Navratri 2025: तीसरा दिन, मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व स्वरूप भोग और मंत्र

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Navratri 2025: तीसरा दिन, मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व स्वरूप भोग और मंत्र

 

– डॉ बिट्टो जोशी

 

नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। यह रूप साहस, शौर्य और निर्भयता का प्रतीक माना गया है। भक्तजन इस दिन देवी का पूजन कर अपने जीवन से भय, शत्रु बाधा और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने की कामना करते हैं।

*”देवी चंद्रघंटा का स्वरूप”*

मां चंद्रघंटा का शरीर स्वर्ण के समान तेजस्वी है। इनके मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार की घंटी विराजमान है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। मां की दस भुजाएं हैं, जिनमें विभिन्न अस्त्र-शस्त्र और कमल पुष्प हैं। इनके गले में पुष्पमाला तथा माथे पर तेजस्वी चंद्रमा सुशोभित रहता है।

“*वाहन और विशेषता“*

देवी चंद्रघंटा का वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। इस दिन की पूजा से साधक को आत्मबल, धैर्य और शौर्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन से भय और अशांति का नाश होता है।

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*”भोग“*

मां चंद्रघंटा को दूध और दूध से बने पदार्थ विशेष प्रिय हैं। भक्तजन इस दिन खीर या अन्य दुग्ध उत्पाद का भोग अर्पित करते हैं।

*पूजन मंत्र और स्तुति*

*”बीज मंत्र”*

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥

*”स्तुति मंत्र”*

पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्र केरीया। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता॥

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*पूजन विधि*

1. स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

2. मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र के समक्ष कलश स्थापित करें।

3. सिंदूर, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप अर्पित कर दुग्ध से बने भोग चढ़ाएँ।

4. देवी के मंत्रों का जप कर आरती करें।

*”व्रत कथा”*

महिषासुर नामक राक्षस ने देवराज इंद्र का सिंहासन हड़प लिया था। वह स्वर्ग पर राज करना चाहता था। उसकी इस इच्छा को जानकर देवतागण बहुत चिंतित हो गए। देवताओं ने इस परेशानी के लिए त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मदद मांगी। यह सुनकर त्रिदेव क्रोधित हो गए। इस क्रोध के कारण तीनों के मुख से उत्पन्न ऊर्जा से एक देवी उत्पन्न हुई। भगवान शंकर ने उन्हें अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र दिया। फिर इसी तरह अन्य सभी देवताओं ने भी अपने अस्त्र-शस्त्र माता को सौंप दिए। वहीं इंद्र ने अपनी माता को एक घंटा दिया। इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर का वध करने के लिए आईं। मां का यह रूप देखकर महिषासुर समझ गया कि उसका समय निकट है। महिषासुर ने माता रानी पर आक्रमण कर दिया। तब मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस प्रकार मां ने देवताओं की रक्षा की।

*महत्व*

नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की साधना करने से साधक के जीवन में निर्भयता, साहस और सफलता का संचार होता है। मान्यता है कि इस उपासना से मां भक्तों को शत्रु बाधाओं से मुक्ति दिलाकर जीवन में सुख-शांति प्रदान करती हैं।