

Nagar Shiromani Narsi Mehta: भक्ति, प्रेम करुणा और उच्च गुणों के दिव्य कवि
डॉ तेज प्रकाश पूर्णानन्द व्यास
आज, 12 मई को, हम भक्ति और करुणा के अद्वितीय प्रतीक, नरसी मेहता का जन्म दिवस मना रहे हैं। नरसी मेहता, जो नागर ब्राह्मण समुदाय से थे, न केवल एक महान कवि और संत थे, बल्कि एक ऐसे पथप्रदर्शक भी थे जिन्होंने भक्ति के मार्ग को सहज और सुलभ बनाया। उनका जीवन और उनकी रचनाएँ आज भी हमें प्रेम, त्याग और सामाजिक समरसता का गहरा संदेश देती हैं।
नरसी मेहता का जन्म भावनगर के पास तलाजा गाँव में हुआ था। उनका प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों से भरा रहा। बचपन में ही माता-पिता का साया उठ जाने के कारण उन्हें अनेक संघर्षों का सामना करना पड़ा। सांसारिक मोह-माया से विरक्त नरसी का मन बचपन से ही कृष्ण भक्ति में रमा रहता था। सांसारिक बंधनों और सामाजिक अपेक्षाओं के विपरीत, उन्होंने अपना जीवन पूरी तरह से भगवान कृष्ण को समर्पित कर दिया। उनकी भक्ति किसी कर्मकांड या बाहरी आडंबरों तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह उनके हृदय की गहरी भावना थी जो उनके भजनों और कविताओं में सहज रूप से प्रवाहित होती थी।
नरसी मेहता की भक्ति का मार्ग प्रेम और समर्पण का मार्ग था। उन्होंने कृष्ण को अपना सखा, अपना प्रियतम माना और उनके प्रति अटूट प्रेम व्यक्त किया। उनके भजनों में कृष्ण के प्रति उत्कट लालसा, मिलन की व्याकुलता और अनन्य समर्पण का भाव स्पष्ट रूप से झलकता है। ‘वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीड़ पराई जाणे रे’ जैसे उनके प्रसिद्ध भजन न केवल भक्ति साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं, बल्कि वे मानवीय मूल्यों और करुणा की भावना को भी उजागर करते हैं। इन पंक्तियों में दूसरों के दुख को अपना दुख समझने और उनकी सहायता करने की गहरी सीख निहित है।
नरसी मेहता का समाज के प्रति दृष्टिकोण अत्यंत उदार और समावेशी था। उस समय के सामाजिक बंधनों और जातिगत भेदभावों के विपरीत, उन्होंने सभी मनुष्यों को समान माना। उनकी करुणा और प्रेम की भावना किसी विशेष वर्ग या जाति तक सीमित नहीं थी। उन्होंने दलितों और वंचितों के साथ सहज संबंध बनाए और उन्हें भी ईश्वर की भक्ति का समान अधिकार दिया। उनके जीवन की कई ऐसी प्रेरक घटनाएं हैं जो सामाजिक समरसता का संदेश देती हैं और हमें सिखाती हैं कि मनुष्य-मनुष्य के बीच कोई भेद नहीं है।
नरसी मेहता का जीवन हमें अटूट विश्वास और भक्ति की शक्ति का परिचय देता है। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने कभी भी अपने विश्वास को डिगने नहीं दिया और हमेशा भक्ति में लीन रहे। उनकी कविताएँ और भजन आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं और उन्हें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति प्रदान करते हैं। उनकी रचनाओं में निहित गहरी दार्शनिक बातें और सरल भाषा का अद्भुत समन्वय हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों को आसानी से समझने में मदद करता है।
आज की युवा पीढ़ी के लिए नरसी मेहता का जीवन और उनकी शिक्षाएँ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उनके जीवन से हम यह सीख सकते हैं कि सच्ची भक्ति और प्रेम बाहरी दिखावे से परे हृदय की सच्ची भावना होती है। उनकी सामाजिक समरसता की भावना हमें सिखाती है कि हमें सभी मनुष्यों का सम्मान करना चाहिए और किसी भी प्रकार के भेदभाव से दूर रहना चाहिए। उनका अटूट विश्वास और विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहने का संकल्प हमें जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा देता है।
नरसी मेहता एक ऐसे दिव्य कवि और संत थे जिन्होंने अपने भक्तिमय जीवन और अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रेम, करुणा और सामाजिक समरसता का शाश्वत संदेश दिया। उनका भक्ति साहित्य और समाज के प्रति उनका योगदान आज भी हमें प्रेरित करता है। इस पावन जन्म दिवस पर हम उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं और यह संकल्प लेते हैं कि उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हम भी अपने जीवन को अधिक प्रेममय, करुणामय और समावेशी बनाएंगे। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उस महान संत को आज के दिवस।
