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अफ़ग़ानिस्तान में अपनी चालों में सफल पाकिस्तान का मनोबल इस समय सातवें आसमान पर है। कश्मीर घाटी में अलगाववादी हुर्रियत कांफ़्रेंस के सैयद अली शाह गिलानी की मृत्यु के बाद पाकिस्तान के इशारे पर हुर्रियत का मुखिया मसर्रत आलम बन गया है।मसर्रत को हिंसा और घृणा फैलाने में महारत हासिल है।मसर्रत पाकिस्तान का अंधा समर्थक है और उसे आगे कर के पाकिस्तान ने कश्मीर में अपनी आगामी विस्फोटक योजना का ऐलान कर दिया है। 2010 में मैंने कश्मीर के सर्वाधिक हिंसक आंदोलन के समय CRPF के स्पेशल DG रहते हुए स्वयं इसके कारनामों को देखा है।गिलानी की विघटनकारी घोषणाओं को अमली जामा पहनाने और हिंसा फैलाने के कार्यक्रम का नेतृत्व यही करता था। सौभाग्यवश कश्मीर में मेरे लौटने से पहले ही सुरक्षा बलों और कश्मीर पुलिस ने इसे गिरफ़्तार कर लिया और उग्र हिंसक आंदोलन ने भी अपना दम तोड़ दिया।
श्रीनगर के जैनदार मोहल्ले में आलम का दो मंजिला पुश्तैनी मकान है। उसका परिवार शहर में रेडीमेड का सबसे बड़ा शो रूम चलाता था। पिता अब्दुल मजीद भट्ट की मौत के बाद परिवार की हालत बिगड़ी। तब आलम सिर्फ 6 साल का था। किशोरवय में ही वह पृथकतावादी राजनीति में आ गया। उसके सामने हुर्रियत का मीरवाइज़ उमर फारूक का नरमवादी और सैयद अली शाह गिलानी का कट्टरवादी धड़ा था। उसने खुद को दूसरे धड़े से जोड़ लिया। मसर्रत आलम जम्मू- कश्मीर मुस्लिम लीग का अध्यक्ष है तथा मुस्लिम लीग सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाली हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का हिस्सा है।अब वह गिलानी का उत्तराधिकारी भी बन गया है। कश्मीर की आजादी के समर्थक मसर्रत आलम ने 2010 की गर्मियों में भूमिगत रहते हुए कश्मीर के इतिहास में सर्वाधिक हिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया था। तीन माह से अधिक चली इस हिंसा में 120 व्यक्तियों की जानें गईं। मसर्रत आलम को बड़ी मशक्कत के बाद 18 अक्टूबर 2010 को श्रीनगर से वागुंड तेलबल क्षेत्र में स्थित उसके घर से सुरक्षाबलों ने गिरफ्तार किया था। उस पर धारा 120ए, 121 रणबीर पीनल कोड के अंतर्गत देशद्रोह का आरोप लगाया गया था। उसे पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत प्रतिबंधात्मक हिरासत में रखा गया था।
17 मार्च, 2015 को मसर्रत की रिहाई पर दैनिक भास्कर में मेरा एक लेख प्रकाशित हुआ था।महबूबा मुफ़्ती ने जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री बनते ही अपने सहयोगी दल बीजेपी या केंद्र सरकार से पूछे बिना ही मसर्रत आलम को जेल से रिहा कर दिया था।
मसर्रत आलम पाकिस्तान के सक्रिय सहयोग से बहुत अधिक ख़तरनाक सिद्ध हो सकता है। आतंकवादी नेटवर्क को बढ़ावा देने के लिए वह ओवर ग्राउंड वर्कर्स को संगठित कर उन्हें पाकिस्तान के इशारे और साधनों से घाटी में आतंकवादियों को सुविधाएँ उपलब्ध करवा सकता है। हमारे राजनीतिक दलों को कश्मीर घाटी की संवेदनशीलता को समझते हुए ही कोई बयानबाजी करनी चाहिए। सौभाग्यवश हमारी सुरक्षा एजेंसियों को आगामी ख़तरे का पूरा एहसास है। पिछले 40 साल के अनुभवों से हमारी सुरक्षा एजेंसियों को कश्मीर घाटी में एक सुदृढ़ सुरक्षा प्रणाली विकसित करने में भारी सफलता मिली है।पिछले कुछ वर्षों से आतंकवादियों और अलगाववादियों के हौसले पस्त हैं। पाकिस्तान और अब संभवतः अफ़ग़ानिस्तान से भेजे जाने वाले आतंकवादियों को नियंत्रण में रखने के लिए हमारी सुरक्षा एजेंसियाँ पूरी तरह सक्षम हैं। कश्मीर की अखंडता बनाए रखने के लिए उन्होंने भारी कुर्बानियां दी हैं और आगे भी वे आवश्यकता पड़ने पर क़ुर्बानियों के लिए तत्पर रहेंगी। भारत राष्ट्र का गौरव और अस्तित्व दोनों हमारे सुरक्षा बलों के हाथों में ,दुश्मनों के नापाक़ मंसूबों के बावजूद, सुरक्षित हैं। हमें केवल सुरक्षा बलों का कृतज्ञ बने रहना है।
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एन. के. त्रिपाठी
एन के त्रिपाठी आई पी एस सेवा के मप्र काडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने प्रदेश मे फ़ील्ड और मुख्यालय दोनों स्थानों मे महत्वपूर्ण पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश मे उनकी अन्तिम पदस्थापना परिवहन आयुक्त के रूप मे थी और उसके पश्चात वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र मे गये। वहाँ पर वे स्पेशल डीजी, सी आर पी एफ और डीजीपी, एन सी आर बी के पद पर रहे।
वर्तमान मे वे मालवांचल विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति हैं। वे अभी अनेक गतिविधियों से जुड़े हुए है जिनमें खेल, साहित्यएवं एन जी ओ आदि है। पठन पाठन और देशा टन में उनकी विशेष रुचि है।