
Navratri 2025 सप्तमी विशेष: माँ कालरात्रि की उपासना से मिटता भय और मिलता दिव्य साहस
– डॉ. बिट्टो जोशी
शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप माँ कालरात्रि को समर्पित होता है। उनका स्वरूप भले ही भयंकर और विकराल दिखता हो, लेकिन वे भक्तों के लिए अत्यंत मंगलकारी और कल्याणकारी हैं। इसीलिए इन्हें शुभंकारी भी कहा जाता है। मान्यता है कि माँ कालरात्रि की पूजा से न केवल भय और संकट दूर होते हैं, बल्कि साधक को अदम्य साहस, सिद्धि और आत्मबल की प्राप्ति होती है।

**माँ कालरात्रि का स्वरूप**
माँ कालरात्रि का रंग श्याम यानी गहरा काला है। उनके बिखरे हुए केश, कंठ में मुण्डमाला और प्रज्वलित अग्नि समान तीन नेत्र उनके उग्र रूप की पहचान हैं। उनके चार हाथ हैं, जिनमें से दाहिने हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में रहते हैं, जबकि बाएँ हाथ में लोहे का कांटा और वज्र धारण करती हैं। उनका वाहन गर्दभ (गधा) है। देवी का विकराल रूप दुष्टों के लिए भयावह है, लेकिन भक्तों के लिए कृपा और कल्याण का स्रोत है।

**देवी की महिमा और महत्व**
माँ कालरात्रि की उपासना करने से तंत्र-मंत्र, काला जादू और सभी नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है। वे अपने भक्तों को निर्भय बनाती हैं और उन्हें शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करती हैं। उनकी कृपा से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं और साधक को ज्ञान, वैराग्य तथा आत्मशक्ति की प्राप्ति होती है। आध्यात्मिक साधना में माँ कालरात्रि का स्थान सर्वोच्च माना गया है क्योंकि वे साधक को सिद्धियों की प्राप्ति का वरदान देती हैं।

**पौराणिक कथा**
दुर्गा सप्तशती में वर्णन मिलता है कि असुर रक्तबीज का आतंक समस्त देवताओं और ऋषियों के लिए संकट बन गया था। उसकी विशेषता थी कि उसके रक्त की हर एक बूंद से नया असुर उत्पन्न हो जाता था। तब माँ दुर्गा ने अपने उग्रतम स्वरूप कालरात्रि का अवतार लिया। उन्होंने अपने विकराल मुख से रक्तबीज का सारा रक्त पी लिया और उसे समूल नष्ट कर दिया। इस प्रकार माँ कालरात्रि ने धर्म और सत्य की रक्षा करते हुए संसार को आतंक से मुक्त कराया।
**पूजा-विधि और उपासना मंत्र**
नवरात्रि की सप्तमी पर भक्त प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं और माँ कालरात्रि की प्रतिमा या चित्र के समक्ष संकल्प लेते हैं। नीले या लाल पुष्प अर्पित करना शुभ माना जाता है, वहीं गुड़ का भोग विशेष प्रिय है। धूप-दीप जलाकर माता का ध्यान करने के बाद शास्त्रों में बताए गए मंत्र का जप करना चाहिए।
उपासना मंत्र: ॐ देवी कालरात्र्यै नमः
साथ ही सप्तशती पाठ, देवी कवच और अर्गला स्तोत्र का पाठ करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। रात्रि के समय हवन और दीपदान करना भी अत्यंत फलदायी बताया गया है।
**उपासना का फल**
माँ कालरात्रि की आराधना से भक्त हर प्रकार के भय और रोग से मुक्त होता है। यह साधना जीवन में साहस, निर्भयता और आत्मविश्वास को बढ़ाती है। साधक को तांत्रिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से इनकी उपासना करता है, उसके जीवन से अंधकार दूर होकर प्रकाश का मार्ग खुलता है।
**आधुनिक संदर्भ में महत्व**
आज की व्यस्त और चुनौतियों भरी जिंदगी में माँ कालरात्रि की उपासना नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाती है। यह मानसिक शक्ति, धैर्य और आत्मबल प्रदान करती है। उनका संदेश है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विकट क्यों न हों, यदि श्रद्धा और साहस के साथ उनका सामना किया जाए तो हर संकट पर विजय पाई जा सकती है।
माँ कालरात्रि का स्वरूप यह प्रेरणा देता है कि अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, उसे मिटाने के लिए केवल एक दीपक पर्याप्त होता है। भक्त यदि सच्चे मन से इनकी आराधना करें तो जीवन से भय और संकट समाप्त होकर विजय और मंगल का मार्ग प्रशस्त होता है।





