ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः…

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः

कौशल किशोर चतुर्वेदी

अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक जनवरी का पहला दिन साल की शुरुआत है। और हर शुरूआत बेहतरी से भरी हो, सबके मन में यही भाव रहता है। भारत में वसुधैव कुटुंबकम के भाव के साथ हमेशा सभी के सुखी और समृद्ध रहने की कामना की गई है। आओ उस श्लोक के जरिए हम वसुधैव कुटुंबकम के भाव को जीते हैं जिसमें सबके सुखी होने, सबके निरोगी रहने, सभी सुंदर पलों के साक्षी बने और दुख किसी के हिस्से में न आये, ऐसी काम न की गई है। यह श्लोक है-

“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्”

सब सुखी हों, सब निरोग रहें। सब अच्छी घटनाओं को देखने वाले अर्थात् साक्षी रहें और कभी किसी को दुःख का भागी न बनना पड़े।

यह श्लोक वृहदारण्यक उपनिषद् में से लिया गया है।

और अंग्रेजी साल के पहले दिन हम एक जनवरी को जन्मे एक साहित्यकार और एक शायर की भी बात करते हैं। साहित्यकार ज्ञानेन्द्रपति को अनूठा कवि माना जाता है तो शायर राहत इंदौरी की शायरी ने बहुतों का दिल जीता है।

ज्ञानेन्द्रपति ( जन्म-1 जनवरी,1950, झारखण्ड) हिंदी के उत्साही, विलक्षण और अनूठे कवि हैं। उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर काव्य लेखन को पूर्णकालिक तौर पर चुना। ज्ञानेन्द्रपति की भाषा में ऐसा कुछ है, जो परम्परा के साथ पुल बनाता है। उनके वर्णन कि तफ़सील पर गौर करने पर लगता है कि मानों उन्हें पहले ही नोट कर संभाल लिया होगा। ज्ञानेन्द्रपति का जन्म 1 जनवरी, सन 1950 को ग्राम पथरगामा, झारखंड में हुआ था।

ज्ञानेन्द्रपति का ‘गंगा तट’ काव्यों का संग्रह नहीं न्यास है। वह औपन्यासिक है। मुक्तिबोध की ‘अंधेरे में’ के बारे में कहा जाता है कि वह नेहरू युग का क्रिटीक है। इस युग का क्रिटीक ‘गंगा तट’ है। ज्ञानेन्द्रपति की कविता में ऑब्जर्वेशन की कोशिश है और ज़िद भी। इस वजह से उनकी कविता प्रतिबद्धता और वैचारिकता के सरलीकरण का चित्र हैं। ऑब्ज़र्वेशन में व्यवधान भी है और ताकत भी।ज्ञानेन्द्रपति निराला की परम्परा के कवि हैं। उनकी कविता रचनात्मक प्रतिरोध की कविता है। वे जो खत्म हो रहा है, उसे दिखाने के अलावा जो अच्छा होना चाहिए, उसके संकेत देती हैं।ज्ञानेन्द्रपति हिन्दी के विलक्षण कवि-व्यक्तित्व हैं। उनकी जड़ें लोक की मन-माटी में गहरे धँसी हैं। उनकी काव्य भाषा उनके समकालीनों में सबसे अलग है। उनके लिए न तो तत्सम अछूत है, न देशज। शब्दों के निर्माण का साहस देखने योग्य है। ज्ञानेन्द्रपति की कविता एक ओर तो छोटी-से-छोटी सच्चाई को, हल्की-से-हल्की अनुभूति को सहेजने का जतन करती है, प्राणी-मात्र के हर्ष-विषाद को धारण करती है; दूसरी ओर सत्ता-चालित इतिहास के झूठे सच को भी उघाड़ती है। धार्मिक सत्ता हो या राजनीतिक सत्ता, वह सबके मुक़ाबिल है। ज्ञानेन्द्रपति की कुछ प्रमुख कृतियाँ, आँख हाथ बनते हुए (1970), शब्द लिखने के लिए ही यह कागज़ बना है (1981), गंगातट (2000), संशयात्मा (2004), पढ़ते-गढ़ते (कथेतर गद्य, 2005), भिनसार (2006), कवि ने कहा (कविता संचयन) और ‘एकचक्रानगरी’ (काव्य नाटक) हैं। उन्हें वर्ष 2006 में ‘संशयात्‍मा’ शीर्षक कविता संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा ‘पहल सम्‍मान’, ‘बनारसीप्रसाद भोजपुरी सम्‍मान’ व ‘शमशेर सम्‍मान’ सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से विभूषित किये जा चुके हैं।

 

तो शायर डॉ. राहत इंदौरी (जन्म: 1 जनवरी, 1950; मृत्यु- 11 अगस्त, 2020) प्रसिद्ध उर्दू शायर और हिन्दी फिल्मों के गीतकार थे। कम ही लोगों को इस बात का इल्म है कि राहत इंदौरी बॉलीवुड के लिए गाने भी लिखा करते थे। वह उर्दू भाषा के पूर्व प्रोफेसर और चित्रकार भी रहे। लंबे अरसे तक श्रोताओं के दिल पर राज करने वाले राहत इंदौरी की शायरी में हिंदुस्तानी तहजीब का नारा बुलंद था। राहत इंदौरी का जन्म मध्य प्रदेश राज्य के प्रसिद्ध नगर इंदौर में 1 जनवरी, 1950 में कपड़ा मिल के कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी और मकबूल उन निशा बेगम के यहाँ हुआ। राहत की प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एम.ए. किया। तत्पश्चात् 1985 में मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। राहत इंदौरी, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में उर्दू साहित्य के प्राध्यापक भी रह चुके थे।

माँ पर राहत इंदौरी के कुछ मशहूर शेर के साथ हम अंग्रेजी कैलेंडर के नए साल पर अपनी-अपनी मां को याद करते हैं।

“माँ के क़दमों के निशां हैं कि दिए रौशन हैं,

ग़ौर से देख यहीं पर कहीं जन्नत होगी।”

(यह शेर माँ के कदमों की निशानी को रोशन दिए और जन्नत से जोड़ता है, जहाँ उनके कदमों के निशान हैं, वहीं स्वर्ग है।)

“सख़्त राहों में भी आसान सफ़र लगता है,

ये मेरी मां की दुआओं का असर लगता है।”

(कठिन रास्ते भी माँ की दुआओं से आसान हो जाते हैं, जो उनके आशीर्वाद का प्रभाव है।)

“एक वीराना जहां उम्र गुज़ारी मैंने,

तेरी तस्वीर लगा दी है तो घर लगता है।”

(माँ की तस्वीर घर को वीराने से घर जैसा बना देती है।)

“कोई कुछ कर नहीं सकता, मुझे कुछ हो नहीं सकता,

मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ – सजदे में रहती है।”

(माँ की प्रार्थनाओं में कितनी शक्ति होती है कि वो बेटे के सलामत लौटने तक सजदे में रहती है।)

इसके साथ ही अंग्रेजी कैलेंडर के नए साल की सभी को शुभकामनाएं और सबके सुखी निरोगी रहने की कामना।

 

 

लेखक के बारे में –

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।