One State One Election: राजस्थान में 25 नवम्बर के बाद शहरी सरकारों के निकायों का कौन होगा मालिक ?

राजस्थान में वन स्टेट वन इलेक्शन का फ़ार्मूला लागू करने वाला पहला प्रदेश बन पायेगा?

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One State One Election: राजस्थान में 25 नवम्बर के बाद शहरी सरकारों के निकायों का कौन होगा मालिक ?

गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट 

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के वन नेशन वन इलेक्शन का फ़ार्मूला लागू होने में कितना वक्त लगेगा यह अभी भविष्य के गर्भ में छुपी बात हैं लेकिन प्रदेश में हाल ही संपन्न हुए सात विधानसभा उप चुनावों के बाद राजस्थान की भजन लाल शर्मा की सरकार प्रदेश में स्थानीय सरकारों के चुनाव में वन स्टेट वन इलेक्शन का फ़ार्मूला लागू करने पर विचार कर रही है। यदि राजस्थान में यह फ़ार्मूला लागू हो गया तो राजस्थान देश में ऐसा करने वाला पहला प्रदेश बन जाएगा। राजस्थान की 49 शहरी निकायों का कार्यकाल 25 नवंबर को पूरा होने जा रहा है। इसी प्रकार नये साल 2025 में प्रदेश की 6,759 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा हैं। प्रदेश के स्वायत्त शासन विभाग ने विधि विभाग को वन स्टेट वन इलेक्शन को लेकर एक प्रस्ताव भेजा है। इस प्रस्ताव के तहत विधि विभाग से मार्गदर्शन मांगा गया है कि राज्य में कैस वन स्टेट वन इलेक्शन लागू किया जाए ? जानकारों के अनुसार विधि विभाग की राय आने से पहले फिलहाल इन स्थानीय निकायों का कार्यकाल पूरा होने के बाद वहाँ प्रशासक लगाने की अधिक संभावना है। राज्य के नए जिलों पर भी सरकार को शीघ्र ही फैसला लेना हैं।

 

राजस्थान की जिन 49 शहरी निकायों का कार्यकाल 25 नवंबर को पूरा होने जा रहा

उनमें ब्यावर, नसीराबाद, टोंक, डीडवाना, पुष्कर, चूरू, मकराना, बीकानेर, राजगढ़, श्रीगंगानगर, सूरतगढ़, हनुमानगढ़, अलवर, भिवाडी, थानागाजी, महुआ, सीकर, नीमकाथाना, खाटूश्यामजी, झुंझुनूं, बिसाऊ, पिलानी, फलौदी, जैसलमेर, बाडमेर नगरपरिषद, बलोतरा, सिरोही, माउंटआबू, पिण्डवाडा, शिवगंज, पाली, सुमेरपुर, जालौर, भीनमाल, कैथून, सांगोद, छबड़ा, मांगरोल, भरतपुर, रपवास, उदयपुर, कानोड, बांसवाडा, प्रतापपुर गढ़ी, चितौडगढ़, निम्बाहेडा, रावतभाटा, राजसमंद, आमेट आदि स्थानीय निकाय शामिल हैं। जयपुर, कोटा और जोधपुर सहित कई बड़े निकायों का कार्यकाल भी समाप्त होने जा रहा है।

 

इसी प्रकार प्रदेश की 6,759 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल भी नये साल जनवरी 2025 में समाप्त हो रहा हैं। इन ग्राम पंचायतों का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है या नहीं, इसे लेकर सरकार में मंथन चल रहा है। हालांकि अभी तक सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है। बताया जा रहा है कि राज्य के नए जिलों पर फैसले के बाद ही ग्राम पंचायतों, पंचायतों और जिला परिषदों का पुनर्गठन होगा। ऐसे में तब तक चुनाव टाले जा सकते हैं। प्रदेश के स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा पहले ही कह चुके है कि राज्य सरकार एक राज्य-एक चुनाव की तरफ बढ़ रही है। इस माह जिन निकायों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, उसके बारे में विधानसभा की सात सीटों की चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही कोई निर्णय होगा।

