No Chance of Cheap Cooking Oil
बसंत पाल की विशेष रिपोर्ट
Indore MP: किसानों को खुश करने की सरकार की कोशिशें फिलहाल तो कामयाब होती दिखाई नहीं दे रही। सोयाबीन उपजाने वाले किसानों को उम्मीद थी कि उन्हें अपनी फसल के अच्छे दाम मिलेंगे, पर ये लग नहीं रहा। सरकार ने खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी घटाकर तेलों के दाम घटाना चाहे थे, पर ये नीति उल्टी पड़ गई।
सरकार के इस फैसले से सोयाबीन की नई फसल के भाव घट गए। इससे उन्हें सोयाबीन की फसल की सही कीमत नहीं मिल रही। ऐसी स्थिति में त्यौहारों के मौसम में खाने के तेल की कीमत आने वाले दिनों में और बढ़ने की संभावना है।
सात राज्यों में आसन्न चुनाव के कारण केंद्र सरकार बढ़ती महंगाई से परेशान है। इसे काबू में रखने के जितने प्रयास सरकार कर रही है, वो नाकाफी साबित हो रहे। बीते एक साल में खाने के तेलों के दाम दो गुना हो गए। इसके साथ ही अन्य रोजमर्रा के उपयोग की वस्तुओं के दाम भी आसमान छू रहे हैं।
केंद्र सरकार ने पिछले सप्ताह आयातित तेलों पर शुल्क में भारी कटौती कर तेलों के दाम कम करने के प्रयास किए थे, पर ठीक इसके विपरीत मलेशिया पाम तेल निर्माताओं ने भाव बढ़ा दिए। इससे भारत के घरेलू बाजार में भाव नहीं घटे।
सरकार के शुल्क कटौती के फैसले का नई सोयाबीन के भाव पर विपरीत असर पड़ा है। इससे किसानों को सोयाबीन फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा, वहीं खाने के तेल के दाम आने वाले फेस्टिवल सीजन में और बढ़ने की संभावना है। दूसरी और नई कृषि नीति पर बीते 8 माह से किसान और सरकार के बीच चल रहा विवाद जारी है। सरकार किसानों को खुश करने के बजाय नाराज करती ज्यादा दिखाई दे रही है।
क्योंकि, अब तक नई खरीफ तिलहन फसलों की आवक के समय यह होता आया है, कि सरकार आयातित खाद्य तेलों की आवक को बाधित करने के लिए आयात शुल्क बढ़ाती थी, जिससे किसानों को फसल का अच्छा दाम मिलता था, पर आयातित तेलों के शुल्क में कमी करने का लाभ भी तेल कारोबारियों और उद्योगपतियों को होगा। वे कम दाम पर नई सोयाबीन का बड़ी मात्रा में खरीदी कर स्टाक कर रहे है।
सरकार ने स्टॉक लिमिट का अधिकार भी राज्यों को दे दिया है। जिस राज्य को उचित लगे वो स्टॉक लिमिट लगाकर तेल-तिलहन के दाम नियंत्रित करे। पर, अब तक किसी राज्य ने स्टॉक लिमिट नहीं लगाई। मंडियों में सोयाबीन के भाव घटकर 4000 से 4500 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गए, जो नई आवक के मुहूर्त सौदों में 11000 रुपए तक हुए थे।
बाजार विश्लेषकों का मानना है कि किसानों को नई सोयाबीन का दाम कम से कम 6250 से 6500 रुपए क्विंटल तक मिलना चाहिए, पर आगामी दिनों में सोयाबीन की आवक बढ़ने पर भाव में और कमी आ सकती है। इससे जहां किसानों की सरकार के प्रति नाराजी और बढ़ सकती है। वहीं घरेलू बाजारों में फेस्टिवल सीजन में खाने के तेल के दाम कम होने की संभावना दिखाई नहीं देती।
(लेखक कृषि और कार्पोरेट मामलों के जानकार हैं)