घर में खोलो “बार” और हाथ में थामो मधु का प्याला, बच्चन साहब को याद करो और गुनगुनाते जाओ मधुशाला…

763

कौशल किशोर चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट 

इसे संयोग कहें या फिर हरिवंशराय बच्चन साहब की स्मृति में शराब कारोबारियों और पियक्कड़ों को दिया गया खास तोहफा…जो मन स्वीकार करे वह मान लो। पर 18 जनवरी को जारी हुई मध्यप्रदेश की नई शराब नीति ने पीने वालों के दिल को खुशियों से मालामाल कर दिया है।

18 जनवरी 2003 को “मधुशाला” लिखकर कालजयी बन चुके हरिवंशराय बच्चन साहब ने इस फानी दुनिया को अलविदा कहा था। और इस साल 18 जनवरी को जारी हुई मध्यप्रदेश की नई शराब नीति संयोग से बच्चन साहब को श्रद्धासुमन अर्पित करती नजर आ रही है।

घर में पहले की तुलना में आम आदमी ज्यादा शराब की बोतलें रख सकेगा, तो हो सकता है कि लड़खड़ाते कदमों से घर पहुंचने की बहुत बड़ी दिक्कत से छुटकारा मिल जाएगा।

पास की अंग्रेजी शराब की दुकान पर ही देशी शराब मिल जाएगी, तो हो सकता है कि घर से बहुत ज्यादा दूरी नापने की मजबूरी भी न रहे।

शराब सस्ती मिलेगी, तो हो सकता है कि महीने में कड़की के दिनों में भी शराब खरीदने के लिए जेब में पैसे होने की अकड़ बदस्तूर जारी रहे।

और सबसे ज्यादा तो हद कर दी थी इस खामी ने कि पूरे जिले की दुकानों का मालिक एक…साला जब मन आया तब रेट बढ़ाकर पूरे जिले के पियक्कड़ों का जीना दूभर कर दिया।

और क्या मजाल कि शराबी बगावत करने का नाटक करने का ख्वाब भी देख सके, उसकी किस्मत में तो महीने के कई दिनों दुकान देखकर मुंह में पानी लाकर और लार टपकाने के अलावा कुछ भी नहीं बच पाता था। और कुछ उपद्रव करने की सोच भी ले तो सामने खाकी खड़ी मिलती थी, सो दिन में तारे और रात में सूरज चाचा दिखते देर नहीं लगती थी।

खैर सरकार ने इस बार पियक्कड़ों पर जो मेहरबानी की है, वह वास्तव में बच्चन साहब की पुण्यतिथि पर दीन हीन लत के मारों के सिर से मन भर बोझ उतारकर कचरे की खंती में फेंक दिया है। अब बेचारे उपकृत पियक्कड़ बच्चन साहब को तो यह आशीष नहीं दे सकते कि जुग-जुग जियो बच्चन साहब लेकिन एक अप्रैल के बाद यदि “अप्रैल फूल” नहीं बने तो नई शराब नीति को गले लगाकर खुशी के आंसू जरूर लुढ़का लुढ़का कर यह गुहार लगाएंगे कि हे प्रिये नई शराब नीति, तुम हम पीने वालों पर हर आने वाले साल में पिछले साल से ज्यादा प्यार बरसाना और जुग-जुग और ज्यादा जवान होती जाना।

तो आओ पहले बच्चन साहब को याद कर लें। 27 नवम्बर 1907 को इलाहाबाद में जन्मे हरिवंश राय बच्चन हिन्दी भाषा के एक कवि और लेखक थे। वे हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति “मधुशाला” है। भारतीय फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं।

उनकी मृत्यु 18 जनवरी 2003 को सांस की बीमारी की वजह से मुम्बई में हुई थी। तो अब आओ बच्चन साहब को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उनकी मधुशाला गुनगुना लें।

प्रदेश में अब जब देशी और विदेशी अंग्रेजी बोतलें आसपास बैठकर गुटरगूं करेंगीं, तब पीने वाला चाहे देशी हो या शुद्ध अंग्रेजी…सीधा चलकर जिस ठिए पर पहुंचेगा, वहीं मालामाल हो जाएगा।

बच्चन साहब लिखते हैं कि …
‘”मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला, ‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ – ‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'”

