

मोदी की गांधीवादी शिक्षा नीति के विरोधी लगा रहे अलगाववाद की आग
आलोक मेहता
” शिक्षित समाज के लिए एक भाषा अवश्य होनी चाहिए | वह हिंदी ही हो सकती है | हिंदी द्वारा करोड़ों लोगों को साथ लेकर काम किया जा सकता है | इसलिए हिंदी को उचित स्थान मिलने में जितनी देरी हो रही है , उतना ही अधिक देश का नुकसान हो रहा है | ”
यह बात क्या देश में नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कही है ? जी नहीं यह बात 1917 में महत्मा गाँधी ने बाकायदा एक सर्कुलर में अपने लाखों समर्थकों को लिखकर भेजी थी | यही नहीं कुछ महीने बाद 1918 में उन्होंने तमिल प्रदेश मद्रास में सी पी रामस्वामी की अध्यक्षता में एक सम्मेलन करवाया , जिसका उद्घाटन एनी बेसेंट ने किया और ‘ हिंदी वर्ष ‘ मनाए जाने का प्रस्ताव पारित किया | इस आयोजन और आगे अभियान बढ़ाने के लिए अपने बेटे देवदास गांधी को भेजा | फिर अपने एक तमिल सहयोगी को पत्र लिखकर कहा – ” ‘जब तक तमिल प्रदेश के प्रतिनिधि सचमुच हिंदी के बारे में सख्त नहीं बनेंगे, तब तक महासभा में से अंग्रेजी का बहिष्कार नहीं होगा। मैं देखता हूं कि हिंदी के बारे में करीब-करीब खादी के जैसा हो रहा है। वहां जितना संभव हो, आंदोलन किया करो।” महात्मा गांधी ने विखंडित पड़े संपूर्ण भारत को एकसूत्र में बांधने के लिए, उसे संगठित करने के लिए एक राष्ट्रभाषा की आवश्यकता का अहसास करते हुए कहा था – ‘राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।’
Read More…
प्रपंचवटी से राहुल गाँधी का कांग्रेस को सत्ता में लाने का दिवा स्वप्न
तमिलनाडु के बाद महाराष्ट्र में मोदी की शिक्षा नीति के अंतर्गत मराठी की अनिवार्यता के साथ पहली से पांचवी कक्षा तक हिंदी को भी आवश्यक रखे जाने पर कांग्रेस की सहयोगी उद्धव ठाकरे की सेना , राज ठाकरे की मनसे और कुछ अन्य संगठनों के नेता महात्मा गांधी के मूलभूत आदर्शों को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं हैं | यह कैसी विडम्बना है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल सत्ता की घिनौनी राजनीति के लिए जाति और भाषा के नाम पर विभिन्न प्रदेशों में अलगाव की आग लगा रहे हैं | पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन सहित द्रमुक नेताओं ने शिक्षा नीति में हिंदी सहित भारतीय भाषाओँ के महत्व को प्रादेशिक स्वयत्तता के नाम पर कड़ा विरोध व्यक्त किया | अब महाराष्ट्र में मराठी और इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के लिए कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर अनिवार्य किए जाने पर प्रतिपक्ष उग्र विरोध कर रहा है |
जबकि मुक्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट कहा है कि ‘ राज्य में मराठी बोलना अनिवार्य होगा। हमने पहले ही नई शिक्षा नीति लागू कर दी है। नीति के अनुसार, हम प्रयास कर रहे हैं कि सभी को मराठी के साथ-साथ देश की भाषा भी आनी चाहिए। नीति पूरे भारत में एक आम संवादात्मक भाषा के प्रयोग की वकालत करती है, और महाराष्ट्र सरकार ने मराठी का व्यापक प्रयोग सुनिश्चित करने के लिए पहले ही कदम उठाए हैं | सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को एकेडमिक सत्र 2025-26 से लागू करने के लिए विस्तृत योजना बनाई है। ‘ महाराष्ट्र सरकार की ओर से बताया गया है कि प्रदेश के इंग्लिश और मराठी माध्यम वाले स्कूलों में सिर्फ दो भाषाएं पढ़ाई जाती हैं जबकि अन्य माध्यम वाले स्कूल पहले से ही तीन भाषा फॉर्मूले का पालन किया जा रहा है। राज्य में अंग्रेजी और मराठी अनिवार्य है और वे वही भाषा पढ़ते हैं जो उनकी शिक्षा का माध्यम है। अब तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य करने का निर्णय लिया गया है। मौजूदा सत्र 2025-26 में कक्षा 1 से हिंदी की पढ़ाई शुरू होगी और सरकार का लक्ष्य है कि 2028-29 शैक्षणिक सत्र तक सभी कक्षाओं में हिंदी पढ़ाई जाने लगे।
