‘मोहन’ को ‘जननायक’ बनाएगा ‘ओबीसी आरक्षण’…

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‘मोहन’ को ‘जननायक’ बनाएगा ‘ओबीसी आरक्षण’…

कौशल किशोर चतुर्वेदी
मध्य प्रदेश में ओबीसी को नौकरियों में 27% आरक्षण दिलाने को लेकर कांग्रेस भले ही क्रेडिट लेने की भरपूर कोशिश कर रही हो लेकिन 28 अगस्त 2025 को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में ओबीसी आरक्षण को लेकर हुई सर्वदलीय बैठक के बाद यह साफ हो गया है कि मध्य प्रदेश में ओबीसी को आरक्षण दिलाने की मुहिम के असली नायक मोहन यादव ही हैं। डॉ. मोहन यादव की कोशिशों के बाद ही मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर लंबित छह साल पुराना विवाद अब अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच रहा है। सर्वदलीय बैठक की सफलता डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व की कुशलता पर अपनी मुहर लगा रही है।

सर्वदलीय बैठक में शामिल न होना कांग्रेस और अन्य सभी दल के नेताओं को बैकफुट पर ला सकता था। इसके चलते हर दिन भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए चौक-चौराहों पर दहाड़ते कांग्रेस के सभी प्रमुख किरदार सर्वदलीय बैठक में प्रमुखता से शामिल हुए। पर यह बात पूरी तरह से साफ हो गई है कि मध्य प्रदेश में नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण दिलाने की पूरी रणनीति डॉ. मोहन यादव के इर्द-गिर्द केंद्रित है। और इसीलिए डॉ. मोहन यादव नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण दिलाने के लिए ओबीसी वर्ग में जननायक के रूप में याद किए जाएंगे।

अब मध्य प्रदेश में ओबीसी को सरकारी नौकरी की भर्तियों में 27% आरक्षण का रास्ता साफ नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री निवास पर हुई सर्वदलीय बैठक में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों एक सुर में नजर आए। माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में 22 सितंबर के बाद होने वाली लगातार सुनवाई में प्रदेश में सरकारी नौकरियों में 27% ओबीसी आरक्षण लागू होने की राह आसान हो जाएगी। वैसे तो 2019 में कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का निर्णय किया था। लेकिन 2020 तक मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में इसको लेकर कई याचिाका आईं जिसके बाद हाईकोर्ट ने भर्ती में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू करने पर स्टे दे दिया। जिसका असर एमपीपीएससी और शिक्षकों की भर्ती समेत कई नियुक्तियों में हुआ। हाईकोर्ट ने इस निर्णय पर रोक लगाते हुए कहा था कि आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता। 2025 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अब सर्वदलीय बैठक में पक्ष-विपक्ष के एक हो जाने के बाद स्थितियां करवट बदलती दिख रही हैं। ओबीसी वर्ग के हित में इस बड़ी सफलता के सूत्रधार ओबीसी नेता डॉ. मोहन यादव ही माने जाएंगे।