इसलिए राजस्थान की इन 49 शहरी सरकारों का कार्यकाल इस माह पूरा हो जाएगा। इसलिए इन निकायों की कमान प्रशासक के हाथ में देने की संभावना बढ़ गई है। सरकार की मंशा एक राज्य-एक चुनाव की है लेकिन बोर्ड कार्यकाल पूरा होने से पहले यह संभव नहीं है। ऐसे में नये चुनाव से पूर्व बोर्ड स्वतः ही भंग हो जाएँगे। हालांकि, राज्य सरकार इनका कार्यकाल बढ़ाने की संभावना तलाशने का प्रयास भी कर रही है, लेकिन भारतीय संविधान और राजस्थान नगरपालिका एक्ट में इनका कार्यकाल बढ़ाने का प्रावधान नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 में प्रावधान है कि नगरपालिकाओं का कार्यकाल पांच वर्ष के लिए है। इसीलिए भजन लाल सरकार सभी निकायों के चुनाव एक साथ कराने की कवायद कर रही है। राज्य सरकार वन स्टेट-वन इलेक्शन के तहत नगरीय निकाय और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराने की संभावना भी तलाश रही है, लेकिन अभी तक किसी नतीजे पर पहुंचा नहीं जा सका है।

 

वैसे वन नेशन वन इलेक्शन के बारे में भी अभी किसी को यह नहीं मालूम कि मोदी सरकार वन नेशन वन इलेक्शन का फ़ार्मूला लागू करने के लिए कुछ दिनों बाद ही शुरू होने वाले संसद के शरद कालीन सत्र में कोई विधेयक ला रही है अथवा नहीं? लेकिन यह तय है कि आगे पीछे मोदी सरकार अपने चुनावी घोषणा पत्र की क्रियान्वित में वन नेशन वन इलेक्शन का फ़ार्मूला लागू अवश्य करेगी। इस फ़ार्मूला के पीछें जो भावना है उससे कतिपय विरोधी दलों द्वारा इस मुद्दे पर राजनीति करने की बात को छोड़ कमोबेश सभी लोग मौटे तौर पर सहमत हो सकते है क्योंकि इसमें सबसे बड़ी बात चुनावों पर होने वाले मौटे खर्चे से निजात मिलने की हैं। देश में यदि लोकसभा विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ होंगे तो अलग अलग समय पर होने वाले चुनावों पर होने वाले खर्चो से देश के खरबों रु की बचत हो सकती हैं। इसके अलावा वर्ष पर्यन्त देश के चुनावी मोड़ में रहने से भी निजात मिलेगी। अब तक यह देखा जा रहा है कि अमुक माह में इस राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहें है और उसके अगले महिनों में दूसरे प्रदेश में चुनाव हो रहें है फिर उन प्रदेशों में स्थानीय निकाय और पंचायती राज के चुनाव भी हों रहें है।इस कारण आदर्श चुनाव आचार संहिता भी लग रही हैं तथा इन आदर्श आचार संहिता के चलते उन प्रदेशों की सरकारें विकास कार्यों को नहीं करवा पाती है । साथ ही सत्ताधारी दल अपने चुनावी घोषणा पत्र भी समय पर क्रियान्वित नहीं करा पाते है। पूरा सरकारी अमला भी चुनावी कार्यों में जुटा रहता है जिसके कारण आम लोगों के कार्य सफर होते है तथा जनता में सरकारों के प्रति असन्तोष बढ़ता है।

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीस गढ़ के उदाहरण इस बात को समझाने के लिए पर्याप्त है कि इन प्रदेशों में हर बार दिसम्बर में विधान सभा के चुनाव होते गई और नई सरकार अपना कामकाज सम्भाल भी नहीं पाती कि लोकसभा चुनाव सिर पर आ जाते है तथा आचार संहिता लागू हो जाने से नई सरकारों को काम दिखाने का अवसर ही नहीं मिलता। सरकारी कारिन्दे भी चुनाव की खुमारी से बाहर निकलने से पहले ही फिर से आम चुनाव की तैयारियों में जुट जाते है। ऐसे में विधान सभा चुनाव से पूर्व और उपरान्त आचार संहिता लागू होने से इन प्रदेशों में विकास का रथ थम जाता हैं और जनता का असंतोष भी बढ़ जाता है जिसकी वजह से कई बार इन प्रदेशों में विधान सभा और लोकसभा के चुनाव परिणामों का ट्रेंड भी बदल जाता हैं।

 

इस पृष्ठभूमि में यह देखना दिलचस्प होंगा कि राजस्थान में 25 नवम्बर के बाद शहरी सरकारों के निकायों का मालिक कौन होगा तथा प्रदेश वन स्टेट वन इलेक्शन का फ़ार्मूला लागू करने वाला देश का पहला प्रदेश बन पायेगा अथवा नहीं?