

151 साल पहले लिखी गई थी आरती ओम जय जगदीश हरे: जानिये अमर रचयिता पंडित श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी को !
– डॉ बिट्टो जोशी
‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती हर हिंदू घर, मंदिर और पूजा में गूंजती है। इसके बोल जितने सरल हैं, उतनी ही इसकी भावना गहरी है- यह आरती न सिर्फ भगवान विष्णु की स्तुति है, बल्कि हर भक्त के मन की आवाज़ भी है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि इस विश्वविख्यात आरती के रचयिता पंडित श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी थे। इनका जन्म 30 सितंबर 1837 को पंजाब के जालंधर जिले के फिल्लौर गांव में हुआ था। श्रद्धाराम जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे- वे सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता सेनानी, संगीतज्ञ और हिंदी-पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार रहे। 1870 में लिखी गई यह आरती आज करोड़ों लोगों की आस्था का हिस्सा बन चुकी है। उनके पिता जयदयालु शर्मा प्रसिद्ध ज्योतिषी थे और उन्होंने बचपन में ही बेटे की विलक्षण प्रतिभा पहचान ली थी।
उन्होंंने अपनी किताबों के जरिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावती माहौल तैयार किया था. वहीं महाभारत के किस्से सुनाते हुए वे लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा होने की हिम्मत जगाया करते थे. इसकी वजह से अंग्रेजी हुकूमत उनसे चिढ़ गई और सन् 1865 में उन्हें उनके ही गांव से निष्काषित कर दिया. साथ ही आसपास के गांवों में भी प्रवेश पर रोक लगा दी.कहा जाता है कि गांव से निष्काषित होने के बाद सन् 1870 में उन्होंने ॐ जय जगदीश हरे आरती की रचना की थी. इस आरती की रचना के पीछे भी एक रोचक किस्सा बताया जाता है. दरअसल पंडित जी उस समय पंजाब के विभिन्न स्थानों पर घूम-घूम कर लोगों को रामायण, महाभारत और भागवत कथा सुनाते थे. एक बार पंडित जी ने महसूस किया कि उनके व्याख्यानों को सुनने के लिए लोग सही समय पर नहीं आते. ऐसे में यदि कोई अच्छी आरती या प्रार्थना गाई जाए तो लोगों का ध्यान आकर्षित होगा और कथा में रुचि बढ़ जाएगी. इसके बाद ही श्रद्धाराम फिल्लौरी ने नारायण को समर्पित ॐ जय जगदीश हरे आरती लिखी.भागवत कथा के दौरान श्रद्धाराम फिल्लौरी ॐ जय जगदीश हरे आरती को गाया करते थे. इससे उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी और लोगों ने उन्हें देश के तमाम हिस्सों में सत्संग में बुलाना शुरू कर दिया. इस आरती के शब्दों ने लोगों के भक्तिभाव को कहीं ज्यादा बढ़ा दिया. एक-दूसरे को सुनते सुनाते इस आरती का प्रसार होता चला गया है और धीरे धीरे ये आरती घर- घर में प्रचलित हो गई.
कऱीब 151 वर्ष लिखी गई यह आरती मंत्र और शास्त्र की तरह लोकप्रिय हो गई। ओम जय जगदीश हरे आरती जैसे भावपूर्ण गीत की रचना करने वाले पं. श्रद्धाराम शर्मा का निधन आज ही के दिन 24 जून 1881 को पाकिस्तान के लाहौर में हो गया था।
ओम जय जगदीश हरे आरती:
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वर जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥
आज उनकी पुण्यतिथि पर, हम सब पंडित श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिनकी रचना सदियों तक भक्तों के दिलों में गूंजती रहेगी।
– डॉ बिट्टो जोशी
डॉ. बिट्टो जोशी एक उच्च शिक्षित लेखिका हैं, जिनकी हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर मजबूत पकड़ है। वे कविता, कहानी, शोध और धर्म-संस्कृति पर आलेख लिखने के साथ वेबीनार-सेमिनार में शोध पत्र भी प्रस्तुत करती हैं। मध्यप्रदेश के छोटे से कस्बे जावद में जन्मी डॉ बिट्टो जोशी वर्तमान में धार में रहती हैं।
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