मोदी मंत्रिपरिषद में विस्तार और पुनर्गठन में फंसा नया पेंच

शपथ ग्रहण टलने से मंत्री बनने की आशा में बैठें सांसद हुए निराश

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मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ताकत झोंकती भाजपा!

मोदी मंत्रिपरिषद में विस्तार और पुनर्गठन में फंसा नया पेंच

नई दिल्ली से गोपेंद्र नाथ भट्ट की खास रिपोर्ट

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बहु प्रतीक्षित मंत्रिपरिषद का पुनर्गठन और फेरबदल और नए मंत्रियों का शपथ ग्रहण टलने से मंत्री बनने की आशा में बैठें सांसदों को गहरी निराशा हुई है। राजनीतिक जानकार बताते है कि सभी तैयारियों के बावजूद मोदी मंत्रिपरिषद का विस्तार का कारण कोई नया पेंच फँसना बताया जा रहा है। एनडीए को समर्थन करने वाली पार्टियों के प्रतिनिधियों के नाम फाइनल नही होना और भाजपा के कतिपय मंत्रियों को सत्ता से संगठन में भेजने को लेकर एक राय नही होना भी इसमें एक बड़ा कारण बताया जा रहा है।

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की सबसे प्राथमिकता अगले वर्ष होने वाला लोकसभा का आम चुनाव तीसरी बार जीतना है और उनकी निगाहें विपक्षी दलों की सांझा बैठक पर गढ़ी हुई है जोकि आगामी 17-18 जुलाई को बेंगलूरू में होने वाली है। उनकी रणनीति को देखने परखने के बाद ही भाजपा अपनी आगे की रण नीति बनायेंगी ऐसा बताया जा रहा है ।
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों आज से 15 जुलाई तक राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से बाहर है और बीस जुलाई से संसद का मानसून सत्र आरम्भ होने वाला है । संसद सत्र के बाद पन्द्रह अगस्त स्वतंत्रता दिवस की तैयारियाँ शुरू हों जायेंगी जिसमें प्रधानमंत्री मोदी हर बार की तरह इस बार भी लाल क़िले की प्राचीर से राष्ट्र को अपने सम्बोधन में कोई नई घोषणा कर सकते है।

अतः यदि मोदी अपने दूसरे कार्यकाल ने अपने मंत्रिपरिषद का आखिरी विस्तार करते है तों यह कार्य वर्तमान परिस्थितियों में अगले कुछ दिनों में हों सकता है अन्यथा प्रधानमंत्री मोदी मंत्रिपरिषद का विस्तार या पुनर्गठन किए बिना अपने वर्तमान मंत्रियों के विभागों में छोटा बड़ा बदलाव कर ही काम चलाया जा सकता है।

फिर यह भी सही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फैसलों की थाह कोई भी नही ले सकता । वे कभी भी अचानक चौंकाने वाले फैसले कर सकते है।

राजधानी के राजनीतिक सूत्र बता रहे है कि वर्तमान में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ही भाजपा के मुख्य रणनीतिकार है जोकि अपनी शीर्ष संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक से परामर्श कर राजनीतिक फ़ैसले लेते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली को देखते हुए कोई भी गोपनीय सूचना बाहर आने की गुंजाइश ही नहीं रहती है और मीडिया भी सिर्फ क़यासों के आधार पर अपने अनुमान लगा रहा है।