One Nation One Election : ‘एक देश-एक चुनाव’ पर चर्चा में इसके पक्ष में कई लोगों ने हाथ खड़े किए!

सभी वक्ताओं ने कहा कि इससे लोकतंत्र को नई मजबूती मिलेगी!

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One Nation One Election : ‘एक देश-एक चुनाव’ पर चर्चा में इसके पक्ष में कई लोगों ने हाथ खड़े किए!

Indore : देश में ‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर आईसीएआई भवन में सीए एसोसिएशन और अधिवक्ताओं के साथ विशेष चर्चा का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री और पटना से सांसद रविशंकर प्रसाद, प्रदेश के कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, इंदौर के महापौर एवं मध्य प्रदेश में ‘एक देश एक चुनाव के सह संयोजक पुष्यमित्र भार्गव, भाजपा संभाग प्रभारी राघवेंद्र गौतम, नगर अध्यक्ष सुमित मिश्रा, विधायक उषा ठाकुर सहित बड़ी संख्या में सीए प्रैक्टिशनर्स, अधिवक्ता और छात्र उपस्थित रहे।

 

लोकतंत्र में निवेश जरूरी

पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि लोकतंत्र तभी सशक्त होगा जब नागरिक उसमें सक्रिय रुचि लेंगे। उन्होंने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से बताया कि जब देश प्रगति कर रहा है, तो चुनाव प्रणाली में भी बदलाव की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत का लोकतंत्र दुनिया में सबसे मजबूत है और इसे और प्रभावी बनाने के लिए ‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करना एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

भ्रष्टाचार कम करने का एक माध्यम है एक देश, एक चुनाव

प्रदेश के कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, तो इससे सरकार के साथ-साथ प्रतिनिधियों का भी खर्च कम होगा। उन्होंने कहा कि बार-बार चुनाव होने से धन और संसाधनों की बड़ी मात्रा में बर्बादी होती है, जिसे रोका जा सकता है। साथ ही, इससे प्रशासनिक प्रक्रिया को अधिक सुचारू और पारदर्शी बनाया जा सकता है।

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एक बार चुनाव होने से खर्च होगा कम

महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने कहा कि अलग-अलग चुनाव कराने पर देश का खर्च 5 से 6 लाख करोड़ रुपये आता है। जबकि, एक साथ चुनाव होने पर यह खर्च घटकर 1 से 1.5 लाख करोड़ रुपये तक रह जाएगा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2019 और 2024 के चुनावी घोषणा पत्र का जिक्र करते हुए कहा कि “एक देश, एक चुनाव” की दिशा में देश में जनमत तैयार करना आवश्यक है। उन्होंने युवा प्रोफेशनल्स से इस मुहिम को समर्थन देने की अपील की।

एक देश, एक चुनाव’ क्यों जरूरी

– चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुगमता आएगी।

– विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा, जो बार-बार आचार संहिता लागू होने से प्रभावित होते हैं।

– चुनाव प्रचार में होने वाले अनावश्यक खर्च को कम किया जा सकेगा।

– प्रशासनिक और सुरक्षा बलों पर अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ेगा।