OBC Reservation In MP: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी कई सवाल उलझेंगे! 

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मध्यप्रदेश शासन

हेमंत पाल की त्वरित टिप्पणी

कई महीनों की जद्दोजहद के बाद अब तय हो गया कि मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव और नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी को आरक्षण मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अपनी मुहर लगा दी।

देश में मध्य प्रदेश पहला राज्य है, जहां ओबीसी को 35% आरक्षण की इजाजत दी गई है।

लेकिन, इसके पीछे लम्बी अदालती लड़ाई और राजनीति हुई! कई दांव-पेंच चले गए। कांग्रेस और भाजपा दोनों वही चाहते थे जो सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया, पर श्रेय की राजनीति से कोई पीछे हटना नहीं चाहता था।

एक बार तो कांग्रेस ने शिवराज सरकार को पटखनी दे ही दी थी! पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की तारीफ की जाना चाहिए कि उन्होंने हार नहीं मानी और अंततः फैसले का श्रेय उनके खाते में गया।

राज्य सरकार ने नगरीय निकाय चुनावों में ओबीसी को 0 से 35% आरक्षण दिए जाने के लिए निकायवार रिपोर्ट बनाई है।

इसमें 50% से ज्यादा आरक्षण न दिए जाने की बात भी कही गई। अब तीन साल की देरी के बाद प्रदेश में पंचायत और नगर निकाय चुनाव कराए जाने का रास्ता खुल गया।

सुप्रीम कोर्ट ने सात दिन में आरक्षण के आधार पर राज्य निर्वाचन आयोग को अधिसूचना जारी करने के निर्देश दिए। साथ में यह निर्देश भी दिए गए कि किसी भी स्थिति में प्रदेश में कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो!

सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई को ‘ट्रिपल टेस्ट’ की अधूरी रिपोर्ट के आधार पर बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने को कहा था।

इसके बाद तो जमकर राजनीतिक उठापटक हुई। मुख्यमंत्री ने अपनी प्रस्तावित विदेश यात्रा टालकर इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर संशोधन याचिका (एप्लिकेशन फॉर मॉडिफिकेशन) दाखिल कर दी।

खास बात यह रही कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट को आधार बनाकर आरक्षण करने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने 2022 के परिसीमन के आधार पर चुनाव कराने की बात भी स्वीकार कर ली। ओबीसी आरक्षण की मांग भी मान ली। कोर्ट ने कहा कि एक सप्ताह में ओबीसी आरक्षण किया जाए।

10 मई के कोर्ट के आदेश के बाद मुख्यमंत्री ने विदेश यात्रा टालते हुए संशोधन याचिका दाखिल करने के लिए सारा जोर लगा दिया था। उन्होंने खुद दिल्ली जाकर बड़े वकीलों से रात को 2 बजे तक विचार-विमर्श किया था।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से संशोधन याचिका पर कुछ और जानकारियां मांगी, जिसके आधार पर सरकार ने मध्य प्रदेश में ओबीसी की आबादी की निकायवार जानकारी कोर्ट के सामने रखी।

बताते हैं कि विशेष विमान से ये जानकारियां दिल्ली भिजवाई गई! आशय यह कि सरकार ने सारे संसाधन इस मामले में लगा दिए थे!

वो नहीं चाहती थी कि कांग्रेस चुनाव में इस बात को मुद्दा बनाए और भाजपा के पास कोई जवाब न हो! लेकिन, ऐसा हुआ नहीं और जो हुआ वो सरकार की सफलता के रूप में सामने आ गया।

गुत्थी अभी भी उलझी

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि किसी भी स्थिति में आरक्षण 50% से ज़्यादा नहीं हो।

आरक्षण पर नजर दौड़ाई जाए, तो मध्य प्रदेश में अनुसूचित जाति (SC) वर्ग को 16% तथा अनुसूचित जनजाति (ST) को 20% आरक्षण मिल रहा है।

इससे आशय है कि फिलहाल 36% आरक्षण का लाभ तो इन दो वर्गों को मिल ही रहा है। आदेश के अनुसार 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं होगा।

इसका साफ़ मतलब है कि ओबीसी को आरक्षण का लाभ 14% से ज्यादा नहीं मिलेगा। लेकिन, जिन क्षेत्रों में इन दो वर्गों की संख्या कम है, वहां ओबीसी को ज्यादा लाभ मिल सकता है। सीधा सा आशय है कि अभी गुत्थी उलझी हुई ही है।

अब जनपद पंचायतों के अनुसार आरक्षण तय होगा। यदि किसी जनपद पंचायत में अनुसूचित जनजाति वर्ग की जनंसख्या 30% और अनुसूचित जाति वर्ग की जनसंख्या 25% है, तो ओबीसी को आरक्षण बहुत कम मिलेगा।

किसी जनपद पंचायत में अनुसूचित जनजाति वर्ग की आबादी 30% और अनुसूचित जाति वर्ग की जनसंख्या 15% है, तो ओबीसी को 5% आरक्षण मिलेगा।

लेकिन, यदि जनपद पंचायत में अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति की जनसंख्या 5-5% है। अर्थात ओबीसी की आबादी 40% है, तो भी ओबीसी वर्ग को निर्धारित 35% से ज्यादा आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।

जब सुप्रीम कोर्ट ने बिना आरक्षण के चुनाव का फैसला दिया था तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ने एक-दूसरे पर ओबीसी आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाना शुरू कर दिया था।

