Navratri 2025:नवमी तिथि, सिद्धियां प्रदान करने वाली माता सिद्धिदात्री की आराधना का दिन

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Navratri 2025:नवमी तिथि, सिद्धियां प्रदान करने वाली माता सिद्धिदात्री की आराधना का दिन

– डॉ बिट्टो जोशी

हिंदू धर्म में नवरात्रि का पर्व शक्ति, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। इस दौरान नौ दिनों तक माता दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवमी तिथि, यानी नौवां दिन, विशेष महत्व रखती है क्योंकि इस दिन देवी का सिद्धिदात्री रूप प्रकट होता है। सिद्धिदात्री का अर्थ है वह देवी जो सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली हैं। उनके इस स्वरूप का आराधन भक्तों को जीवन में सफलता, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है। नवमी तिथि का यह दिन शक्ति, साहस और बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है और इसे विशेष रूप से भक्तों की इच्छाओं की पूर्ति और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने वाला माना जाता है।

**माता सिद्धिदात्री का स्वरूप और कथा**

माता सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत दिव्य और शुभकारी है। उन्हें चार भुजाओं वाली देवी के रूप में दर्शाया जाता है, जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और अभय मुद्रा होती है। उनका वाहन शेर है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। माता सिद्धिदात्री भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं और उनके दर्शन से जीवन में नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।

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कथा के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सम्पूर्ण ब्रह्मांड में बुराई और पाप फैलने लगी थी। असुरों की शक्ति इतनी बढ़ गई कि वे देवताओं और मानवों दोनों को परेशान करने लगे। तब सारी शक्तियों ने मिलकर माता दुर्गा का आवाहन किया। माता दुर्गा ने अपने तेजस्वी रूप से सभी असुरों का संहार किया, लेकिन उनकी शक्ति इतनी अधिक थी कि उन्हें पूर्ण रूप से नष्ट करना और उनका पाप समाप्त करना कठिन था। तब माता ने सिद्धिदात्री का रूप धारण किया। उन्होंने अपने चार हाथों में शस्त्र और अभय मुद्रा लेकर सभी भक्तों को सुरक्षा का आश्वासन दिया और असुरों का संहार किया। उनके इस स्वरूप को सिद्धिदात्री कहा गया क्योंकि उन्होंने न केवल बुराई का नाश किया बल्कि भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां और जीवन में सफलता देने का आश्वासन भी दिया। माता सिद्धिदात्री का यह स्वरूप हमें यह सिखाता है कि शक्ति, संकल्प और भक्ति के माध्यम से कोई भी बाधा दूर की जा सकती है।

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**नवमी तिथि पर पूजा और भक्ति**

नवमी तिथि पर माता सिद्धिदात्री की पूजा अत्यंत विधिपूर्वक की जाती है। सुबह जल्दी उठकर शुद्ध स्नान करना चाहिए और पूजा स्थल को पूरी तरह साफ और सुव्यवस्थित बनाना चाहिए। पूजा स्थल पर लाल रंग की वस्त्र और फूल रखना शुभ माना जाता है। देवी की मूर्ति या चित्र को उत्तर या पूर्व दिशा की ओर स्थापित करना चाहिए।

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पूजा के समय भक्तों को अपने मन को शुद्ध करना चाहिए और सभी नकारात्मक विचारों तथा बुराई को त्यागकर केवल भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का संकल्प करना चाहिए। माता को अर्पित किए जाने वाले भोग में विशेष रूप से खीर, फल, गुड़, दूध, नारियल और लाल रंग के पुष्प शामिल होते हैं। लाल वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करने से उनकी कृपा अधिक फलदायी मानी जाती है। नवमी के दिन खीर का भोग विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह समृद्धि और शांति का प्रतीक है।

पूजा के दौरान मंत्र का उच्चारण अत्यंत महत्वपूर्ण है। नवमी तिथि पर माता सिद्धिदात्री का प्रमुख मंत्र है:

“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्री देवी नमः।”

इस मंत्र का जाप श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए। मंत्र का जप करने से मन की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है, भक्त को शक्ति और साहस प्राप्त होता है और इच्छित सिद्धियां मिलती हैं।

 

**नवमी तिथि का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व**

माता सिद्धिदात्री का यह स्वरूप केवल शक्ति का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह संकल्प, साहस और सकारात्मक सोच का संदेश भी देता है। नवमी तिथि पर उनकी पूजा करने से जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और इच्छित लक्ष्य प्राप्त होते हैं। इस दिन माता के प्रति पूर्ण भक्ति और श्रद्धा से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। नवमी तिथि पर व्रत और उपवास रखना भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है। उपवास करने से मन का संयम बढ़ता है, आत्म-विश्वास आता है और जीवन में स्थिरता अनुभव होती है।

सामाजिक दृष्टि से यह दिन परिवार और समाज में सुख, सहयोग और सामंजस्य लाने वाला होता है। माता सिद्धिदात्री की पूजा से व्यक्ति न केवल आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनता है बल्कि समाज में भी सकारात्मक प्रभाव डालता है। नवमी तिथि की भक्ति जीवन में सभी प्रकार की सफलताओं और सिद्धियों की प्राप्ति का मार्ग खोलती है।

नवरात्रि का नवमी तिथि का दिन माता सिद्धिदात्री के आराधना के लिए अत्यंत पवित्र है। उनके इस स्वरूप की पूजा श्रद्धा, भक्ति और मनोबल का प्रतीक है। नवमी तिथि पर माता सिद्धिदात्री की भक्ति और पूजा से जीवन में सफलता, शांति और समृद्धि आती है। माता की कथा हमें यह सिखाती है कि संकल्प, साहस और भक्ति के माध्यम से जीवन में कोई भी बाधा या बुराई दूर की जा सकती है। नवमी तिथि पर उनकी भक्ति जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और व्यक्तिगत विकास दोनों ही प्रदान करती है। इस दिन की पूजा, मंत्र जाप और भोग अर्पण से घर और समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी भक्तों को मां की असीम कृपा प्राप्त होती है।