विधायकों के प्रोटोकॉल उल्लंघन की शिकायतों के निपटारे में अफसरों की रुचि नहीं, सत्तर फीसदी पर कार्रवाई नहीं

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भोपाल: प्रदेश के विधायकों के प्रोटोकॉल उल्लंघन के मामलों में सरकारी विभागों के अफसर रुचि नहीं ले रहे है। प्रदेश के विधायको की प्रोटोकॉल उल्लंघन की कुल तीस शिकायतें थे इनमें से 21 पर सरकारी विभागों के अफसरों ने कोई कार्यवाही नहीं की है। इस पर विधायकों की सदस्य सुविधा समिति ने नाराजगी जताई है।

समिति ने सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार से कहा है कि विधायकों के प्रोटोकाल उल्लंघन की शिकायतों पर सात से दस दिन के भीतर कार्यवाही की जाना चाहिए।

विधानसभा सदस्य सुविधा समिति की बैठक में विधायकों के प्रोटोकाल उल्लंधन के विषय पर चर्चा की गई। इस बैठक में सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार को भी बुलाया गया था। सदस्य सुविधा समिति के अध्यक्ष शैलेन्द्र जैन ने विधायकों के प्रोटोकाल उल्लंघन के मामले सरकारी विभागों के अधिकारियों द्वारा लंबे समय तक कार्यवाही नही किये जाने की प्रक्रिया पर सदस्यों की ओर से नाराजगी का इजहार किया। उन्होंने कहा कि इस तरह के मामले जो विधायकों के प्रोटोकाल से जुड़े है उनका निराकरण सात दिन में किया जाना चाहिए। उन्होंने अपर मुख्य सचिव से आग्रह किया कि जिन विभागों के अफसर विधायकों के प्रोटोकाल उल्लंघन के प्रकरणों पर लंबे समय से कोई कार्यवाही नहीं कर रहे है उन्हें निर्देशित करे कि समयसीमा के भीतर ऐसे मामलों पर कार्यवाही करें।

पूर्व विधानसभा अध्यक्षों को छत्तीसगढ़ की तर्ज पर सुविधाएं और प्रोटोकाल दिए जाने पर भी चर्चा की गई। प्रोटोकाल में पूर्व अध्यक्षों का नाम भी शामिल किए जाने पर चर्चा की गई। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला हुआ है। मध्यप्रदेश में इस तरह की सुविधा केवल पूर्व मुख्यमंत्री को है। उन्हें सरकारी बंगला, स्टाफ सहित कई तरह की सुविधाएं नि:शुल्क मिलती है यह सुविधाए मध्यप्रदेश में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष को नहीं है। इसी तरह विधानसभा अध्यक्ष को दिल्ली स्थित एमपी भवन में मुख्यमंत्री और राज्यपाल की तर्ज पर विशेष कमरा आरक्षित रखे जाने पर भी चर्चा हुई। पूर्व विधायकों को विश्राम गृह में एक माह में छह दिन मुफ्त रहने की छूट दिए जाने के प्रस्ताव पर भी चर्चा हुई। इन सभी प्रस्तावों को राज्य शासन के पास भेजा जाएगा। जिन निर्णयों पर वित्तीय भार आना है उनके बारे में वित्त विभाग निर्णय लेगा। वर्तमान में कोरोना के कारण राजस्व वसूली कम है और केन्द्र से भी कम राशि मिल रही है। इसके चलते राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति गड़बड़ाई हुई है।