Operation Ragging : एक महिला पुलिस ने ऐसे स्टूडेंट बनकर राज खोला!
Indore : ये दृश्य सिर्फ फिल्मों में दिखाई देता है जब पुलिस अपना हुलिया बदलकर अपराधियों तक पहुंचती है और उन्हें धर दबोचती है। लेकिन, कई बार पुलिस को असल जिंदगी में भी ऐसे हथकंडों का इस्तेमाल करना पड़ता है। इंदौर के संयोगितागंज पुलिस थाने की एक महिला पुलिस शालिनी चौहान ने भी इसी तरह का कारनामा किया और एमजीएम मेडिकल कॉलेज में रैगिंग करने वालों के नाम पता किए। बाद में पुलिस ने इनके खिलाफ कार्रवाई की।
इसके बाद 6 डॉक्टरों को गिरफ्तार कर लिया गया। इन सभी पर जूनियर की रैगिंग और तरह-तरह से परेशान करने का आरोप है। आरोपी डॉक्टरों ने पीड़ित जूनियर छात्रों से समझौता कर लिया था। इसी वजह से इनके नाम पता करने के लिए पुलिस ने यह नया तरीका अपनाना पड़ा, जो सफल रहा।
पुलिस को 24 जुलाई को कॉलेज के जूनियर छात्रों के साथ रैगिंग किए जाने की शिकायत मिली थी। पुलिस ने अपने स्तर पर पड़ताल की, पर कोई जूनियर स्टूडेंट डरकर सामने नहीं आया। पुलिस के हाथ कोई सबूत नहीं लगा कि वो किसी पर कोई कार्रवाई करे! ऐसी स्थिति में मामले का खुलासा करने के लिए पुलिस ने फिल्मी स्टाइल से कॉलेज में खुफिया टीम को स्टूडेंट बनाकर भेजा।
शालिनी करीब 5 महीने तक इस मिशन में लगी रहीं। अंडरकवर कॉप शालिनी चौहान को स्टूडेंट बनाकर कॉलेज में भेजा गया था। शालिनी ने जूनियर बनकर कॉलेज में दोस्त बनाए, कैंटीन में घंटों बैठकर बातचीत की। ब्लाइंड रैगिंग केस का खुलासा करने के लिए उन्होंने पर्याप्त सबूत जुटाए। अंडर कॉप शालिनी को एमवाय अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ बनाकर भी भेजा गया था। इस दौरान उन्होंने कैंटीन के साथ कॉलेज कैम्पस में समय बिताया और फ्रेशर्स स्टूडेंट्स से दोस्ती की और वो सारे सबूत जुटा लिए जो जरूरी थे।
संयोगितागंज थाने में तैनात शालिनी चौहान के पिता भी पुलिसकर्मी थे, 2010 में उनका निधन हो गया था। पिता की मौत के बाद शालिनी की मां की भी एक साल बाद मौत हो गई थी। पिता से प्रेरणा लेकर ही शालिनी पुलिस फोर्स में भर्ती हुईं। वैसे तो वे कॉमर्स में ग्रेजुएट हैं, लेकिन इस मामले की जांच करने के लिए वो जींस-टाप पहनकर बैग में किताबें रखकर खुद को फ्रेशर स्टूडेंट बताती रही।
इस पूरे मिशन को टीआई तहजीब काजी और एसआई सत्यजीत चौहान ने लीड किया। उन्होंने कुछ छात्रों को चिन्हित किया था, जिनके ऊपर शालिनी ने नजर रखी। वे रोज पांच-छह घंटे कैंटीन में, थोड़े-थोड़े अंतराल पर समय बिताती। ऐसा इसलिए कि लगे की मैं पूरा दिन घूमती नहीं हूं, क्लास भी अटेंड करती हूँ। कैंटीन में वे कई जूनियर से बात करती, ताकि पता चले कि जो सीनियर फ्रेशर्स की रैगिंग कर रहे थे, वे कौन हैं।
छात्रों ने भरोसा में बात की
टीआई के मुताबिक जांच अधिकारी सत्यजीत चौहान कुछ छात्रों के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन, यह असंभव लग रहा था। क्योंकि, वे डर गए थे और उन्हें आसानी से पहचान सकते थे। जब हमने ये फैसला किया और कांस्टेबल शालिनी इस ऑपरेशन के लिए सही थीं। उनसे कहा कि वे कॉलेज जाने वाली छात्रा की तरह दिखती है और अन्य पुलिस अधिकारियों के विपरीत बात करती हैं। इस कारण छात्रों ने उस पर आसानी से भरोसा करना शुरू कर दिया।
किसी को शक नहीं हुआ
इतने दिनों तक वे मिशन तक लगी रही, पर किसी को अहसास नहीं हुआ कि मेरा मेडिकल फील्ड से कोई लेना-देना है। हमारे पास कोई सुराग नहीं था, हमने उन संदिग्धों के अपराध का खुलासा कर दिया। टीआई काजी ने ऑपरेशन की सफलता का श्रेय शालिनी टीम की कड़ी मेहनत को दिया है। उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से अंधा मामला था। हमें व्हाट्सएप के जरिए एक गुमनाम शिकायत मिली थी, जहां फ्रेशर्स को रैगिंग के लिए बुलाया गया था। काजी के मुताबिक, कॉलेज का दौरा करने के लिए एक अंडरकवर टीम बनाई गई, जो हॉस्टल और छात्रों से बात करती थी।