अब चुनावी साल है, मंत्रियों को संगठन से मार्गदर्शन लेना जरूरी है…

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अब चुनावी साल है, मंत्रियों को संगठन से मार्गदर्शन लेना जरूरी है…

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जन्मदिन पर प्रदेश भाजपा कार्यालय में मंत्रियों को बैठक पर बुलाकर नसीहतों की घुट्टी पिलाई गई है। यह बताया गया है कि अब संगठन के मार्गदर्शन में आगे बढ़ने में ही भलाई है। कार्यकर्ताओं की संतुष्टि का ख्याल नहीं रखा तो यह समझ लेना कि 2023 की नैया अपने बूते पार नहीं कर पाओगे। राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा संग सरकार और संगठन के बीच संतुलन और समन्वय बनाने की बात प्यार भरे माहौल में पूरी सख्ती से हुई है। अब मंत्रियों की कार्यप्रणाली में कितना अंतर दिखाई देता है, यह आने वाला समय ही बताएगा।

वैसे यह कोई नई बात नहीं है। खास तौर से हर विधानसभा चुनाव से पहले यह कवायद की जाती है कि कार्यकर्ताओं के चेहरे पर मुस्कराहट लाने के पूरे जतन किए जाएं। और मंत्रियों को इस हकीकत से रूबरू कराया जाता है कि कैडर बेस पार्टी में कार्यकर्ताओं की मेहनत का‌ रंग सत्ता में बैठे चेहरों पर चमक रहा है। यदि पार्टी सरकार में हैं, तो संगठन और कार्यकर्ताओं की वजह से ही संभव हो सका है। ऐसे में मंत्रियों का परम कर्तव्य है कि संगठन के कामों को प्राथमिकता दें। पार्टी जो भी कार्यक्रम निर्धारित करे, उन्हें गंभीरता पूर्वक समयबद्ध तरीके से पूरा करें। कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने में तन, मन और हर जतन करने में कोई कसर बाकी नहीं रहे। साफ बात यही कि जो संगठन के इशारे पर खरा नहीं उतरा, वह अपने करनी का फल चखने के लिए तैयार रहे।


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मतलब साफ है कि चुनावी साल में संगठन का दबदबा होने वाला है। संगठन मंत्रियों को कोर कमेटी की बैठकों या किसी दूसरे संगठनात्मक कामों में जब भी तलब करेगा, तब केवल हाजिरी जरूरी नहीं बल्कि परफोर्मेंस रिपोर्ट भी ए प्लस ग्रेड की होना अनिवार्य है। जिलों में मंत्री विधायकों को जिला संगठन को पूरी तवज्जो देनी पड़ेगी। जिला अध्यक्ष की सहमति से ही मंत्री और प्रभारी मंत्री कदम आगे बढ़ाएं। कार्यकर्ता का तब भी खुश होना बहुत जरूरी है, जबकि सरकार और मंत्री को अपनी काबिलियत और कामों पर पूरा भरोसा हो। वरना बूथ पर सरकार और मंत्री बिना कार्यकर्ताओं की मदद के खुद को संतुष्ट नहीं कर पाएंगे। तो चुनावी बेला में संगठन के मार्गदर्शन में ही सत्ता के दर्शन किए जा सकते हैं, यह सरकार को पता चल गया है। और इसके मुताबिक अब मंत्रियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाया गया है।