बिना आरक्षण के चुनाव होने की स्थिति में ओबीसी वर्ग को साधने के लिए 27% टिकट ओबीसी को देने की घोषणा की भी होड़ लग गई थी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले के बाद चुनाव की हलचल बढ़ गई।

कहां फंसा था पेंच, जब कोर्ट ने अलग फैसला दिया

सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई को बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने को इसलिए कहा था कि 2019 में तत्कालीन राज्य सरकार ने रोटेशन और परिसीमन की कार्रवाई की थी।

जानकारी बताती है कि 1994 से पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू है। 2014 का आखिरी पंचायत चुनाव भी ओबीसी आरक्षण से ही हुआ था।

व्यवस्था के मुताबिक 2014 तक प्रदेश की पंचायतों में अनुसूचित जाति की 16% सीटें, अनुसूचित जनजाति (ST) की 20% और ओबीसी के लिए 14% सीटें आरक्षित थी। मामला तब पेचीदगी में फंस गया, जब 2019 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने रोटेशन और परिसीमन की कार्रवाई की।

इसे ख़त्म करने के लिए सरकार में आते ही भाजपा रोटेशन-परिसीमन कार्रवाई को समाप्त करने के लिए एक अध्यादेश लाई थी।

कांग्रेस ने इस अध्यादेश के खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली, तो कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। सुप्रीम कोर्ट ने जबलपुर हाईकोर्ट को सुनवाई के लिए कहा। कांग्रेस नेता विवेक तन्खा ने सुप्रीम कोर्ट से दोबारा सुनवाई के लिए अनुरोध किया।

सुप्रीम कोर्ट ने फिर सुनवाई करते हुए मध्यप्रदेश में ट्रिपल टेस्ट से ओबीसी आरक्षण लागू करने का आदेश दिया। सैय्यद जाफर और जया ठाकुर ने चुनाव समय पर कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका दायर की।

इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पंचायत और निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण कराने का आदेश दिया था। लेकिन, इसके बाद शिवराज सरकार सक्रिय हुई और पांसा पलट गया।

सबने लेना चाहा इसका श्रेय

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कहा कि अंतत: सत्य की जीत हुई। चुनाव तो पहले भी ओबीसी आरक्षण के साथ हो रहे थे। कांग्रेस के लोग ही सुप्रीम कोर्ट गए थे।

इस वजह से यह फैसला हुआ था कि ओबीसी आरक्षण के बिना ही चुनाव होंगे। हमने ओबीसी को आरक्षण दिलाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

जबकि, पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि हमारी सरकार द्वारा 14% से बढ़ाकर 27% किए गए ओबीसी आरक्षण का पूरा लाभ इस वर्ग को अभी भी नहीं मिलेगा क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय में यह कहा कि कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए।

राज्यसभा सदस्य, कांग्रेस नेता और जाने-माने वकील विवेक तन्खा का कहना है कि ओबीसी को जो पुराने 50% आरक्षण में 14% मिलता था, वही बहाल किया है।

आधी-अधूरी सरकार के काम करने के तरीके से आज ओबीसी ठगा सा महसूस कर रहा है। कमलनाथ सरकार ने 27% आरक्षण का प्रावधान किया था।

ढाई साल में ये सरकार उस दिशा में कुछ नहीं कर पाई।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा का कहना था कि ट्रिपल टेस्ट के अंदर 50% की लिमिट की बात कही है। लेकिन, ओबीसी को कहीं-कहीं 27% से भी ज्यादा आरक्षण मिलेगा।

इसमें कई टेक्निकल बातें हैं, जो जल्द सामने आएंगी। सामाजिक और राजनीतिक सहभागिता के आधार पर आरक्षण तय होगा। कहीं आरक्षण 25% भी होगा।

सबसे महत्वपूर्व फैसला यही है कि ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव होंगे। नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा कि यह प्रदेश की जीत है। ओबीसी वर्ग की ऐतिहासिक जीत है।

ओबीसी को आरक्षण देने वाला मध्यप्रदेश पहला राज्य बन गया।

उधर, राज्य सरकार के प्रवक्ता और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने बयान दिया कि सत्य की जीत हुई। अदालत कांग्रेस भी गई थी। भाजपा भी अदालत गई।

हम चुनाव कराने गए थे। कांग्रेस चुनाव रुकवाने के लिए गई। मुख्यमंत्री पहले दिन से बोल रहे थे, कि हम आरक्षण के साथ ही चुनाव कराएंगे।

वे खुद दिल्ली गए और उनके साथ हम भी गए। पूरे प्रयास कर ट्रिपल टेस्ट का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखा। न्यायालय का आभार कि उन्होंने हमारे पक्ष को सुना।

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता और इस मामले के याचिकाकर्ता सय्यद जफर का कहना है कि संविधान में ओबीसी को आरक्षण का प्रावधान है।

लेकिन, सरकार की प्रशासनिक चूक की वजह से ओबीसी वर्ग आरक्षण से वंचित हो रहा था। कोर्ट का निर्णय संविधान की जीत और मध्य प्रदेश सरकार की प्रशासनिक चूक पर जोरदार तमाचा है।

ओबीसी आरक्षण के साथ हमारी जल्द चुनाव कराने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार को पंचायत एवं नगर निकाय चुनाव जल्द घोषित करने के सख्त निर्देश दिए।