हैदराबाद में शहरी विकास को नई रफ्तार: आउटर रिंग रोड के इंटरचेंज और HMDA की लैंड पूलिंग योजना

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हैदराबाद में शहरी विकास को नई रफ्तार: आउटर रिंग रोड के इंटरचेंज और HMDA की लैंड पूलिंग योजना

रुचि बागड़देव की खास रिपोर्ट

हैदराबाद: हैदराबाद का आउटर रिंग रोड (ORR) शहर के ट्रैफिक और कनेक्टिविटी को पूरी तरह बदल चुका है। 158 किलोमीटर लंबा और आठ लेन वाला यह एक्सप्रेसवे 20 इंटरचेंज के साथ शहर को हाईटेक एयरपोर्ट, आईटी हब और कई नेशनल हाईवे से जोड़ता है।

ORR के चलते नए टाउनशिप, ऑफिस और तेज ट्रैफिक मूवमेंट की राह खुली है, जिससे हैदराबाद देश के सबसे तेजी से बढ़ते शहरों में शामिल हो गया है।

अब हैदराबाद मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (HMDA) शहरी विकास को और व्यवस्थित करने के लिए लैंड पूलिंग एंड एरिया डेवलपमेंट (LPAD) मॉडल लागू करने जा रही है। गुजरात और भुवनेश्वर जैसी जगहों पर सफल रहे इस मॉडल के तहत HMDA पहले से ही 10 संभावित साइट्स (हर एक करीब 5,000 एकड़) चिह्नित कर चुकी है।

LPAD का मकसद है- भूमि का न्यायसंगत पुनर्गठन, एकीकृत इंफ्रास्ट्रक्चर, और विकास के लिए तैयार प्लॉट्स की चरणबद्ध रिहाई, ताकि अनियंत्रित निर्माण और मास्टर प्लान की असंगति जैसी समस्याएं दूर की जा सकें।

HMDA अब एक परामर्शदाता के जरिए नए कानून, नियम और दिशा-निर्देश तैयार कर रही है। पायलट प्रोजेक्ट के लिए दो साइट्स पर प्री-फिजिबिलिटी स्टडी भी होगी। अधिकारियों का कहना है कि अब इंफ्रास्ट्रक्चर की प्लानिंग विकास से पहले होगी, जिससे शहर का विस्तार और भी स्मार्ट और टिकाऊ बनेगा।

लैंड पूलिंग मॉडल से स्थानीय लोगों और किसानों को कई बड़े फायदे होते हैं:

1. किसानों को अपनी जमीन बेचनी नहीं पड़ती, बल्कि वे अपनी जमीन का हिस्सा विकसित प्लॉट के रूप में वापस पाते हैं।
2. उन्हें नकद मुआवजा नहीं, बल्कि बेहतर लोकेशन पर, सभी सुविधाओं के साथ विकसित प्लॉट मिलता है, जिससे जमीन की कीमत कई गुना बढ़ जाती है।
3. जमीन मालिकों को प्रोजेक्ट के पास ही प्लॉट मिलता है, जिससे वे चाहें तो खुद इस्तेमाल करें या ऊँचे दाम पर बेच सकें।
4. बिखरी हुई जमीनों को एक साथ विकसित करने से इलाके का इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी भी बेहतर होती है।
इससे किसान और स्थानीय लोग दोनों आर्थिक रूप से मजबूत होते हैं और शहरी विकास में भी भागीदार बनते हैं।

हालांकि, लैंड पूलिंग के कुछ नुकसान और चुनौतियाँ भी हैं:

1. सभी किसानों की सहमति मिलना मुश्किल हो सकता है, जिससे प्रोजेक्ट में देरी होती है।
2. विकसित प्लॉट मिलने में समय लगता है, तब तक किसानों को आय नहीं होती।
3. कभी-कभी विकसित प्लॉट की लोकेशन या आकार किसानों की उम्मीद के मुताबिक नहीं होती।
4. जमीन के कागजी काम और सरकारी प्रक्रिया जटिल हो सकती है।

भारत में लैंड पूलिंग मॉडल सबसे ज्यादा गुजरात (अहमदाबाद) और ओडिशा (भुवनेश्वर) में सफल रहा है। दिल्ली में भी डीडीए ने लैंड पूलिंग पॉलिसी लागू की है, हालांकि वहां प्रगति थोड़ी धीमी रही है। अहमदाबाद और भुवनेश्वर में किसानों को विकसित प्लॉट और बेहतर सुविधाएं मिलीं, जिससे उनकी संपत्ति की वैल्यू काफी बढ़ गई।