Opinion Poll : तीन कृषि कानूनों को रद्द करने से BJP को होगा फायदा!
IANS-C Voter Survey : विधानसभा चुनावों से पहले आया सीवोटर का सर्वे
– 52% से अधिक ने प्रधानमंत्री के निर्णय को सही माना
– 50% से अधिक ने कहा कानून किसानों के लिए फायदेमंद
– 30.6% ने दावा किया कि कानून फायदेमंद नहीं
New Delhi : 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की। अब राजनीतिक विश्लेषक इसके फायदे-नुकसान को लेकर चर्चा कर रहे है। लेकिन, इससे PM मोदी की छवि और BJP को कोई नुकसान नहीं है। यह बात IANS-C Voter Snap Opinion Poll से निकलकर सामने आई। यह ओपिनियन पोल( Opinion Poll) कृषि कानून निरस्त करने की घोषणा के कुछ घंटों बाद पूरे देश भर में किया गया था।
इस पोल में 52% से अधिक लोगों ने कहा कि प्रधानमंत्री ने सही निर्णय लिया। कुछ का दावा है, कि कृषि कानून बेकार थे और उनके निरस्त करने के फैसले का निश्चित रूप से स्वागत किया। वास्तव में, 50% से अधिक लोगों ने दावा किया कि कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद थे, जबकि काफी कम 30.6% ने दावा किया कि वे फायदेमंद नहीं थे।
जहां 40.7% लोगों ने कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए सरकार को श्रेय दिया, वहीं लगभग 22.4% ने विपक्षी दलों को श्रेय दिया, जबकि 37% ने प्रदर्शनकारियों को श्रेय दिया।
इस पोल (Opinion Poll) से निकलने वाला सबसे महत्वपूर्ण पैमाना यह है, कि जो आम भारतीय किसानों के प्रति मोदी के दृष्टिकोण के बारे में सोचते हैं। उत्तरदाताओं के 58.6% बहुमत ने कहा कि मोदी वास्तव में किसान समर्थक बताया। जबकि, तुलनात्मक रूप से 29% ने इसे किसान विरोधी बताया।
इससे भी अधिक दिलचस्प बात यह है कि 50% से अधिक विपक्षी मतदाता मोदी को किसान समर्थक मानते हैं। अंत में जब उत्तरदाताओं से लंबे और विवादास्पद आंदोलन के पीछे के वास्तविक उद्देश्यों के बारे में पूछा गया, जिसके कारण कृषि कानूनों को निरस्त किया गया, तो 56.7% का एक बड़ा बहुमत आश्वस्त था कि यह आंदोलन मोदी के नेतृत्व वाले NDA सरकार को कमजोर करने की योजना के साथ राजनीति से प्रेरित थी। केवल 35% उत्तरदाताओं की राय इसके विपरीत थी।
विधानसभा चुनावों पर असर
IANS-C Voter Survey के अनुसार, कम से कम 55% लोगों का कहना है कि तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला 2022 की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों में अहम भूमिका निभाएगा।
IANS-C Voter Survey ने यह स्पष्ट किया है कि कृषि कानून और इसको लेकर होने वाली राजनीति आगामी चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। 55.1% लोगों का स्पष्ट तौर पर मानना था कि इस फैसले का चुनावों पर प्रभाव पड़ेगा, जबकि केवल 30.8% का मानना है कि चुनावों में इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
एक बार फिर NDA और विपक्षी समर्थकों के विचारों में एकरूपता नजर आई। NDA के लगभग 53% मतदाताओं ने महसूस किया कि चुनावों पर असर पड़ेगा, जबकि 56% से अधिक विपक्षी मतदाताओं ने ऐसा ही महसूस किया। यह पूछे जाने पर कि क्या मोदी, जैसा कि उन्होंने 2015 में भूमि अधिग्रहण विधेयक के साथ किया था, दबाव के आगे झुक जाते हैं, जब उन पर व्यवसाय समर्थक होने का आरोप लगाया जाता है? तो NDA के 36.3% समर्थक इससे असहमत थे, जबकि 43% ने हां में कहा।
विरोध राजनीति से प्रेरित
यह पूछे जाने पर कि निरस्त करने का श्रेय किसे जाता है! NDA के 47% मतदाताओं ने मोदी सरकार का सुझाव दिया, जबकि 36% विपक्षी समर्थकों ने इससे असहमति जताई।
संसद में कृषि कानूनों का विवादास्पद पारित होना और उसके बाद अब निरस्त करना सब राजनीतिक है। लगभग एक साल से चल रहे तीन कृषि कानूनों के विरोध के पीछे के मकसद के बारे में पूछे जाने पर, 56% से अधिक उत्तरदाताओं ने कहा कि विरोध राजनीति से प्रेरित थे। दिलचस्प बात यह है कि लगभग 48% विपक्षी मतदाताओं की भी ऐसी ही राय थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की। हालांकि, राजनीतिक जानकारों का ये भी मानना है कि तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की एक वजह ये भी थी, कि व्यापक रूप से ये तीनों कानून अलोकप्रिय थे। इस बारे में कानूनों को लेकर इस तरह की थ्योरी भी चल रही थी कि इन कानूनों के जरिए अंबानी और अडानी किसानों की जमीन हड़प लेंगे और खुले बाजार में किसानों के लिए सौदा करना आसान नहीं होगा।
सड़कों की साल भर की नाकेबंदी को भी कृषि कानूनों की व्यापक अलोकप्रियता की वजह बताया गया। भारत भर में IANS-C Voter Survey द्वारा मिले तथ्य और डेटा के मुताबिक, 50% से अधिक उत्तरदाताओं का स्पष्ट बहुमत था कि कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद थे। इसके विपरीत, केवल 30 प्रतिशत को लगता है कि वे फायदेमंद नहीं हैं।
प्रधानमंत्री ने स्वयं 19 नवंबर को कृषि कानूनों को निरस्त करते हुए कहा था कि उनकी सरकार चाहती है कि छोटे किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिले। कृषि कानूनों के समर्थन के और भी सबूत हैं।
लगभग 48% उत्तरदाताओं ने बताया कि सरकार को सभी हितधारकों के साथ परामर्श और आवश्यक संशोधनों के बाद संसद में कृषि कानूनों को फिर से पेश करना चाहिए।
यह कोई नहीं जानता कि राजनीतिक माहौल को देखते हुए कृषि कानून फिर से पेश किया जाएगा या नहीं, लेकिन तथ्य यह है कि इस तरह के कदमों को लोगों का समर्थन है। उत्तरदाताओं में 56.7% लोगों की राय थी, कि राजनीतिक मकसद के कारण इन कानूनों का विरोध किया गया।