नरसी मेहता जीवन विश्लेषण:
1* मनुष्य की अंतर्निहित क्षमता: उच्च नैतिक और आध्यात्मिक विकास की संभावना।
* भक्ति का महत्व: आत्मा को परमात्मा से जोड़ने और मानवीय गुणों को विकसित करने का मार्ग।
* उदात्त मानवीय गुण: प्रेम, करुणा, सत्यनिष्ठा, त्याग, सेवाभाव आदि का संक्षिप्त परिचय।
* नरसी मेहता के जीवन और रचनाओं का संदर्भ: इन गुणों के उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में।
2. भक्ति: हृदय का दिव्य अनुराग
* भक्ति का अर्थ और स्वरूप: ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम, श्रद्धा और समर्पण।
* भक्ति के विभिन्न रूप: ज्ञान भक्ति, कर्म भक्ति, प्रेम भक्ति आदि। नरसी मेहता की प्रेम भक्ति पर विशेष ध्यान।
* भक्ति की शक्ति: आंतरिक शांति, आनंद और आध्यात्मिक विकास की प्राप्ति।
* नरसी मेहता की भक्ति की विशेषताएँ: सहजता, आडंबरहीनता, व्यक्तिगत संबंध पर जोर। उनके भजनों में व्यक्त प्रेम की गहराई।
3. उदात्त मानवीय गुण: भक्ति का प्रकटीकरण
* प्रेम और करुणा:
* भक्ति का स्वाभाविक परिणाम: सभी जीवों के प्रति प्रेम और दुखियों के प्रति करुणा का भाव।
* नरसी मेहता के जीवन से उदाहरण: दलितों और वंचितों के प्रति उनका स्नेह और सहायता। ‘वैष्णव जन तो तेने कहिये’ भजन का विश्लेषण।
* सत्यनिष्ठा और ईमानदारी:
* ईश्वर के प्रति सच्चे प्रेम का अर्थ: जीवन के हर क्षेत्र में सत्य और ईमानदारी का पालन।
* नरसी मेहता के उदाहरण: सांसारिक प्रलोभनों से दूरी और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना।
* त्याग और निस्वार्थ सेवा:
* भक्ति में आत्म-समर्पण का महत्व: व्यक्तिगत इच्छाओं और अहंकार का त्याग।
* नरसी मेहता का उदाहरण: अपनी संपत्ति और सुख-सुविधाओं की परवाह किए बिना भक्ति और दूसरों की सेवा में लीन रहना।
* समता और सहिष्णुता:
* ईश्वर की दृष्टि में सभी समान: जाति, धर्म और सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव का खंडन।
* नरसी मेहता का उदाहरण: समाज के सभी वर्गों के साथ समान व्यवहार और विचारों में सहिष्णुता।
4. नरसी मेहता: भक्ति और उदात्तता का संगम
* उनके जीवन की प्रेरक घटनाएं: भक्ति, करुणा, सत्यनिष्ठा और त्याग के मूल्यों को दर्शाने वाले विशिष्ट प्रसंग।
* उनकी रचनाओं में इन गुणों का चित्रण: उनके भजनों और कविताओं के उदाहरणों के साथ विश्लेषण।
* नरसी मेहता का संदेश: भक्ति के मार्ग पर चलकर कैसे उच्च मानवीय गुणों को प्राप्त किया जा सकता है।
5. प्रेरणा और वर्तमान प्रासंगिकता
* नरसी मेहता के जीवन से प्रेरणा: अटूट विश्वास, विपरीत परिस्थितियों में भी नैतिक मूल्यों पर टिके रहना।
* आज के समाज में इन गुणों का महत्व: व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने की क्षमता।
* युवा पीढ़ी के लिए संदेश: भक्ति और उदात्त मानवीय गुणों को अपनाकर एक सार्थक और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीना।
6. हृदय को ऊँचाई की ओर ले जाना
* भक्ति और उदात्त मानवीय गुणों का अटूट संबंध: एक दूसरे को पोषित और मजबूत करते हैं।
* नरसी मेहता के जीवन का सार: एक ऐसा आदर्श जो हमें बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करता है।
* अंतिम आह्वान: अपने हृदय को भक्ति और उदात्त गुणों से भरकर जीवन को सार्थक बनाने का संकल्प।
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भारत में शांति और सद्भाव कायम रहे और कोई सद्भावना अभियान अथवा भाई चारे की यात्रा के कार्यक्रम मे यह भजन अत्यधिक गाया जाता है।यह भजन 15वीं सदी में गुजराती भक्तिसाहित्य के श्रेष्ठतम कवि नरसी मेहता द्वारा मूल रूप से गुजराती भाषा में लिखा गया है। यह भजन उसी गुजराती भजन का हिन्दी रूपांतरण है। कवि नरसिंह मेहता को नर्सी मेहता और नर्सी भगत के नाम से भी जाना जाता है। कालांतर में वैष्णव जन तो भजन महात्मा गांधी के दैनिक पूजा का हिस्सा होने के कारण उनका सबसे प्रिय भजन का पर्याय बन गया।
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
पर दुःखे उपकार करे तो ये,
मन अभिमान न आणे रे ॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
सकल लोकमां सहुने वंदे,
निंदा न करे केनी रे ।
वाच काछ मन निश्चळ राखे,
धन धन जननी तेनी रे ॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।—-