसी दलीलों को सार्जनिक तौर पर खारिज किया, बल्कि वह अपने कार्यकाल में कई बार आधिकारिक कार्यक्रमों के लिए नोएडा गए।
बोले तो,
निःसंदेह योगी आदित्यनाथ दोबारा सीएम बनने जा रहे क्योंकि उन्हीं के नेतृत्व में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ा।
हालांकि, मोदी मैजिक के जबर्दस्त तड़के के बिना ऐसी सफलता संभव नहीं थी। अपने कार्यकाल के पांच सालों में योगी ने नाना प्रकार के चुनौतियों की फसल उगते हुए भी देखा है और उन्हें काटा भी है। अब वे और अनुभवी तथा परिपक्व हैं।
चुनावों में जातिगत-मजहबी नैरेटिव अभी पूरी तरह टूटा नहीं है, इस पर काम करते रहना होगा। विपक्ष को भी सबक सीखना होगा कि केवल सोशल इंजीनियरिंग, नारों, हवा बनाने या दिखावटी प्रचारों से अब चुनाव नहीं जीते जा सकते।
न हाथरस काम आया, न लखीमपुर, गोरखपुर या जाटलैंड और कोई सोशल इंजीनियरिंग। ये जनता है, ये सब जानती है।
योगी आदित्यनाथ नई पारी में सफलता का नया इतिहास रचें, जनांकाक्षाओं पर खरे उतरें… खूब-खूब शुभकामनाएं ! जय जनादेश!!