अब वे दिन सपने हुए हैं …
कौशल किशोर चतुर्वेदी
अब वे दिन सपने हुए हैं कि जब सुबह पहर दिन चढे तक किनारे पर बैठ निश्चिंत भाव से घरों की औरतें मोटी मोटी दातून करती और गाँव भर की बातें करती। उनसे कभी कभी हूं-टूं होते होते गरजा गरजी, गोत्रोच्चार और फिर उघटा-पुरान होने लगता। नदी तीर की राजनीति, गाँव की राजनीति। लडकियां घर के सारे बर्तन-भांडे कपार पर लादकर लातीं और रच-रचकर माँजती। उनका तेलउंस करिखा पानी में तैरता रहता। काम से अधिक कचहरी । छन भर का काम, पहर-भर में। कैसा मयगर मंगई नदी का यह छोटा तट है, जो आता है, वो इस तट से सट जाता है।
ये पंक्तियाँ ये विवेकी राय के एक लेख की हैं जो उन्होंने एक नदी ‘मंगई’ के बारे में लिखी हैं। विवेकी राय की प्रथम कहानी ‘पाकिस्तानी’ दैनिक ‘आज’ में 1945 में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उनकी लेखनी हर विधा पर चलने लगी जो आजीवन चलती रही। उनका रचना कार्य कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, डायरी, समीक्षा, सम्पादन एवं पत्रकारिता आदि विविध विधाओं से जुड़े रहे थे। अब तक उन सभी विधाओं से सम्बन्धित लगभग 70 कृतियाँ आपकी प्रकाशित हो चुकी हैं।मनबोध मास्टर की डायरी और फिर बैतलवा डाल पर इनके सबसे चर्चित निबंध संकलन हैं और सोनामाटी उपन्यास राय का सबसे लोकप्रिय उपन्यास है।
विवेकी राय का आज जन्मदिन है। विवेकी राय का जन्म 19 नवम्बर सन 1924 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के भरौली ग्राम में हुआ था, जो उनका ननिहाल था। उनके जन्म के डेढ़ महीना पहले ही पिता शिवपाल राय की प्लेग की महामारी से मृत्यु हो गई थी। मां ने अपने मायके में पाला, बड़ा किया। माता का नाम जविता देवी था। जब विवेकी राय 7वीं कक्षा में अध्ययन कर रहे थे उसी समय से डॉ.विवेकी राय जी ने लिखना शुरू किया। गाजीपुर के एक कॉलेज़ में प्रवक्ता होने के साथ-साथ अपने गाँव के किसान बने रहे थे। डॉ. विवेकी राय गाँव की बनती-बिगड़ती जिंदगी के बीच जीते हुए और उसे पहचानते हुए चलते रहे थे। इसलिए गाँव के जीवन से सम्बंधित उनके अनुभवों का खजाना चुका नहीं, नित भरता ही गया। साहित्य रचते-रचते 22 नवम्बर, 2016 को विवेकी राय ने इस नश्वर संसार को 92 साल की उम्र में अलविदा कह दिया।
विवेकी राय के ग्राम्य जीवन से गहरे सरोकार के कारण ही ʽसोनामाटीʽ की रचना हुई है। गाँव की जनता संघर्षशील है। उपन्यास में लेखक का सर्वाधिक ध्यान अंचल विशेष की जन-चेतना को चित्रित करने पर केन्द्रित है। उन्होंने जन-सामान्य के प्रति अपनी संवेदना को महसूसा और वर्णित किया है। उपन्यास हकीकत के करीब ले जाता है। ‘सोनामाटी‘ में सरकार गरीबों को दुधारू पशु बाँट रही है कि उनकी दीनदशा फिरे। ʺऐसे ही एक मेले में वह भैंस खुरबा के नाम पर ब्लॉक से निकली थी। असली कीमत अठारह सौ थी और कागज पर पचीस सौ। सात सौ रुपये ग्राम सेवक, डॉक्टर और बीडीओ के पेट में गए।ʺ। रामदरश मिश्र जी विवेकी राय के बारे में विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं, ʺविवेकी राय किसान लेखक हैं, उनके लेखन में अपनी गँवई धरती बोलती है, जनसामान्य की भूख प्यास बोलती है, उनके उत्कर्ष की चिंता बोलती है, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पाखंड के विरुद्ध प्रतिवाद बोलता है, यानी समग्रतः उसमें मनुष्यता बोलती है।ʺ
तो विवेकी राय के वह शब्द सर्वकालिक हैं कि अब वे दिन सपने हुए हैं …आजादी के पहले जो सोचा था, वह सोच अब सपना हो गई है। बचपन के वह दिन अब सपने हो गए हैं, जब सब तरफ प्रेम ही प्रेम दिखता था। अब वे दिन सपने हो गए हैं जिनमें भ्रष्टाचार मुक्त भारत की तस्वीर नजर आती थी। वास्तव में कहा जाए तो अब वे सभी दिन सपने हुए हैं …जिसमें आदर्श चारों तरफ बिखरा नजर आता था…।