इसमें अब बस यही जोड़ा जा सकता है कि “अंगूर की ही नहीं अब जामुन की भी मिलेगी, तू पी जिसका चाहे प्याला,
देशी-अंग्रेजी सभी एक जगह मिलेंगीं, तू उठ और सीधे चलकर पहुंच जा किसी भी मधुशाला।”

अब जब प्रदेश की नई शराब नीति में घर में पहले से चार गुना स्टॉक रखने की खुली छूट मिल जाएगी, तब तो मानो घर में शराब की बोतलें जमा करने वालों की चांदी ही हो गई। सबसे बड़ी बात तो यह कि कभी कभार जिनके घर में अनायास छापामारी हो जाती थी तो पुलिस भी मरे को मारने में कसर नहीं छोड़ती थी।

एक केस कॉमन बन जाता था सब पर कि अनुमति से ज्यादा शराब की बोतलें जब्त की गईं। यानि कि जब आफत आती है तो छप्पर फाड़ कर आती है। पर ऐसे लोगों के लिए तो मानो नई शराब नीति वरदान बनकर ही टपकी है। कम से कम इस एक केस से तो बचे, बाकी तो अनहोनी तो अनहोनी ही है।

दूसरा अब नई नीति में घर में बार खोलकर दरबार लगाने की कृपा भी झूम झूमकर बरस रही है। सो शौकीन मिजाज रईस अब काहे की कंजूसी करेंगे। 50 हजार खर्च कर घर में ही बार-दरबार लगाकर हर दिन ही त्यौहार जैसा जश्न चलेगा मियां, खुलकर दोनों बाहें ऊपर चढ़ाकर। पर बच्चन साहब की इन लाइनों को पढ़कर भी चटखारे ले लेना भैया।

एक नसीहत यह भी है कि “अति सर्वत्र वर्जयेत।” तो यह पंक्तियां भी काम की हैं कि “अति का भला न बोलनाअति की भली न चूपअति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।” यानि कि किसी भी चीज का अत्यधिक बहुल्यता में होना नुकसानदेह है सो अति का पियक्कड़ बनना भी नुकसानदेह है हुजूर।

तो जनाब अब पढ़ लो और चिंतन-मनन कर लो, गुनगुना लो कि मधुशाला में बच्चन साहब ने इसी अति को कुछ अलहदा ढंग से समझाया है। बच्चन साहब के यह इशारे पीने के बाद झूमते-नाचते ज्यादा आसानी से समझ में आएंगे। पढ़ लें पहले कि-

बड़े बड़े परिवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला, हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला,
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए, जमे रहेंगे पीनेवाले, जगा करेगी मधुशाला।।
सब मिट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला, सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ’ हाला,
धूमधाम औ’ चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें, जगा करेगा अविरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।।

बच्चन साहब की इन पंक्तियों का गूढ़ मतलब है सो भैया पियक्कड़ों तुम चाहो तो चार-चार प्याले जामुन-अंगूर, अंग्रेजी-बिलायती के ज्यादा पीकर ही समझना, लेकिन बच्चन साहब की मधुशाला की इस मधु का स्वाद सीधे-उल्टे सभी तरह से ले लेना।

बड़े-बड़े कवि ऐसी बातें लिखकर दिमाग को हिट विकेट कर देत हैं और समझ भी नहीं आता। यह मत भूलना कि बच्चन साहब ने शराब की करीबी के बाद की बर्बादी को भी इशारों-इशारों में बताते हुए सुर लय ताल में बड़ी बेबाकी से सजाकर परोसा है, सो इनका स्वाद लेना भी नहीं भूलना।

वैसे तो नई शराब नीति के बाद शराब सस्ती भी हो जाएगी और जो नजारा दिखने वाला है वह भी बच्चन साहब की मधुशाला से गुनगुना सकते हैं।

हर जिव्हा पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला, हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला,
हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की, हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।।

तो भैया आज के लिए मधुशाला पर इतना थिरकना ही काफी है। बाकी समय-समय पर मटकते रहेंगे प्याला और मधुशाला के संग घर में भी और बाहर भी। तो भैया घर में खोलो बार और हाथ में थामो मधु का प्याला, बच्चन साहब को याद करो और गुनगुनाते जाओ मधुशाला…।

जाते-जाते एक बार फिर नई शराब नीति का दिल खोलकर स्वागत और हरिवंशराय बच्चन साहब को श्रद्धा के मधुसुमन अर्पित।