सनातन धर्म को जन-जन के मन में बसाने का सूत्र बने आदि शंकराचार्य का प्राकट्य दिवस हम सब के लिए गौरव का दिवस है। मध्यप्रदेश में आयोजित कार्यक्रम में इस गौरव की अनुभूति कराने का माध्यम बने आदि शंकराचार्य की प्राकट्य भूमि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान। जिन्हें सुनकर उन्हें नमन करने का भाव मन में पैदा हो गया। भगवान राम ने भारत को उत्तर से दक्षिण तक एक किया और भगवान कृष्ण ने भारत को पूर्व से पश्चिम तक एक किया।
लेकिन पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण सभी को यदि किसी ने एकता के बंधन में पिरोया, तो वह नाम है आदि शंकराचार्य का। हर मानव में देवत्व और हर देव के मानवीय होने का अहसास किसी ने कराया तो वह नाम है आदि शंकराचार्य का। भेदभाव शब्द को निराधार साबित करने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह नाम है आदि शंकराचार्य का। उन्होंने आदि शंकराचार्य के जीवन की रोचक घटना सुनाकर यह साबित भी किया। एक बार बनारस में गंगा स्नान कर संकरी गली से गुजरकर देवस्थान जा रहे शंकर के सामने एक चांडाल आ गया।
शंकर ने उसे राह से हटने का आदेश दिया। तो चांडाल यानि मरघट में शवों के अंतिम संस्कार का सेतु बनने वाले उस व्यक्ति ने शंकराचार्य से कहा कि शरीर को राह से अलग करूं या आत्मा को। फिर क्या था शंकराचार्य को देर नहीं लगी और वह चांडाल के सामने शाष्टांग दंडवत हो गए। और यह था वसुधैव कुटुंबकम् का वह संदेश जिसे धरा को स्वीकारते-स्वीकारते हजारों वर्ष बीत गए, फिर भी स्वीकार्य नहीं हो पाया। यह मानवीय एकता का वह संदेश था, जो जाति-धर्म और छोटे-बड़े, ऊंच-नीच जैसे सभी भावों को विसर्जित करने का भाव बनकर कह रहा था कि अब तो पहचानो कि आत्मा एक है, जो भेद नहीं जानती।
जहां सारे भेद खत्म हो जाते हैं। जिस जीव में है, वही गतिमान हो जाता है। जहां से मुंह मोड़ लिया, फिर वही शरीर मिट्टी हो जाता है। तो ज्ञानी चांडाल के सामने शाष्टांग होने का साहस पृथ्वी पर कोई कर सकता है, तो वह महाज्ञानी आदि शंकराचार्य ही कर सकते हैं। भारत के चारों कोनों में चार मठ स्थापित कर एकता के सूत्र में बांधने का काम कोई कर सकता है तो वह आदि शंकराचार्य ही।
निश्चित तौर से प्रदेश में स्थापित होने वाली “स्टेच्यू ऑफ वननेस” से मध्यप्रदेश की पहचान होगी। यह स्टैच्यू प्रदेश का मान पूरे विश्व में बढ़ाएगी। स्टैच्यू ऑफ वननेस के तहत आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में ओंकारेश्वर में स्थापित होगी। 2023 में यह स्टैच्यू आकार ले लेगी। महत्वपूर्ण यही है कि इस “वननेस” का महत्व सभी समझ पाएं और उससे ज्यादा जरूरी है कि उसे अंगीकार कर सकें।
हां यह बात सौ टका सच है कि यह वननेस का संदेश आरिफ मोहम्मद खान को सुनकर चेतना में समा सकता है। जीवन में व्यावहारिक वेदांत कैसे उतारा जाए, इसकी प्रतीक स्टैच्यू ऑफ वननेस बनेगी। बहुधातु की इस प्रतिमा के सहारे सौहार्दता का सन्देश दिया जाएगा। ये एक ऐसा महत्वपूर्ण स्थल होगा, जहाँ शंकराचार्य के जीवन के साथ-साथ मठ परंपरा और पर्यावरण संरक्षण की भी जानकारी मिलेगी।
केन्द्र का मुख्य द्वार जगन्नाथ पुरी मंदिर के द्वार को प्रदर्शित करने वाला होगा। ओंकारेश्वर को इसके बाद एक ‘टेम्पल टाउन’ के रूप में विकसित किया जाएगा। निर्माण के लिए कलात्मक शैली का इस्तेमाल किया जाएगा। यह स्टैच्यू देश के ह्रदय प्रदेश की आत्मा बनकर इस नश्वर संसार में सिर्फ 31 साल भौतिक शरीर धारण कर विदा हुए आदि शंकराचार्य के सर्वदा विद्यमान रहने का संदेश देगी। वसुधैव कुटुंबकम् का संदेश देगी। विविध होते हुए भी सबमें एक चेतना का संदेश देगी।