अब तो इस ह्रदय प्रदेश में दम तोड़ती मधुशाला …
मध्यप्रदेश सरकार ने नई शराब नीति में विभिन्न प्रावधान कर यह साफ कर दिया है कि अब शराब पीने वालों की खैर नहीं है। क्योंकि घरों में बैठकर शराब पीने का कल्चर मुट्ठी भर परिवारों में भी नहीं है। ऐसे में शराब पीने वाले जो घर में बैठकर भी नहीं पी सकते और जिनकी बाहर बैठकर पीने की सुविधा पर भी ताला लग गया है, ऐसे शराबी तो न घर के रहे और न घाट के। आफत यह भी है कि शराब पीने वाले बिना शराब पिए भी नहीं जी सकते, सो खास तौर से गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लोग मधुशाला से मधु खरीदेंगे भी और अब सम्मान के साथ गटकने के दरवाजे बंद हो गए हैं सो बेइज्जत होकर और अपराध बोध से ही सही गटकेंगे भी सही। फिर चाहे पुलिस लात मारे या बेइज्जती से रिहाई का शुल्क वसूलकर नशा उतार कर घर जाकर तड़प-तड़प कर रात गुजारने को छोड़ दे, यह पुलिस वालों के विवेक पर निर्भर है। वैसे अब सरकार चाहे तो शराबियों के लिए रैनबसेरा बनाकर उपकार कर सकती है।
क्योंकि शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों पर भी सरकार ने शिकंजा कड़ा कर दिया है। ऐसे में वह शराबी जो किसी भी हाल में बिना पिए नहीं रह सकते, उन्हें शराब दुकान से शराब खरीदकर रैनबसेरा में रुककर अपना शौक पूरा करने और रात गुजारने की मोहलत तो मिले। ताकि पुलिस की जोर-जबर्दस्ती का बुरा दौर उनकी आंखों को देखने के लिए मजबूर न होना पड़े। आखिर जब सबसे तेज रोशनी में नहाई शराब की दुकानें गम में सराबोर शराबी की आंखों से आंखें मिलाएंगीं, तो शराब पीने का आदी दरिद्र बिना शराब खरीदे कैसे रह पाएगा? शराब खरीदने के बाद के उसके बुरे हाल पर फिर सबसे पहले तो शराब की दुकान ही हंसेगी, फिर बची खुची खिल्ली पूरी दुनिया उड़ाएगी।
और वह बेचारा फिर यही भीख मांगेगा कि मारना ही था, तो सरकार एक झटके में प्रदेश से शराब का नामोनिशान ही मिटा देती, शराबियों को हलाल करने से आखिर क्या फायदा मिलेगा। बेचारों को पीना भी है और पीने के बाद जीना भी है लेकिन अगर सरकार शराबियों को हतोत्साहित और शराब बिक्री को प्रोत्साहित करने की नीति अपनाएगी, तो इस केर-बेर की नीति में गरीबों की दुर्दशा के अलावा और क्या हासिल होगा?
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सरकारी बयान है कि शराब को हतोत्साहित करने की दिशा में मुख्यमंत्री जी लगातार आगे बढ़ रहै हैं। सभी अहाते बंद किए जा रहे हैं। सभी शॉप बार बंद किए जा रहे हैं। मदिरा दुकानों में बैठ कर पीने की अनुमति नहीं होगी। शराब पीकर वाहन चलाने वालों के ड्राइविंग लाइसेंस निलंबित करने के प्रावधान कड़े किए जा रहे हैं। शैक्षणिक संस्थानों के आसपास शराब की दुकान नहीं रहेंगी ,50 मीटर के दायरे को बढ़ाया जा रहा है। सरकार के सभी कदम सराहनीय हैं, लेकिन इन प्रावधानों से शराब पीने वालों के साथ शराब ठेकेदारों पर भी गाज गिरी है। पहले से ही अधमरे शराब ठेकेदारों को नई नीति ने पूरी तरह से कुचलने का काम किया है। उन्हें अब चिंता खाए जा रही है कि घाटे में दुकान लेकर सरकार को राजस्व की आपूर्ति करने का काम इस धंधे से मुनाफा कमाने के लालच में कब तक करते रहेंगे। अहाता और शॉप बार बंद होने से शराब की बिक्री में गिरावट आना तय है। वहीं सरकार शराब दुकानों का आवंटन पाने के लिए पहले से रेट बढ़ाकर ही प्रक्रिया का हिस्सा बनने देगी। ऐसे में शराब ठेकेदार भी गहन चिंतन मनन में डूबे तनाव के दौर से गुजर रहे हैं। ह्रदय प्रदेश में अब शराबी और शराब ठेकेदार सभी घुटन का शिकार हैं। मधुशाला भी अब ह्रदय प्रदेश में दम तोड़ने को मजबूर हैं। इससे ज्यादा बेहतर तो मोदी का गुजरात और नीतिश का बिहार ज्यादा बेहतर है कि अब जिसको जो सूझे सो गुनाह करता रहे लेकिन सरकार तो शराब बिकवाने के गुनाह से पूरी तरह मुक्त है।
खैर तनाव छोड़ें शराब पीने वाले और शराब बेचने वाले और आओ स्वर्गीय हरिवंशराय बच्चन की मधुशाला की पंक्तियों का आनंद उठाएं। ह्रदय प्रदेश में अब मधुशाला का यह वर्णन कुछ मेल सा खा रहा है…।
लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।
जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।
बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
‘होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले’
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।