नागेश्वर मन्दिर एक प्रसिद्द मन्दिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का भगवन शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में दसवां स्थान है। यह ज्योतिर्लिंग प्रमाणिक रूप से कहाँ स्थित है, यह विद्वानों के दावे – प्रतिदावे चलते रहने के कारण कहना आसान नहीं है, फिर भी गुजरात राज्य में गोमती द्वारका के बीच दारूकावन क्षेत्र में इसके प्रामाणिक स्थान होने की मान्यता अधिक है।यात्रा वृतांत में धार्मिक यात्राओं की सूक्ष्म और महत्वपूर्ण एतिहासिक जानकारियों से पाठकों को अवगत करा रहे हैं- श्री विक्रमादित्य सिंह
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
भगवान कृष्ण यहां आकर नागेश्वर भगवान की पूजा किया करते थे!
जिस प्रकार मध्य प्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग है महाकालेश्वर एवं ओंकारेश्वर इसी प्रकार गुजरात में भी दो ज्योतिर्लिंग है सोमनाथ एवं नागेश्वर। दोनों भारत के धुर पश्चिम किनारे पर, समुद्र से लगे हुए, सौराष्ट्र काठियावाड़ क्षेत्र में है। द्वारका से नागेश्वर मात्र 15 किलोमीटर दूरी पर है। दूर से ही मंदिर एवं मंदिर का शिखर दृष्टिगोचर होने लगता है, किंतु ज्योतिर्लिंग का जो महत्व है उसके अनुसार यात्रा मार्ग आकर्षक नहीं है। आसपास वन का नामोनिशान नहीं है, पेड़ भी एक-दो दिखाई देते हैं। द्वापर युग में यह “दारूका वन” कहलाता था। भगवान कृष्ण यहां आकर नागेश्वर भगवान की पूजा किया करते थे। जैसे ही हम मंदिर परिसर के निकट पहुंचे, यात्रियों को लाने वाले बस,कार एवं अन्य वाहन अस्तव्यस्त खड़े पाए गए। परिसर के निकट खाने पीने की अनेक दुकानें हैं। यहां भी सर्वत्र स्वच्छता का जबरदस्त अभाव है। यहां आकर ऐसा अनुभव हुआ कि मोदी जी के स्वच्छता अभियान को गुजरात सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया है। अन्य राज्य बल्कि स्वच्छता पर अच्छा कार्य कर रहे हैं, जैसे मध्य प्रदेश।
मंदिर परिसर के अंदर भी अत्यंत अस्वच्छ वातावरण था, लेकिन लोगों में भक्ति भाव, जैसा धार्मिक स्थलों पर देखा जाता है, यहां भी था। हम लोगों में श्रद्धा एवं भक्ति इतनी ज्यादा होती है कि हम लोग ऐसे अस्वच्छ वातावरण को महत्व नहीं देते हैं। अनेक प्रांतो के लोग यहां आए हुए थे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल के भी अनेक परिवार मिले।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में भगवान शंकर की पूजा नाग एवं मां पार्वती की पूजा नागिन के रूप में की जाती है, अतः यहां पर पूजा के लिए अन्य सामग्रियों के अलावा चांदी के नाग, नागिन भी चढ़ाए जाते हैं। मंदिर के अंदर ही अनेक पुजारी, पूजन सामग्री जिसमें चांदी के नाग नागिन भी रखे हुए थे, बेचते हैं एवं ऐसी सामग्री धारकों को शिवलिंग के निकट तक जाकर पूजा करने की अनुमति है। सामान्य दर्शनार्थी दूर से ही ज्योतिर्लिंग का दर्शन करते हैं। हम लोगों ने भी दूर से ही ज्योतिर्लिंग का दर्शन किया। मंदिर में ही प्रसाद एवं अन्य सामग्री विक्रय की जाती है।
उज्जैन में जिस प्रकार महाकाल लोक का भव्य परिसर बनाया गया है, वहां की व्यवस्था सुधारी गई है, इस प्रकार यहां क्यों नहीं हुआ? यह समझ से परे हैं। गुजरात सरकार को भी इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। मंदिर से बाहर निकलते ही सीढ़ीयों पर एक नंदी महाराज ने गोबर कर दिया था। यहां पर गाय एवं नंदी अपना प्राकृतिक भोजन घास न खाकर , तीर्थ यात्री जो खाने की वस्तु देते हैं, वह खाते हैं, अतः गोबर भी प्राकृतिक ना होकर कुछ कुछ मनुष्य के गोबर की भांति होते हैं जो अत्यधिक गंदगी उत्पन्न करते हैं, यहां भी वैसा ही हुआ, लेकिन सफाई करने वाला कोई नहीं था।
ऐसे धार्मिक स्थान पर भारतीय संस्कृति की एकात्मता के दर्शन, प्रत्यक्ष होते हैं। अलग भाषा, अलग हुई वेशभूषा, अलग खान-पान, लेकिन सबका मन एक। ऐसे वातावरण को देखकर मन भाव विभोर हो जाता है।
यहां भी पजामा, पेंट धारी तो थे ही, पश्चिम के लूंगी धारी, उत्तर के धोती धारी भी पर्याप्त संख्या में थे। गर्भ गृह में जींस धारी लड़कियों एवं महिलाओं को देखकर मन अवश्य खिन्न हुआ।अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थानो में भारतीय परिवेश को तो अनुमति दी जानी चाहिए परंतु पाश्चात्य बेढंगी वेशभूषा धारी के प्रवेश पर रोक लगाई जानी चाहिए। साड़ी, धोती, लूंगी ऐसे भारतीय परिवेश धारी को ही ऐसे स्थानों पर प्रवेश देने का नियम बनाया जाना चाहिए।
अगस्त के माह में पर्याप्त वर्षा न होने के कारण तेज धूप निकली थी, उमस गर्मी पर्याप्त थी, फर्श तप रहे थे और नंगे पैर चलना दूभर हो रहा था। अक्षरधाम मंदिर में पैदल चलते समय इस कठिनाई का अनुभव इसलिए नहीं होता, कि वहां पर ऐसे पत्थर लगाए जाते हैं जो गर्मी में तपते नहीं, ऐसे पत्थर स्थानीय प्रशासन द्वारा मंदिर परिसर में भी लगाए जाने चाहिए, ताकि गर्मी के मौसम में, तीर्थ यात्री सुगमतापूर्वक मंदिर परिसर का भ्रमण कर सकें।
श्री विक्रमादित्य सिंह
लेखक ,सेवा निवृत अपर संचालक अनुसूचित जाति,जनजाति विभाग मध्यप्रदेश शासन ,भोपाल