शाह की महिमा शाह ही जाने…

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शाह की महिमा शाह ही जाने…

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में एक बार फिर राजनीति का शाही दौर शुरू हो चुका है। शाह की सक्रिय भागीदारी में भाजपा ने मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव की शुरुआत की थी। हारी हुई विधानसभा सीटों पर पहली 39 प्रत्याशियों की सूची जारी हुई थी, जिसे आशातीत प्रयोग माना गया और इससे भी धमाकेदार 39 प्रत्याशियों की दूसरी सूची में ही तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसदों को चुनाव मैदान में उतारने को शाही रणनीति माना गया था। पर इसके बाद तीसरी-चौथी सूची का आना और फिर अचानक शाह का मध्यप्रदेश से ओझल सा होना…। इससे संदेश ऐसा ही गया था कि शायद शाह का मध्यप्रदेश से मोह भंग हो गया है। इसके बाद आई भाजपा की पांचवीं सूची कुछ‌ यही संदेश दे रही थी कि शाही असर नदारद है। अब 28 अक्टूबर से फिर शाह के तीन दिवसीय दौरे ने एक बार फिर शाही दौर के दूसरे चरण की शुरूआत कर दी है। इससे पहले तक भाजपा की विदिशा और गुना सीट पर प्रत्याशियों की घोषणा न होना भी संशय‌ पैदा कर रही थी। पर नामांकन के आखिरी दिन से पहले इन दोनों सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा के साथ सभी कयासों पर विराम लग गया है। अब शाही असर का इंतजार भाजपा को है।
शाह ने सीधे शब्दों में मध्यप्रदेश के मतदाताओं को समझाइश दी है कि विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसमें जनता अपना मत प्रकट करेगी। इस चुनाव में आपके सामने दो ही विकल्प हैं। एक तरफ कांग्रेस पार्टी है, जिसने प्रदेश का बंटाढार कर दिया था। उसे बीमारू राज्य बना दिया था। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी है, जिसने अपने 18 साल के शासन में प्रदेश के कोने-कोने में विकास किया है। आप विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोट मत दीजिए। आपका एक वोट मध्यप्रदेश और देश का भविष्य तय करने वाला है।
अभी तक कांग्रेस और कमलनाथ कह रहे थो कि यह चुनाव मध्यप्रदेश का भविष्य तय करने वाला है और अब शाह ने एक कदम आगे बढ़कर इसमें देश को भी जोड़ दिया। तो शाह ने कहा कि बंटाढार की सरकार के समय जैसे ही गाड़ी मध्यप्रदेश की सीमा में आती थी, तो इतने गड्ढे आते थे कि नींद खुल जाती थी। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की सरकार ने प्रदेश में सड़कों का जाल बिछाया। शाह ने कहा कि बंटाढार की सरकार के समय 2002 में मध्यप्रदेश का बजट 23000 करोड़ रुपये होता था। भाजपा की सरकार ने उसे बढ़ाकर 3,15000 करोड़ तक पहुंचाया। उस समय शिक्षा का बजट 2456 करोड़ हुआ करता था, जिसे भाजपा की सरकार ने 38000 करोड़ तक पहुंचाया। तब प्रति व्यक्ति सालाना आय 11 हजार रुपये होती थी, जिसे भाजपा की सरकार ने 1.40 लाख तक पहुंचाया। शाह ने कहा कि बंटाढार की सरकार मध्यप्रदेश में 60 हजार किलोमीटर टूटी-फूटी सड़कें छोड़कर गई थी, जिन्हें भाजपा की सरकार ने 5,10,000 किलोमीटर तक पहुंचाया है। बंटाढार की सरकार समर्थन मूल्य पर 4.40 लाख टन गेहूं खरीदती थी, लेकिन अब शिवराज जी की सरकार 71 लाख मीट्रिक टन गेहूं समर्थन मूल्य पर खरीदती है। उस समय मेडिकल की सीटें 620 होती थीं, जिन्हें भाजपा की सरकार ने 4000 तक पहुंचाया है। प्रदेश में उस समय 159 आईटीआई थे, अब भाजपा की सरकार में 1014 आईटीआई हैं। शाह ने कहा कि किसी भी राज्य में आने वाले पर्यटक उसके विकास का पैमाना होते हैं। बंटाढार की सरकार के समय हर साल प्रदेश में 64 लाख पर्यटक आते थे, जबकि अब हर साल 9 करोड़ पर्यटक मध्यप्रदेश आते हैं।
यानि कि इक्कीसवीं सदी में विधानसभा का यह पांचवां चुनाव बंटाढार की सरकार का दृश्य दिखाकर लड़ा जा रहा है। उनकी तुलना में अब भाजपा सरकार की उपलब्धियों को मध्यप्रदेश के उद्धार के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है। इसके साथ ही मोदी सरकार की उपलब्धियां, रामभक्ति और राष्ट्रभक्ति जैसी सभी बातें मतदाताओं के मन को भाजपामय करने की शाही कोशिश है। आदिवासी मतदाताओं पर खास फोकस भाजपा का लक्ष्य है, तो शाह पूरे मध्यप्रदेश में मतदाताओं के साथ ही भाजपा कार्यकर्ताओं पर शाही असर डालने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं। अक्टूबर का महीना जाने को है और उसके बाद नवंबर का पहला पखवाड़ा मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में राजनैतिक दलों का अखाड़ा नजर आएगा। और फिर आएगा मतदाताओं के शाही फैसले का समय। अब शाह की महिमा शाह ही जानें और मतदाताओं की महिमा मतदाता ही जानेंगे…।