विपक्षी एकता बनाम चूं-चूं का मुरब्बा

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विपक्षी एकता बनाम चूं-चूं का मुरब्बा

भारत में आम का मौसम हो या न हो लेकिन मुरब्बे का मौसम हमेशा होता है। और जब आम चुनाव अगले साल होना हों तो मुरब्बे की तैयारी विपक्ष और सत्ता पक्ष की और से शुरू कर ही दी जाती है। कोई चूं-चूं का मुरब्बा बनाता है तो कोई चीं-चीं का मुरब्बा। मुरब्बा मीठा और स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए विपक्षी दल भी ‘ एकता का मुरब्बा ‘ बनाने में जुट गए है । अब देखना ये है कि विपक्षी एकता का ये मुरब्बा बनता कैसा है ?

भारत में भाजपा दो आम चुनाव जीत चुकी है और तीसरे आम चुनाव को जीतने के लिए भाजपा ने राम जी की कसम खा रखी है । राम जी की कृपा से ही भाजपा सत्ता के शीर्ष तक पहुंची है। रामदूत प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने बीते 9 साल में विपक्षी पार्टियों का मुरब्बा बनाकर खुद खा लिया है। मोदी जी से निबटने के लिए इस बार विपक्ष को नए सिरे से मुरब्बा बनाना पड़ रहा है। मोदी जी इस समय अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ ‘ ऑफिसियल स्टेट डिनर ‘ में ‘जैम ‘ खाकर आ रहे हैं। जाहिर है कि ऐसे में विपक्षी दलों को भी कुछ न कुछ रसीला और खट्टा-मीठा तो चाहिए ही।

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इस बार विपक्ष एकता का मुरब्बा बनाने के लिए बिहार की राजधानी पटना है। पटना विपक्षी एकता की राजधानी भी शायद इसीलिए चुनी गयी है क्योंकि बिहार ने बार-बार भाजपा को यहां झटका दिया है। यहां लालू यादव भी हैं और नीतीश कुमार भी। गैर भाजपा दलों के प्रमुख और गैर भाजपा दलों द्वारा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी पटना में जमा हो चुके हैं। सबके पास ‘एकता के मुरब्बे ‘ में मिलाने के लिए कुछ न कुछ जरूर है। कुछ लोग अपना सीक्रेट मसाला सशर्त लेकर आये हैं और कुछ उदारतापूर्वक। सबका मिश्रण ठीक-ठाक हो जाये तो मुमकिन है कि कुछ नया हासिल हो जाए।

हम मुरब्बा हो या योग दूसरों से सीखते है। मुरब्बा को अरबी, फारसी, उज्बेकी भाषा में भी मुरब्बा ही है और सभी जगह इसका अर्थ एक ही हुआ- ‘मीठे संरक्षित फलों की चटनी ‘। जब खूबानी, आलूबुखारा, नाशपाती सरीखे फल कोई पांच-छह सौ साल पहले मध्य एशिया से भारत पहुंचे, तो मुरब्बे की सौगात भी अपने साथ लाए। कुछ लोग इसका श्रेय आर्मीनियाई लोगों को देते हैं तो कुछ ईरानियों या तुर्कों को। वैसे पुर्तगालियों ने बंगाल को मुरब्बा बनाना सिखाया, जिसकी तर्ज पर आगे चलकर सुरी मुरब्बा विश्व प्रसिद्ध हुआ। इसका निर्माण सबसे पहले राजनगर में किया गया था। सिउरी कहें या सुरी में, मुरब्बा कच्ची सब्जियों और फलों से बनाया जाता रहा है, जिन्हें चाशनी में डुबोया जाता था। सिउरी की यह मिठाई उस क्षेत्र की शान है और लोग इसे खूब पसंद करते हैं।हमारी माँ आम और आंवले का मुरब्बा बनाती थीं।

बहरहाल विपक्ष के इस एकता ब्रांड मुरब्बे के निर्माण में ‘ आप ‘ पार्टी सबसे बड़ी बाधा है । आप की इस समय दिल्ली और पंजाब में सरकार है। सुना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को अल्टीमेटम दे दिया है कि अगर अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस समर्थन नहीं देती, तो वो विपक्ष के एकता के मुरब्बा बनाने में साझेदार नहीं बेंगी। आप की अपनी मांगें हैं ,और स्वाभाविक मांगे हैं। मुमकिन है कि कोई रास्ता निकल आये। चूंकि ये विपक्ष की पहली बैठक है इसलिए जरूरी नहीं है कि आज ही सारे फैसले हो जाएँ। अच्छी बात ये है कि विपक्ष एक होता दिखाई दे रहा है। बिखरा विपक्ष ही भाजपा के अब तक सत्ता में बने रहने का एक सबसे बड़ा कारण रहा है ।

विपक्ष के एकता के मुरब्बे के जबाब में भाजपा अपने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा की कथित उपलब्धियों को लेकर कुछ दिन ढोल पीटेगी । ढोल की आवाज में मणिपुर की आहें-कराहें दब जायेंगीं। ढोल की आवाज मंद होगी तब तक ‘ समान नागरिक संहिता ‘ कि चकरी चला दी जाएगी। कुछ महीने ये चकरी अपनी फुलझड़ियाँ छोड़ती रहेगी और अंत में ऐन मौके पर राम मंदिर का दरवाजा खुलना ही है ।
विपक्ष अब तक दिल्ली,पंजाब,हिमाचल ,झारखंड, राजस्थान,बंगाल,उड़ीसा, बिहार आंध्रप्रदेश, तेलंगाना ,छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक को भाजपा मुक्त बना चुका है । बाक़ी के लिए विपक्ष का संघर्ष बिना केटा का मुरब्बा खाये कामयाब नहीं हो सकता।

भारत की राजनीति में एकता का मुरब्बा पहली बार नहीं बन रहा है । पहले भी बना है ।

जवाहर लाल नेहरू के जमाने में भी और इंदिरा गाँधी के जमाने में भी। मोरारजी भाई के हिस्से में भी शिवाम्बु के साथ ही एकता का मुरब्बा आया ही था । एकता के मुरब्बा का ही दम था जो विश्वनाथ प्रताप सिंह से लेकर देवेगौड़ा ,गुजराल,चंद्रशेखर ,चरण सिंह जैसे महान नेताओं का प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा हुआ। अटल बिहारी वाजपेय और डॉ मनमोहन सिंह ही नहीं बल्कि मौजूदा प्रधानमंत्री जी ने भी एकता का मुरब्बा खाकर ही सरकार बनाई । ये बात अलग है कि बाद में भाजपा ने अपना मुरब्बा खुद बनाया और उसमें से तमाम सहयोगी दलों के मसाले निकाल फेंके।कांग्रेस के राहुल गांधी को अभी तक विपक्षी ‘एकता के मुरब्बे ‘ का कोई लाभ नहीं मिला है। उन्होंने भारत तो जोड़ लिया लेकिन विपक्ष को नहीं जोड़ पाए। राहुल भी अमरीका से जैम खाकर लौटे हैं। देखिये शायद इस बार उन्हें कोई कामयाबी मिल जाए। नया मुरब्बा चीं-चीं का बनेगा या चूं-चूं का कहना कठिन हैं । तेल देखिये और तेल की धार देखिये।

 

 

Author profile
RAKESH ANCHAL
राकेश अचल

राकेश अचल ग्वालियर - चंबल क्षेत्र के वरिष्ठ और जाने माने पत्रकार है। वर्तमान वे फ्री लांस पत्रकार है। वे आज तक के ग्वालियर के रिपोर्टर रहे है।