मध्यप्रदेश से क्या कोई राज्यसभा के लायक नहीं!

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राज्यसभा की एक सीट को लेकर भाजपा के कुछ नेताओं को जिस बात की आशंका थी, वो सही साबित हुई। कहा जा रहा था कि पार्टी में संभावित असंतोष को देखते हुए किसी बाहरी नेता को उम्मीदवार बनाया जा सकता है, वही हुआ भी सही! पार्टी हाईकमान ने तमिलनाडु के नेता डॉ अल मुरुगन को मध्यप्रदेश से भाजपा का उम्मीदवार बनाया है। इन दिनों भाजपा में एक बात चटखारे लेकर की जा रही है, कि गुजरात में जो हुआ, उसके बाद पार्टी में कुछ भी हो सकता है! राज्यसभा उम्मीदवार का चयन भी उसी आशंका का अगला कदम है।
  मध्यप्रदेश से राज्यसभा की 11 सीटें हैं। इनमें 10 सीटों में से 7 पर भाजपा के सदस्य हैं, तीन पर कांग्रेस का कब्जा है। अब जो उपचुनाव है, वह एक सीट के लिए होना है। ये उपचुनाव निर्विरोध होगा और भाजपा उम्मीदवार आसानी से चुनाव जीत दर्ज कर सकेगा। क्योंकि, कांग्रेस ने इस चुनाव से अपने आपको अलग रखा। उसे किसी तरह का राजनीति लाभ नजर नहीं आ रहा, इसलिए ये सही फैसला भी है। लेकिन, भाजपा ने जिस तरह उम्मीदवार का चयन किया, उसने कई भाजपा नेताओं को निराश किया होगा। थावरचंद गहलोत निमाड़-मालवा इलाके से आते हैं और अनुसूचित जाति वर्ग के हैं ऐसे में पार्टी को प्रत्याशी चयन के जरिए निमाड़-मालवा क्षेत्र और अनुसूचित जाति वर्ग दोनों को बेहतर संदेश था। पर, उनकी जगह जिसे उम्मीदवारी दी गई, उससे प्रदेश की भाजपा राजनीति के समीकरण सही नै बैठते।
L Murugan
    केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत को जब राज्यपाल बनाकर कर्नाटक भेजने का फैसला किया गया तो मध्यप्रदेश से राज्यसभा की ये सीट खाली हुई थी। उसके बाद से ही अनुसूचित जाति के कई नेताओं की नजरें इस सीट पर लगी थी। थावरचंद गहलोत के इस्तीफे के बाद अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले नेताओं में इस वर्ग से मध्य प्रदेश से कोई राज्यसभा सदस्य भी नहीं है। प्रदेश सरकार में मंत्री रहे लालसिंह आर्य का नाम सबसे ज्यादा संभावित नामों में से था। वे पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी है। लेकिन, पार्टी ने सुदूर तमिलनाडु के डॉ अल मुरुगन को उम्मीदवार बनाकर कई को निराश किया। जब तक उम्मीदवार तय नहीं हुआ था, तब तक अलग-अलग अंचल से अलग-अलग जाति वर्ग से तर्क दिए जा रहे थे। लेकिन, पार्टी हाईकमान का अलग ही मंथन चल रहा था, जो पहले से तय था। पहले सर्वानंद सोनोवाल का नाम भी सामने आया, पर उन्हें असम से उम्मीदवार बनाया।
    भाजपा में उम्मीदवार को लेकर लम्बे समय से मंथन का दौर चल रहा था। कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के अलावा केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया और पूर्व मंत्री लालसिंह आर्य के नाम चर्चा में थे। सबसे प्रबल नाम लालसिंह आर्य का था। लेकिन, डॉ अल मुरुगन का नाम सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रहा! वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री हैं और अभी किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। मध्यप्रदेश से भाजपा के जो राज्यसभा के बाहरी सदस्य हैं, उनमें एक धर्मेंद्र प्रधान भी हैं, जो मूलतः ओडिशा से हैं, पर उन्हें मध्यप्रदेश से भेजा गया था। पार्टी का ये रवैया ये भी बताता है कि उसके लिए मध्यप्रदेश के भाजपा नेताओं की हैसियत क्या है! इस प्रदेश को राजनीतिक चरागाह की तरह समझा जाने लगा है! ये पहली बार नहीं हुआ, ऐसे राजनीतिक फैसले पहले भी हुए हैं।
   देश के पांच राज्यों से राज्यसभा सीटों के लिए 23 सितंबर से नामांकन पत्र दाखिल किए जाएंगे। जरूरत होने पर 4 अक्टूबर को मतदान होगा। इस सीट से जो भी सदस्य चुना जाएगा उसका कार्यकाल 2 अप्रैल 2024 तक रहेगा। मध्य प्रदेश में भाजपा बहुमत में है इसलिए  कारण भाजपा खेमे से ही दावेदारियां हो रही हैं। थावरचंद गहलोत अनुसूचित जाति वर्ग से थे, इस वजह से इस वर्ग के दावेदार नेताओं को उम्मीद थी, जो स्वाभाविक है। थावरचंद गहलोत जिस वर्ग से हैं, उस समाज का कोई भी नेता राज्यसभा या लोकसभा में पूरे कार्यकाल के लिए नहीं भेजा गया। जबकि, इस समाज की संख्या 40 लाख के करीब है।
   राज्यसभा के लिए जिस उम्मीदवार डॉ अल मुरुगन को चुना गया, वे तमिल राजनीतिज्ञ और पेशे से अधिवक्ता हैं। फ़िलहाल वे मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय और सूचना और प्रसारण मंत्रालय में राज्य मंत्री के रूप में कार्यरत हैं। इससे पहले वे भारतीय जनता पार्टी की तमिलनाडु इकाई के प्रदेश अध्यक्ष रहे थे। तमिलनाडु के नामक्कल जिले के निवासी मुरुगन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने से पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष थे। डॉ मुरुगन ने मानवाधिकार कानून में स्नातकोत्तर कर डॉक्टरेट की है! मार्च 2020 में जब वे भाजपा की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष बने थे, तब उनके पास विधानसभा चुनाव की तैयारी करने के लिए साल भर का ही समय था। राज्य में द्रविड़ विचारधारा की गहरी जड़ों के चलते हिन्दुत्व को आगे रखने वाली पार्टी का नेतृत्व करना मुरुगन के लिए आसान काम नहीं था। लेकिन, उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत जरूरत पड़ने पर ‘सॉफ्ट द्रविड़ विचारधारा’ को अपनाने में झिझक नहीं दिखाई। साथ ही अपनी पार्टी के राष्ट्रवाद को भी बरकरार रखा। विधानसभा चुनाव में मुरुगन बहुत कम मतों के अंतर से हारे थे। वे धारापुरम (सुरक्षित) निर्वाचन क्षेत्र से 1,393 मतों के अंतर से विधानसभा चुनाव हार गए थे।