अब फिर चर्चा में आ गई खुरई विधानसभा सीट…

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अब फिर चर्चा में आ गई खुरई विधानसभा सीट…

 

मध्यप्रदेश की खुरई विधानसभा सीट एक बार फिर चर्चा में आ गई है। 10 अक्टूबर 2023 को खुरई के कद्दावर कांग्रेसी नेता रहे अरुणोदय चौबे की कांग्रेस में वापसी पर खुरई विधानसभा सीट का चर्चा में आना स्वाभाविक है। पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा के दिग्गज नेता भूपेंद्र सिंह से हारे अरुणोदय चौबे ने पंद्रह माह की कांग्रेस सरकार जाने के करीब दो साल बाद पार्टी छोड़ दी थी। उनकी करीबी भूपेंद्र सिंह से मानी जा रही थी, हालांकि इसको लेकर राजनैतिक वजह अलग बताई जा रही थीं। अरुणोदय चौबे ने कांग्रेस के रवैये से त्रस्त होने का हवाला देकर सभी पदों और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया था। भूपेंद्र सिंह ने भाजपा की सदस्यता लेने का ऑफर भी दिया था लेकिन औपचारिक तौर पर उन्होंने भाजपा का दामन नहीं थामा था। माना जा रहा था कि वह 2023 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। और इसी बीच यह चर्चा भी आई थी कि खुरई विधानसभा सीट से भाजपा नेता भूपेंद्र सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस के पास कोई उम्मीदवार नहीं है। और तब खुरई पहुंचे दिग्गज कांग्रेसी नेता को कहना पड़ा था कि यदि कोई प्रत्याशी नहीं मिला तो वह खुद भूपेंद्र सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे।

पर अब चुनाव आचार संहिता लगने के बाद अरुणोदय चौबे की कांग्रेस में वापसी ने यह तय कर दिया है कि खुरई विधानसभा सीट से भाजपा और कांग्रेस के परंपरागत चेहरे भूपेंद्र सिंह और अरुणोदय‌ चौबे फिर आमने-सामने होंगे। खुरई के चुनावी संग्राम में यही दो महायोद्धा हर समय मतदाताओं को चुनाव होने का अहसास करा पाते हैं। और यदि कांग्रेस से अरुणोदय चौबे सामने हैं, तो भाजपा से भूपेंद्र सिंह भी हर चाल चलने में कोई चूक नहीं करते।

परिसीमन के बाद खुरई विधानसभा से 2008 में कांग्रेस पार्टी से लड़े और कमलनाथ के करीबी माने जाने वाले अरुणोदय चौबे ने भूपेंद्र सिंह को हराकर चुनाव जीता था। उसके बाद वर्ष 2013 में कांग्रेस ने इन्हें फिर से टिकट दिया, लेकिन भूपेंद्र सिंह ने इन्हें हरा दिया। वर्ष 2018 में भी कांग्रेस ने इन्हें मौका दिया, लेकिन उस समय मंत्री भूपेंद्र सिंह ने फिर से इन्हें और बड़े अंतर से हरा दिया था।

2013 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भूपेंद्र भैया (बीजेपी) ने 62127 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस से अरुणोदय चौबे को 6084 मतों के अंतर से हराया था। दूसरा स्थान (56043) वोटों के साथ अरुणोदय चौबे अन्नू भैया (कांग्रेस) को मिला था। वहीं 2018 में जीत-हार का अंतर 15295 पर पहुंच गया था। भूपेंद्र सिंह को 78156 मत मिले थे, तो अरुणोदय चौबे को 62861 मत मिले थे।

खुरई विधानसभा सीट को इस पंचवर्षीय योजना में विकास के नए रिकॉर्ड बनाने के लिए जाना जाता है। मंत्री रहते हुए भूपेंद्र सिंह ने खुरई के मतदाताओं को सारी योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने की कोशिश की है, तो सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ कानून-व्यवस्था पर भी खास फोकस किया है। इसीलिए इस पंचवर्षीय योजना में “खुरई मॉडल ऑफ डेवलपमेंट” चर्चा में रहा है। पर लोकतंत्र में यदि मजबूत प्रतिद्वंद्वी सामने हो, तो जीत-हार रोमांचक हो जाती है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों में यही जोड़ी आमने-सामने रही है। 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यह सीट 17,317 वोटों (17.16%) के अंतर से जीती थी। तो 2013 विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र सिंह ने यह सीट 6084 मतों से और 2018 विधानसभा चुनाव में उनकी जीत की बढ़त 15295 पर पहुंच गई थी। अब देखना यह है कि कांग्रेस अरुणोदय चौबे को मैदान में उतारती है तो फिर परंपरागत प्रतिद्वंदी जीत पर कब्जा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। कुल मिलाकर खुरई का विधानसभा चुनाव “खुरई मॉडल ऑफ डेवलपमेंट” वर्सेज अन्य मुद्दों पर केंद्रित होने वाला है। यहां भूपेंद्र सिंह का कद लगातार बढ़ता गया है और अब 2023 विधानसभा चुनाव एक बार फिर चर्चा में लाएगा “खुरई मॉडल ऑफ रिजल्ट”

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