भारी पड़ रही है वन मंत्री और वन अधिकारियों की लापरवाही, बाघ बना ‘आदमखोर’

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भारी पड़ रही है वन मंत्री और वन अधिकारियों की लापरवाही, बाघ बना ‘आदमखोर’

दिनेश सोलंकी की खास रिपोर्ट

पिछले 20 25 दिनों से महू शहर के नजदीक और ग्रामीण आबादी के बीच बाघ और तेंदुए की आहट ने ग्राम वासियों और नगर वासियों की नींद उड़ा कर रख दी है। साफ लग रहा है कि राज्य के वन मंत्री और इंदौर वन मंडल अधिकारियों को सागवान वृक्षों के लगातार कटते और अतिक्रमण से खुद रहे जंगल की चिंता कतई नहीं है, तभी तो भूख प्यास से व्याकुल बाघ, तेंदुए, नील गाय, बंदर महू के नजदीकी गांवों में बार बार दस्तक दे रहे हैं और अब तो वो सैन्य क्षेत्र से होते हुए महू शहर की सीमा तक दाखिल हो चुके हैं।
रविवार की सुबह लगभग 9 बजे महू तहसील के मलेंडी के जंगल में जानवर चरा रहे चरवाहे का बाघ ने शिकार कर लिया। यानी इतने दिनों से घूम रहे बाघ और तेंदुए को पकड़ पाने में वन विभाग का अमला नाकाम सिद्ध हुआ, खुद सेना ने भी सहयोग किया। लेकिन जंगल के ठिकाने तो वन अधिकारी, कर्मी ज्यादा जानते हैं जो अब जंगल में कम चक्कर लगाते हैं। क्योंकि जगह-जगह जंगल कटते हैं और आदिवासियों को आगे धकेल कर दबंग लोग उनके नाम पर अतिक्रमण करवा जंगल को नुकसान पहुंचाते हैं। उनकी ओर से लंबे समय से वन विभाग आंखें इसलिए चुरा रहा है क्योंकि उनको रोकने के लिए आदिवासी लड़ने में आगे आ जाते हैं। खुद राज्य सरकार को देखिए जैसे वह अवैध कालोनियों को वैध करती है उसी प्रकार जंगल के अतिक्रमण को भी आदिवासियों के नाम पर वैध पट्टा दे देती है। पट्टा मिलते ही दबंग लोग आदिवासियों को ढाल बनाकर जंगल को फिर खोदने में लग जाते हैं। इस बहाने पेड़ काटते हैं और जंगली जानवरों का रहवास खतरे में पड़ जाता है।
यह खेल पिछले कई सालों से चल रहा है जो अब तेज हो गया है। अब परेशान जानवर जन आबादी की ओर दौड़ लगाने लगे हैं।
ज्ञातव्य है कि दिसंबर 2022 यानी ठीक 6 महीने पहले महू सेना के एनसीटीई क्षेत्र में तेंदुआ विचरण करते देखा गया था जिसे बाद में वन विभाग ने घेराबंदी से पकड़ जंगल में छोड़ दिया।
अब फिर दस्तक हुई, पहली बार बाघ महू शहर के नजदीक नजर आया। उसे फिर सैन्य क्षेत्र में भी देखा गया। उसे खोजते घुसते पता चला कि तेंदुआ भी फिर नजर आया है जिसने शहर के नजदीकी गांव गांगलिया खेड़ी में एक साथ 12 बकरों पर हमला कर उन्हें मार दिया। 25 दिनों से कभी तेंदुआ तो कभी बाघ इन्हें पकड़ने के लिए वन विभाग सेना की भी मदद लेता रहा लेकिन ना तो बाघ को खोज पाए ना तेंदुए को।
रविवार की सुबह जंगल में मलेंडी के रहने वाले चरवाहे सुंदरलाल को बाघ ने दबोच लिया और उसके मुंह पैर छोड़कर लगभग खा गया। यानी बाघ अब आदमखोर हो गया है। ग्रामीणों का आक्रोश अब उबल रहा है। सरकार अब क्षतिपूर्ति के रूप में ₹800000 देकर जख्म पर मरहम लगा रही है। लेकिन सच तो यह है कि वन मंत्री और मंडल के आला अधिकारियों ने इतने दिनों में महू आकर वस्तु स्थिति जानने की कोशिश नहीं कि यह जंगली जानवर किसी इंसान की भी बलि भी ले सकते हैं। वन अमला सीसीटीवी कैमरे में देखने के बाद भी एक पिंजरा लगाकर फुर्सत पा रहा था। महू के जंगल इतने बड़े भी नहीं है कि उन्हें शहरी आबादी या ग्रामीण आबादी के बीच खोजा ना जा सके। अब देर हो चुकी है….. और शुरुआत हो चुकी है जानवरों के आदमखोर बनने की…..यह सिलसिला हर साल चलेगा क्योंकि जंगल जो कटते जा रहे हैं और जंगल जो अतिक्रमण की भेंट चढ़ते जा रहे हैं।