Narendra Modi’s Popularity: महाराष्ट्र में सिर चढ़कर बोला नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का जादू
कृष्ण मोहन झा की विशेष त्वरित टिप्पणी
महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव परिणामों ने एक बार फिर देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई लोकप्रियता पर न केवल मुहर लगा दी है बल्कि यह भी यह साबित कर दिया है कि नरेंद्र मोदी की इस करिश्माई लोकप्रियता को चुनौती देने की ताकत देश के किसी राजनीतिक दल में नहीं है। महाराष्ट्र में सत्तारूढ महायुति ने विधानसभा में बहुमत हासिल कर प्रमुख विपक्षी दलों कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एन सी पी की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। दरअसल इन तीनों पार्टियों ने यह मान लिया था कि जिस तरह पिछले लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र के मतदाताओं ने उन्हें अपना व्यापक दिया था उसकी पुनरावृत्ति राज्य विधानसभा के चुनावों में होना बिल्कुल तय है लेकिन मतगणना के रुझानों में शुरू से ही महायुति ने अपनी बढ़त बनाने का जो सिलसिला प्रारंभ किया वह पूरी मतगणना के दौरान कभी भी बाधित नहीं हुआ और अंततः महायुति के पक्ष में जो जनादेश आया उसमें महाविकास अगाड़ी के घटक दलों को सदन के अंदर विपक्ष में बैठकर आत्ममंथन करने का संदेश छुपा हुआ था ।महाविकास अगाड़ी के प्रमुख घटक दल शिवसेना ( उद्धव ठाकरे) को महायुति की प्रचंड जीत ने हक्का बक्का कर दिया है। उसके प्रवक्ता संजय राऊत ने यहां तक कह दिया कि इन चुनाव परिणामों में कुछ तो गडबड है। यह महाराष्ट्र की जनता का फैसला हो ही नहीं सकता। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में मूल शिव सेना के कुछ विधायकों ने एक नाथ शिंदे के नेतृत्व में पार्टी से बगावत कर भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई थी इसके अलावा शरद पवार की एनसीपी के कुछ विधायकों ने भी अजित पवार के नेतृत्व में पार्टी से विद्रोह कर महायुति सरकार में शामिल होने का फैसला किया था।इन चुनावों में शिव सेना ( उद्धव ठाकरे) और एन सी पी( शरद पवार) यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई लोकप्रियता भी एकनाथ शिंदे और अजित पवार को महाराष्ट्र के मतदाताओं का कोपभाजन बनने से नहीं रोक पाएगी परंतु चुनाव परिणामों ने उन्हें एकदम सदमे की स्थिति में पहुंचा दिया है। चुनाव परिणामों में गड़बड़ी की आशंका व्यक्त करने वाले महाविकास अगाड़ी के घटक दलों को इस सवाल का जवाब अपने अंदर ही खोजना होगा कि लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र के मतदाताओं ने उन्हें जो समर्थन प्रदान किया था उस पर कायम रहने के लिए वे राज्य के मतदाताओं को राजी क्यों नहीं कर पाए।
महाराष्ट्र विधानसभा के इन चुनावों में भाजपा ने अभूतपूर्व विजय प्राप्त कर इतिहास रच दिया है और स्वाभाविक रूप से अब वह महायुति सरकार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उसका अधिकार होगा। एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी की तुलना में दुगनी से भी अधिक सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपने के लिए एक नाथ शिंदे को राजी करने में भाजपा को कोई दिक्कत पेश होने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। अगर भाजपा चाहेगी तो सत्ता में बने रहने के लिए एकनाथ शिंदे को यह त्याग अब खुशी खुशी करना होगा। राज्य में सत्ता परिवर्तन के लिए पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस भी ऐसा ही उदाहरण पेश कर चुके हैं। अब यह उत्सुकता का विषय है कि महायुति की नयी सरकार का नेतृत्व करने का गौरव देवेन्द्र फडनवीस अर्जित करते हैं अथवा पार्टी उन्हें कोई और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपती है लेकिन इसमें दो राय नहीं हो सकती कि महाराष्ट्र विधानसभा के इन चुनावों में भाजपा की प्रचंड जीत में देवेन्द्र फडनवीस ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महाराष्ट्र भाजपा के अंदर से यह मांग उठने भी लगी है।इन चुनाव परिणामों ने महाराष्ट्र की राजनीति में देवेन्द्र फडनवीस के कद को बहुत ऊंचा कर दिया है और पार्टी की प्रदेश राजनीति में उन्हें पार्टी के अंदर चुनौती देने का साहस कोई नहीं कर सकता। एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने भी चुनाव जीत कर अपनी अहमियत दिखा दी है लेकिन महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में भाजपा की सुनामी ने केवल विपक्ष ही नहीं, सत्तारूढ़ गठबंधन के अन्य दलों को भी आश्चर्यचकित कर दिया है। गौरतलब है कि भाजपा ने 288 सदस्यीय विधानसभा की 149 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे जिनमें 127 उम्मीदवार अपने अपने चुनाव क्षेत्रों में बढ़त बनाए हुए हैं। इस तरह उसका स्ट्राइक रेट 86 प्रतिशत है।यह अपने आप में एक कीर्तिमान है।