सर्वदलीय बैठक के बाद डॉ. मोहन यादव ने कहा कि कोर्ट में अलग-अलग प्रकरण हैं और अलग-अलग वकील केस लड़ रहे हैं। 22 सितंबर से प्रतिदिन होने वाली सुनवाई में सभी वकीलों की भी एक राय रहे, इस पर सहमति बनी है। एक सर्वदलीय संकल्प हमने पारित किया है और ओबीसी आरक्षण पर एक फोरम पर हम आये हैं। इस मामले से जुड़े वकील 10 सितंबर से पहले बैठकर सम्मिलित रूप से बात करेंगे, यह तय हुआ है। और इसके बाद मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों में ओबीसी आरक्षण का रास्ता साफ हो जाएगा।
अभी तक मध्यप्रदेश में ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण 1992 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंदिरा साहनी केस में तय की गई जाति आधारित आरक्षण की कुल सीमा 50 फीसदी के मुताबिक था। मध्यप्रदेश में 2019 में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण मिलने के बाद कुल आरक्षण, एससी को 20 फीसदी,एसटी को 16 फीसदी और ओबीसी को 27 फीसदी
यानि कुल मिलाकर 63 फीसदी हो गया था। इंदिरा साहनी केस के मुताबिक यह 50 फीसदी से 13 फीसदी ज्यादा था।
अगस्त 2023 में हाईकोर्ट ने 87:13 का फार्मूला लागू किया जिसके तहत 87% पदों पर भर्ती के साथ 13% पदों को होल्ड पर रखा गया। जिसके चलते सरकार हर भर्ती परीक्षा में 13 फीसदी पद होल्ड कर 14 फीसदी पर नियुक्ति दे रही है। 2019 से अब तक 35 से अधिक भर्ती रुकी हैं, जिसके चलते 8 लाख अभ्यर्थी प्रभावित हो रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मुताबिक
यह बात सही है कि 14% और 13% होल्ड-अनहोल्ड का जो विवाद चल रहा है, अगर माननीय न्यायालय इसका जल्द निराकरण करेगा तो हम सब चाहते हैं कि 13% पद जो बचे हैं और जो अभ्यर्थी आयुसीमा से बाहर हो गए हैं उन्हें भी नौकरी मिल जाएगी।
मध्य प्रदेश सरकार ने फरवरी 2025 में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण पर लगी रोक हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के 4 मई 2002 के अंतरिम आदेश पर रोक लगाने की मांग की जिसके तहत ओबीसी आरक्षण की सीमा 14 फीसदी तक सीमित कर दी गई थी। इसी बीच 19 अगस्त 2025 को मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दिया कि 27 फीसदी आरक्षण की मांग वाली याचिकाएं सुनने योग्य नहीं हैं। हालांकि अब मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की पहल के बाद आयोग ने बिना शर्त माफी मांगते हुए अपना एफिडेविट वापस लेने के लिए अनुमति कोर्ट से मांगी है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ इसे मोहन सरकार का यू टर्न बता रहे हैं।मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सर्वदलीय बैठक के बाद कहा कि हम सभी का प्रयास रहेगा कि न्यायालय में यह मामला शीघ्रातिशीघ्र हल हो, ताकि ओबीसी के अधिक से अधिक युवाओं को इसका लाभ मिल सके। इस विषय पर सभी दलों ने एक राय होकर सहमति जताई है। एक भी युवा आरक्षण से वंचित न रहे, यही हमारा संकल्प है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व विधायक हेमंत खण्डेलवाल ने कहा कि ओबीसी आरक्षण को लेकर प्रदेश सरकार द्वारा अच्छी पहल की गई है, जिसकी सभी दलों ने सराहना करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया है। साथ ही सभी ने स्पष्ट किया है कि 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सरकार की नीयत और प्रतिबद्धता के साथ हम सब पूरी तरह खड़े हैं। भविष्य में भी जनहितैषी निर्णयों के लिए सभी दल प्रदेश सरकार के साथ हैं।
सर्वदलीय बैठक के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि मुख्यमंत्री ने ओबीसी आरक्षण को लेकर सर्वदलीय बैठक बुलाई। इसमें ओबीसी आरक्षण से जुड़ी कानूनी अड़चनों पर चर्चा हुई। अगर ओबीसी आरक्षण को शीघ्र लागू करने का रास्ता निकलता है तो यह सकारात्मक कदम होगा। यह सर्वसम्मति से सोचा गया कि आरक्षण लागू होना चाहिए, जो स्वागतयोग्य है। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि देर आए दुरुस्त आए, गणेश जी ने इन्हें सद्बुद्धि दी। आज की बैठक में यह तय हुआ कि सभी दलों के अधिवक्ता मिलकर एक रिपोर्ट बनाएंगे और उसे कोर्ट में डे-टू-डे सुनवाई में पेश किया जाएगा।खैर मध्य प्रदेश में ओबीसी की जनसंख्या 48 फ़ीसदी से ज्यादा है और इसको आधार मानकर ही पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों में ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी से बढ़कर 27 फीसदी किया था। पर संवैधानिक सीमा के चलते 6 साल तक यह अधर में लटका रहा। अगर कांग्रेस को चुनावी फायदा मिलना होता तो वह 2020 में सरकार गिरने के बाद हुए उपचुनाव और उसके बाद 2023 विधानसभा चुनाव में ले चुकी होती। डॉ. मोहन यादव ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर सर्वसम्मति से जो कदम आगे बढ़ाए हैं, इससे उनका और भाजपा सरकार का कद बढ़ा है। ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण मिलने पर उनके यही कदम मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें यानि डॉ. मोहन यादव को जननायक के रूप में स्थापित करने वाले हैं…।