Opposition Politics In Bihar: कहीं राहुल मुगालते में गठबंधन न तोड़ दे

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Opposition Politics In Bihar: कहीं राहुल मुगालते में गठबंधन न तोड़ दे

रमण रावल

इस समय देश की राजनीति में विपक्ष चुनाव आयोग के बहाने केंद्र की भाजपा सरकार पर हमलावर है । पिछले लोकसभा चुनाव में संविधान को बदलने व जातिगत जनगणना न करवाने के लिये भाजपा के खिलाफ आक्रामक रूख रखकर विपक्ष गठबंधन ने एकजुटता रखते हुए एनडीए को मुश्किल में तो डाल दिया था। हालांकि अंतिम सत्य तो विजय ही होती है,जिस पर सवार होकर भाजपा नीत सरकार तीसरी बार केंद्र में पदस्थ है। अब इस वर्ष नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एक बार फिर इंडी गठबंधन धार तेज कर रहा है, जिसका पहला वार है मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटाने का आरोप। क्या यही मुद्दा चुनाव आते-आते इंडी गठबंधन के बीच तकरार और विभाजन का कारण बन सकता है । कैसे, आइये,समझते हैं।

इंडी गठबंधन के प्रमुख दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी अक्सर कुछ ऐसा कर जाते हैं, जिससे चर्चा में आ जाते हैं। इस बार उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर आरोप लगाया कि भाजपा सरकार के इशारे पर चुनाव आयोग ने बिहार की मतदाता सूची से 65 लाख नाम काट दिये। उन्होंने कटे नामों की सूची तो नहीं ही दी, आयोग की चुनौती भी स्वीकार नहीं की कि वे हलफनामे पर अपनी बात कहे। राहुल जानते हैं कि हलफनामे के बाद यदि प्रमाण साबित नहीं हुए तो उनकी सांसदी खतरे में आ जायेगी, जो पहले भी आ चुकी है। इसलिये वे बेहद चतुराई से प्रचार-प्रसार में ही इस मुद्दे को लहरा रहे हैं। आगे चलकर यह मुद्दा उनके गले की हड्‌डी बन सकता है।

दरअसल, राहुल ने बिहार दौरे शुरू कर दिये हैं,जिसमें वोट चोरी को हवा दे रहे हैं। उसमें जन सैलाब भले ही न उमड़ रहा हो, कांग्रेस कार्यकर्ता जरूर जोश में आ गया है। हां, सोशल मीडिया भी एआई के जरिये ऐतिहासिक भीड़ तो ऐसे दिखा रहा है, जैसे महाकुंभ में लोग उमड़े हो। जबकि राजनीतिक विश्लेषक जानते हैं कि एक तो यह कि प्रत्येक दल भीड़ जुटाते हैं। दूसरा, सोशल मीडिया पर इसे इस तरह प्रचारित किया जाता है, जैसे उस दल के समर्थन में आंधी बह निकली हो। राहुल की सभा की जो तस्वीरें प्रसारित हुई,वे रगैर राजनीतिक रैली,सभा की होना सामने आया है। इसमें भी हर्ज नहीं, लेकिन आगे जो होने वाला है, वह गठबंधन के लिये चिंताजनक संकेत दे रहे हैं।

बिहार के बेहद प्रारंभिक दौरे से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जो जोश पैदा हुआ है, वह राहुल का दिमाग बिगाड़ने के लिये काफी है। वे यह मानकर चल रहे हैं कि अगले चुनाव में वे सहयोगी दल राजद से आगे न भी निकले तो खुद उसके आसपास तो आ ही जायंगे। राहुल कार्यकर्ताओं की भीड़ और जोश को जन समर्थन मानने की नादानी कर रहे हैं। यदि यही रवैया जारी रहा तो गठबंधन टूटने या दोस्ताना चुनाव लड़ने की नौबत भी आ सकती है। राहुल यह सब करते हुए बिहार में कांग्रेस के वर्तमान व अतीत को पूरी तरह से भुला रहे हैं।

यह तो सब जानते हैं कि बिहार जैसे राज्य में चुनाव के नतीजे जाति आधारित होते हैं। वह भी खासकर यादव,दलित व मुस्लिम वोट जिसके हक में जाते हैं, वह दल सत्ता के नजदीक बढ़ता जाता है। 2020 के चुनाव में यह जातिगत समीकरण राजद(लालू) के पक्ष में था तो उसे 76 सीटें मिली थीं। जबकि इंडिया गठबंधन को 111 सीटें मिली थी, जिसमें कांग्रेस की केवल 19 सीटें थीं। दूसरी तरफ राजग(एनडीए) को 131 सीटें मिली थीं, जिनमें जदयू(नीतीश) को 45,भाजपा को 80 सीटें मिली थीं। याने तब भी भाजपा बड़ा दल था। तो राहुल को यदि यह लगता है कि वे कांग्रेस को तौल-मोल करने की स्थिति में लाकर खड़ा कर देंगे तो उन्हें यह मुगालता पालने का पूरा हक है। भले ही उनके इस भ्रम से गठबंधन मुश्किल में आ जाये।

यदि राहुल का यह सोच दृढ़ हुआ कि बिहार में कांग्रेस का जनाधार बढ़ रहा है तो वे गठबंधन में अधिक सीटों की मांग करेंगे, जो राजद उन्हें कतई नहीं देगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में राजग को 30,इंडिया गठबंधन को 9 व एक सीट निर्दलीय को मिली थी। इस तरह से पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस कहीं पर थी ही नहीं तो इस विधानसभा चुनाव में वह यकायक प्रभावी कैसे हो सकती है? इसलिये आने वाला समय विपक्षी दलों के लिये काफी चुनौतीपूर्ण तो रहेगा ही, इसके बाद अगले साल असम,केरल,तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के विपक्षी समीकरण भी तय करेगा। मौजूदा दौर में ही तृणमूल कांग्रेस तो राहुल के दखल को स्वीकार करती ही नहीं तो बंगाल में अस्तित्वहीन हो चुकी कांग्रेस से वह समझौता क्यों करेगी?

अलबत्ता,बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की भूमिका का निर्धारण भी यह चुनाव करेगा। यदि वे 5-10 सीटें भी ले पाये तो भाजपा का नुकसान कर इंडिया गठबंधन को फायदा पहुंचा देंगे। संभव है, चुनाव बाद वे इस गठबंधन के साथ भी चले जायें। प्रशांत को यादव-मुस्लिम वोट तो निश्चित ही नहीं मिलेंगे। शेष वोट ऊंची जाति के जो रहेंगे, वहां वे भाजपा के वोट बैंक में सेंधमारी करेंगे। देखना दिलचस्प होगा कि ये चुनाव राहुल व प्रशांत किशोर के लिये कितने नफे-नुकसान के साबित होंगे।