संविधान की प्रस्तावना पर नई बहस: RSS के बयान से फिर गरमाई राजनीति

278

संविधान की प्रस्तावना पर नई बहस: RSS के बयान से फिर गरमाई राजनीति

 

27 जून 2025 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने एक कार्यक्रम में कहा कि संविधान की प्रस्तावना से “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्द हटा देने चाहिए। उनका तर्क था कि ये शब्द मूल संविधान में नहीं थे, बल्कि 1976 में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार ने जोड़े थे। उन्होंने कहा कि अब वक्त है कि इन शब्दों की समीक्षा हो और बहस हो कि ये प्रस्तावना में रहें या नहीं। इसी के साथ उन्होंने कांग्रेस से आपातकाल के लिए माफी मांगने की भी बात कही।

होसबोले के इस बयान के बाद देशभर में सियासी हलचल तेज हो गई है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने सोशल मीडिया पर RSS को “सबसे बड़ा जातिवादी और नफरत फैलाने वाला संगठन” बताते हुए कहा कि ये संविधान, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र पर सीधा हमला है। लालू ने सवाल उठाया कि RSS और उसके समर्थक लोकतंत्र और बाबा साहेब के संविधान से इतनी नफरत क्यों करते हैं। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भी RSS की इस मांग को संविधान की आत्मा पर हमला करार दिया और कहा कि वे किसी भी कीमत पर संविधान की रक्षा करेंगे।

गौरतलब है कि इसी मुद्दे पर नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट फैसला दिया था। कोर्ट ने “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में बनाए रखने की बात कही थी और इन्हें हटाने की मांग वाली याचिकाएं खारिज कर दी थीं। कोर्ट ने कहा था कि ये दोनों शब्द संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं और भारत की विविधता, समानता और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करते हैं।

इस तरह, RSS के ताजा बयान ने एक बार फिर संविधान की प्रस्तावना, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र को लेकर बहस को ताजा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद, यह मुद्दा फिर से देश की राजनीति और समाज में चर्चा का केंद्र बन गया है।