नारायण-नारायण… क्या जमाना आ गया है…

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नारायण-नारायण… क्या जमाना आ गया है…

जैसे-जैसे मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे नेताओं के चेहरों से मुखौटे उतरते जा रहे हैं। वैसे तो 2023 के अंत में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में सियासी हलचल सबसे ज्यादा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विकास यात्राओं में दिन रात व्यस्त हैं। इस बीच भी वह संघ प्रमुख मोहन भागवत से मिलने नागपुर पहुंच गए और फरमान जारी कर दिया कि 19 फरवरी को सारे मंत्री विकास यात्राओं को छोड़कर दिनभर भोपाल में उपस्थित रहेंगे। संघ प्रमुख मोहन भागवत का उस दिन भोपाल आने का कार्यक्रम है। माना जा रहा है कि वह मंत्रियों से मुलाकात कर नब्ज टटोलने की कोशिश करेंगे।
हालांकि जब मुलाकात होगी तो चुनावी साल में अलग-अलग मुद्दों पर विस्तार से बातचीत से इंकार नहीं किया जा सकता। आबकारी नीति अभी तक अटकी हुई है, जबकि फरवरी का महीना फुर्र होने वाला है। उमा की नजर नीति पर लगी हुई है और शिवराज नीति को किनारे खिसकाकर उमा के ट्वीट्स में अटके पड़े हैं। उमा का संघ से गहरा नाता है तो शिवराज ने नागपुर दस्तक देकर यह जताया है कि संघ प्रमुख से करीबी उनकी भी कम नहीं है। पर मंत्रियों की संघ प्रमुख से मुलाकात के मायने अपने आप में गूढ़ रहस्य लिए है। यह बात तो समय आने पर ही साफ होगी, क्योंकि शिवराज की थाह पाना आसान नहीं है। हालांकि शिवराज को कांग्रेस से ज्यादा चुनौती फिलहाल अपनों से ही मिल रही है। मन ही मन शायद वह यही बात सोचते होंगे कि क्या जमाना आ गया है कि अपने-पराये का अंतर ही समझ नहीं आता कई दफा।
यहां पृथ्वीलोक पर अल्पकालिक प्रवास पर आए देवर्षि नारद की नजर देवभूमि के ह्रदय प्रदेश की राजधानी पर पड़ी तो वह भी भौंचक्का रह गए। भगवा पार्टी का एक विधायक मांग करता सुनाई दे गया कि विंध्य से कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की प्रतिमा का अनावरण यदि मुख्यमंत्री शिवराज ने नहीं किया तो विंध्य के लोग मिलकर खुद ही विंध्य की शान रहे दाऊ साहब की प्रतिमा का अनावरण कर देंगे। विधायक भगवा दल के हैं और विकास यात्रा पर इनका भरोसा नहीं है। भाजपा का कमल खिलाने की चिंता तो इन्होंने बहुत पहले ही छोड़ दी थी, पर अब दूसरे दल और उनके दिग्गज नेताओं से खुल्लमखुल्ला प्यार का इजहार जरूर कर रहे हैं। और इंकार भी कर रहे हैं कि कोई यह न समझे कि वह कांग्रेस या स्वर्गीय अर्जुन सिंह के पुत्र पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के प्रभाव में हैं।
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देवर्षि को समाचार रुचिकर लगा सो उन्होंने थोड़ा तह में जाना बेहतर समझा। उनके सामने दृश्य आ गया कि जब प्रदेश से पंद्रह माह की कांग्रेस सरकार विदा हो रही थी, तब जिन दो विधायकों को भाजपाईयों ने चौतरफा घेर कर रखा था… उनमें से ही यह एक विधायक हैं जो अर्जुन सिंह की प्रतिमा के अनावरण का राग अलाप रहे हैं। विंध्य के दिग्गज नेता की प्रतिमा के अनावरण की याद विधायक जी को उस समय आई, जब उनकी सरकार के मुखिया शिवराज विंध्य में ही हवाई अड्डे की आधारशिला रख रहे थे। उसी विंध्य की शान की दुहाई विधायक जी राजधानी में दे रहे थे। नारायण-नारायण अनायास ही देवर्षि के मुख से निकल गया। उनकी दृष्टि आगे बढ़ी तो पता चला कि यह विधायक विंध्य में ही मां शारदा की नगरी से पंडित नारायण त्रिपाठी हैं। इनके जीवन में दल उसी तरह से बदलते रहे हैं जैसे व्यक्ति वस्त्र बदलते हैं। और आगे पता चला कि जब से कांग्रेस सरकार गई है, तब से इन भाजपा विधायक ने विंध्य प्रदेश बनाने और प्रदेश के दूसरे मुद्दों पर सीधे प्रधानमंत्री को पत्र लिख-लिखकर खूब सुर्खियां बटोरी हैं और अपने ही कथित दल को खूब छकाया है।
निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छबाय…की तर्ज पर भाजपा ने भी अपने इन विधायक को खूब सहेज कर रखा है।‌ और यह हैं कि पार्टी से दूर भागने की गांठ बांधे हुए हैं और वह भी पक्की वाली। वैसे तो यह अलग विंध्य विकास पार्टी बनाने की घोषणा भी कर चुके हैं और विंध्य की सभी तीस सीटों पर चुनाव लड़ाने की हवा भी उड़ा चुके हैं। पर हैं भाजपा में ही और अब भी यही कह रहे हैं कि कोई यह भ्रम पालने की भूल न करे कि इनकी किसी दूसरे दल और नेताओं से कोई करीबी है। देवर्षि को पृथ्वीलोक के इन नारायण ने बहुत अचंभित किया, क्योंकि उनकी दिव्य दृष्टि से तो कुछ छिप ही नहीं सकता। फिर उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव पर नजर डाली और मन ही मन मुस्कराते हुए नारायण-नारायण का उच्चारण जोर-जोर से करने लगे। और क्या जमाना आ गया है…घोर कलियुग की आहट सुनाई देने लगी है, जैसे शब्द उनके मुंह से बरबस निकल ही पड़े।
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देवर्षि ने सोचा कि मध्यप्रदेश की सियासत बड़ी दिलचस्प है, तो उन्होंने कांग्रेस पर भी नज़रें इनायत कर डालीं। एक नजर पड़ने पर ही उनके मुख से नारायण-नारायण की ध्वनि सुनाई देने लगी। देवर्षि देखते हैं कि इधर भी प्रदेश अध्यक्ष नाथ को अनाथ करने में सारे अपने ही आहुतियां दे रहे हैं। शिव के सवाल करने तक तो माजरा समझ में आता है, लेकिन यहां तो अपनों में भी कोई रत्ती भर कसर छोड़ने को तैयार नहीं है। कोई कह रहा है कि असली योद्धा हम हैं, तो कोई समस्या के समाधान के लिए टोल फ्री नंबर जारी कर रहा है।
एक और दिग्गज नेता ने तो इस बार श्रीमंत विहीन दल में खुद सक्रिय मोर्चा संभालने का मन बना लिया है। तो भावी और अवश्यंभावी जैसे शब्दों में रंग भरने वाले नाथ को सबने मिलकर ऐसा आइना दिखाया कि खुद नाथ को सार्वजनिक तौर पर स्वीकारना पड़ा कि पार्टी में सब कुछ चुनाव बाद ही तय‌ होने की परंपरा है। हिंदुत्व और सनातन धर्म की बात हो तो भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के मत नाथ से मेल नहीं खा रहे। दूसरे मुद्दों पर भी तर्क सहित अपनी-अपनी ढपली से अपना-अपना राग निकालकर सब अपने आप में मस्त हैं। तब भी सरकार बनाने का दावा करने में कोई पीछे नहीं है। देवर्षि ने दृष्टि डाली तो पता चला कि यह मानते-मानते कि मतभिन्नता पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र का हिस्सा है, अब पार्टी नेता यह मानने लगे हैं कि मतैक्य न होना ही पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र है। अब तो देवर्षि को पूरा माजरा समझ में आ गया कि ह्रदय प्रदेश की सियासत वास्तव में कितनी चुनौतीपूर्ण है। पार्टी चाहे कैडर बेस हो या बिना कैडर की, पर टांग खिंचाई में किसी भी पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र कम नहीं पड़ रहा। बस बात वही कि जो जीता वही सिकंदर। उनके मन ने एक बार फिर दोहराया कि क्या जमाना आ गया है…।
उसी‌ समय 15 फरवरी की तारीख पर नजर पड़ी तो देवर्षि की दृष्टि कहां चूक सकती है।‌ तीन साल पहले का कैलेंडर उनके सामने था कि सन् 2020 में 15 फरवरी को ही विष्णु की नियुक्ति प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के पद पर हुई थी। देवर्षि ने नजरें इनायत कीं, तो विष्णु अपने संसदीय क्षेत्र खजुराहो में नजर आए। जहां वह हवाई अड्डा, विश्व स्तरीय रेल्वे स्टेशन और अच्छी सड़कों का जाल बिछने की उपलब्धियों को संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं से साझा कर रहे थे। तो युवाओं से पायलट ट्रेनिंग कॉलेज का जिक्र कर रहे थे कि अब हवाई जहाज उड़ाना सीखना हो तो अमेरिका, ब्रिटेन जाने की जरूरत नहीं है, खजुराहो में ही हवाई जहाज उड़ाने के सपने को हकीकत में बदल लेना।‌
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तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन से जनता को रूबरू करा रहे थे। वहीं विकास यात्राओं में शामिल होकर शिवराज सरकार की उपलब्धियों को गिना रहे थे। देवर्षि ने नजर डाली तो कुछ समय पहले का हवाई जहाज का शिव का विष्णु को गले लगाने वाला दृश्य सामने आ गया। और यह तस्वीर देखकर मंद-मंद मुस्कराते नारायण-नारायण जपते देवर्षि अपने लोक को प्रस्थान कर गए। शिवराज, उमा भारती, नारायण त्रिपाठी, कमलनाथ और विष्णु दत्त शर्मा के चेहरे जब उनकी स्मृति में कौंधे तो मध्यप्रदेश की सियासत पर फिर यही प्रतिक्रिया आई कि वास्तव में क्या जमाना आ गया है… पता ही नहीं चल रहा कि कौन किस पर भरोसा करे।