महाराष्ट्र जैसे राज्य में, जहां मराठी प्रमुख भाषा है, वहां हिंदी को अनिवार्य करना एक रणनीतिक फैसला माना जा रहा है। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों को बहुभाषी बनाना और राष्ट्रीय स्तर पर संवाद और अवसरों के द्वार खोलना है। हिंदी भाषी राज्यों के विद्यार्थियों को भी महाराष्ट्र में शिक्षा प्राप्त करने में सुविधा होगी।यह बदलाव छात्रों के समग्र भाषा विकास और संचार कौशल को बेहतर बनाने के लिए किया जा रहा है। सरकार का मानना है कि इससे बच्चों में भाषाई विविधता को लेकर सम्मान बढ़ेगा और देश की एकता को भी मजबूती मिलेगी।
हालांकि इस फैसले के खिलाफ कुछ क्षेत्रीय दल और संगठन विरोध जता सकते हैं, जो राज्य में क्षेत्रीय भाषाओं की प्राथमिकता बनाए रखने की बात करते रहे हैं। उद्धव ठाकरे की सेना के प्रवक्ता संजय राउत और राज ठाकरे इसे ‘ हिंदी ‘ के बजाय ‘ हिंन्दू ‘ की मान्यता जैसे कुतर्क दे रहे हैं | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गहन विचार विमर्श और संसद में बहस के बाद 2020 की शिक्षा नीति में हिंदी सहित भारतीय भाषाओँ को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का आग्रह किया है | इसमें बच्चे चाहें तो अपनी मातृभाषा के साथ कोई दो अन्य भारतीय भाषा ले सकते हैं या तीसरी भाषा के रुप में अंग्रेजी फ्रेंच जैसी विदेशी भाषा भी पढ़ सकते हैं | इतनी व्याहारिक स्पष्टता के बावजूद समाज को बांटकर वोट की राजनीति करने वाले नेता और उनके संगठन तमिलनाडु विधान सभा या इसी साल होने वाले मुंबई महानगरपालिका के चुनावों के लिए हिंदी के उपयोग के विरुद्ध जनता को भड़काने का प्रयास कर रहे हैं |
दिलचस्प बात यह है कि कमल हासन जैसे अच्छे अभिनेता भी अन्य नेताओं की तरह हिंदी की शिक्षा का विरोध कर रहे हैं | तमिलनाडु , कर्णाटक , आंध्र , तेलंगाना , केरल और महाराष्ट्र के मोदी और हिंदी शिक्षा विरोधी नेता अभिनेता यह कैसे भूल जाते हैं कि हाल के पांच वर्षों के दौरान उनकी ही क्षेत्रीय भाषाओँ तमिल , तेलगु , कन्नड़ , मलयालम की हिंदी डबिंग फिल्मों ने हजारों करोड़ कमाए हैं और बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड को चकित कर दिया है | कमल हासन ही नहीं सिनेमा के अनेक दक्षिण भारत या बंगाल सहित पूर्वी भारत के अनेक कलाकारों , निर्माता , निदेशकों को हिंदी की फिल्मों से सर्वाधिक लोकप्रियता मिली है | नेताओं में वर्तमान कांग्रेसी पी चिदंबरम अवश्य घोर हिंदी विरोधी हैं , लेकिन कांग्रेस के इंदिरा युग के चाणक्य कामराज या बाद में प्रधान मंत्री भी बने नरसिंहा राव और एच डी देवेगौड़ा हिंदी सीख बोलकर गौरवान्वित महसूस करते रहे हैं | वास्तव में आज़ादी से पहले भी हिंदी का महत्व समझने और समझने वालों में हिंदी भाषी प्रदेशों के बजाय अन्य भारतीय भाषाओँ के नेताओं , विद्वानों और शिक्षाविदों की भमिका थी | यहाँ तक कि सत्रहवीं शताब्दी के अमीर खुसरो ने ‘ हिंदवी ‘ शब्द का उपयोग कर हिंदी की उपयोगिता बताई थी | आर्य समाज के महान प्रवर्तक स्वामी दयानन्द ने अपना ‘ सत्यार्थ प्रकाश ‘ हिंदी में लिखा | स्वामी दयानन्द , राजाराम मोहनरॉय ,महत्मा गाँधी , लोकमान्य तिलक , सुभाषचंद्र बोस , रवीन्द्रनाथ टैगोर , विनोबा भावे जैसे सभी महान नेताओं ने हिंदी को देश को जोड़ने वाली भाषा के रुप में स्वीकारने पर जोर दिया | संविधान निर्माताओं ने हिंदी को राजभाषा के दर्जे का प्रावधान किया | इसलिए अब हिंदी और भारतीय भाषाओँ की शिक्षा का विरोध करने वाले इसे संविधान विरोधी तक कह रहे हैं , जो पूरी तरह गलत है | संविधान के अनुच्छेद 29 -30 , 120 , 210 , 343 , 351 , 394 में हिंदी को विभिन्न स्तरों पर अपनाने के प्रावधान किया है | अनुच्छेद 343 में हिंदी को राजभाषा के रुप में रखा | अनुच्छेद 351 में कहा गया है कि ‘ संघ का कर्तव्य है कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए , उसका विकास करे ताकि वह भारत की संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके | आठवीं सूची की अन्य भारतीय भाषाओँ को आत्मसात करे | ‘ इसी लक्ष्य के अनुसार नई शिक्षा नीति में हिंदी और भारतीय भाषाओँ को लागू करने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार तेजी से आगे बढ़ रही है |