वीरता की प्रतिमूर्ति नीरजा…
‘खुदगर्ज़ दुनिया में ये इन्सान की पहचान है, जो पराई आग में जल जाए वो इन्सान है.अपने लिये जिये तो क्या जिये,तू जी ऐ दिल ज़माने के लिय.’
इस गीत की यह सभी पंक्तियां और इसके सभी शब्द अगर किसी वीर नायिका को नमन करते नजर आते हैं, तो वह वीर नायिका है ‘नीरजा’। हां वही नीरजा, जो तब पैदा ही हुई थी, जब यह गीत लिखा गया था। हम बात कर रहे हैं नीरजा भनोत की। नीरजा का जन्म 7 सितम्बर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ था। यह गीत भी करीब इसी समय लिखा गया था। 1966 में रिलीज हुई फिल्म का हिस्सा था। आज नीरजा की बात इसीलिए कर रहे हैं, क्योंकि नीरजा का जन्म आज हुआ था। और उसने यह बता दिया था कि 22 साल 363 दिन में किस तरह अपनी वीरता की मिसाल पेश कर इस फानी दुनिया को अलविदा कहा जाता है। उनकी बहादुरी के लिये मरणोपरांत उन्हें भारत सरकार ने शान्ति काल के अपने सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया और साथ ही पाकिस्तान सरकार और अमरीकी सरकार ने भी उन्हें इस वीरता के लिये सम्मानित किया। ऐसा सम्मान भी नीरजा के अलावा शायद ही किसी को मिला हो।
आईए नीरजा की पूरी कहानी समझते हैं, जो हमें गर्व और प्रेरणा से भर देती है। नीरजा का जन्म 7 सितंबर 1963 को पिता हरीश भनोत और माँ रमा भनोत की पुत्री के रूप में चंडीगढ़ में हुआ। उनके पिता मुंबई में पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत थे और नीरजा की प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर चंडीगढ़ के सैक्रेड हार्ट सीनियर सेकेण्डरी स्कूल में हुई। इसके पश्चात् उनकी शिक्षा मुम्बई के स्कोटिश स्कूल और सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में हुई।नीरजा का विवाह वर्ष 1985 में संपन्न हुआ और वे पति के साथ खाड़ी देश को चली गयी लेकिन कुछ दिनों बाद दहेज के दबाव को लेकर इस रिश्ते में खटास आयी और विवाह के दो महीने बाद ही नीरजा वापस मुंबई आ गयीं। इसके बाद उन्होंने पैन एम में विमान परिचारिका की नौकरी के लिये आवेदन किया और चुने जाने के बाद मियामी में ट्रेनिंग के बाद वापस लौटीं।
पर दुर्भाग्यवश मुम्बई से न्यूयॉर्क के लिये रवाना पैन ऍम-73 को कराची में चार आतंकवादियों ने अपहृत कर लिया और सारे यात्रियों को बंधक बना लिया। नीरजा उस विमान में सीनियर पर्सर के रूप में नियुक्त थीं और उन्हीं की तत्काल सूचना पर चालक दल के तीन सदस्य विमान के कॉकपिट से तुरंत सुरक्षित निकलने में कामयाब हो गये। पीछे रह गयी सबसे वरिष्ठ विमानकर्मी के रूप में यात्रियों की जिम्मेवारी नीरजा के ऊपर थी और जब 17 घंटों के बाद आतंकवादियों ने यात्रियों की हत्या शुरू कर दी और विमान में विस्फोटक लगाने शुरू किये तो नीरजा विमान का इमरजेंसी दरवाजा खोलने में कामयाब हुईं और यात्रियों को सुरक्षित निकलने का रास्ता मुहैय्या कराया।
नीरजा चाहती तो दरवाजा खोलते ही खुद पहले कूदकर निकल सकती थीं किन्तु उन्होंने ऐसा न करके पहले यात्रियों को निकलने का प्रयास किया। इसी प्रयास में तीन बच्चों को निकालते हुए जब एक आतंकवादी ने बच्चों पर गोली चलानी चाही तो नीरजा ने बीच में आकर मुकाबला किया। ऐसा करते वक्त उस आतंकवादी की गोलियों की बौछार से नीरजा की मृत्यु हुई। नीरजा के इस वीरतापूर्ण आत्मोत्सर्ग ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘हीरोइन ऑफ हाईजैक’ के रूप में मशहूरियत दिलाई।
नीरजा को भारत सरकार ने इस अदभुत वीरता और साहस के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया जो भारत का सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है। अपनी वीरगति के समय नीरजा भनोत की उम्र 23 साल थी। इस प्रकार वे यह पदक प्राप्त करने वाली पहली महिला और सबसे कम आयु की नागरिक भी बन गईं। पाकिस्तान सरकार की ओर से उन्हें ‘तमगा-ए-इन्सानियत’ से नवाज़ा गया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीरजा का नाम ‘हीरोइन ऑफ हाईजैक’ के तौर पर मशहूर है। वर्ष 2004 में उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया और अमेरिका ने वर्ष 2005 में उन्हें ‘जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड’ दिया।
नीरजा की समृति में मुम्बई के घाटकोपर इलाके में एक चौराहे का नामकरण किया गया जिसका उद्घाटन 90 के दशक में अमिताभ बच्चन ने किया। इसके अलावा उनकी स्मृति में एक संस्था नीरजा भनोत पैन ऍम न्यास की स्थापना भी हुई है जो उनकी वीरता को स्मरण करते हुए महिलाओं को अदम्य साहस और वीरता हेतु पुरस्कृत करती है। उनके परिजनों द्वारा स्थापित यह संस्था प्रतिवर्ष दो पुरस्कार प्रदान करती है जिनमें से एक विमान कर्मचारियों को वैश्विक स्तर पर प्रदान किया जाता है और दूसरा भारत में महिलाओं को विभिन्न प्रकार के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने और संघर्ष के लिये। प्रत्येक पुरास्कार की धन्राषित 1.5 लाख रुपये है और इसके साथ पुरस्कृत महिला को एक ट्रोफी और स्मृतिपत्र दिया जाता है। महिला अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिये प्रसिद्ध हुई राजस्थान की दलित महिला भंवरीबाई को भी यह पुरस्कार दिया गया था।
नीरजा के इस साहसिक कार्य और उनके बलिदान को याद रखने के लिये उन पर फ़िल्म भी बनी। इस फ़िल्म में नीरजा का किरदार अभिनेत्री सोनम कपूर अदा किया है। यह फ़िल्म 19 फ़रवरी 2016 को रिलीज हुई है। इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर अतुल काशबेकर हैं। तो नीरजा को नमन…जिससे वीरता भी हार गई। और प्राण लेने के बाद भी मौत उससे हार गई। नीरजा कल भी वीरता की पर्याय थी, आज भी वीरता की पर्याय है और कल भी वीरता की पर्याय बन जिंदा रहेगी…।